एक प्रेम ऐसा भी…. – विनोद सिन्हा “सुदामा” : Moral Stories in Hindi

आज़ जब पूरे दो महीने बाद ऑफिसियल टूर से लौटकर घर आया तो धर्मपत्नी धुर्वा ने दरवाजा खोला..

मैंने इधर उधर नजरें घुमाई मेरी निगाहें माँ को ढूंढ रही थी..

धुर्वा से माँ को पूछा तो धुर्वा ने

माँ की ओर इशारा किया देखा माँ बरामदे में लगे आराम कुर्सी पर बैठी बालों में लगी मेंहदी सुखा रही है..

मेरे आश्चर्य का कोई ठिकाना नहीं था..

इससे पहले मैंने कभी माँ को अपने बालों में यूँ मेंहदी लगाते नहीं देखा था..

पिता जी का देहांत हुए एक अरसा हो गया था,तब से माँ सादगी भरा ही जीवन जी रही थी.. लेकिन आज़ जाने क्या बात थी..जो यूँ बालों में मेहंदी लगा रही थी.

मैंने झुककर माँ को प्रणाम किया..

अरे विज्ञान आ गया..

कुछ पता नहीं चला तेरे आने का..

हाँ माँ तुम जाने किस ख्यालों में खोई थी

और आज यह बालों में मेहंदी..??

क्यूँ नहीं लगा सकती क्या..???

बहू ने कहा माँ जी आपके काफी बाल सफेद होने लगे हैं जिसके कारण आप अपनी उम्र से भी ज्यादा दिखती हैं..

मैंने मना भी किया बहू को,परंतु नहीं मानी,

उसने ही यह रंग लाकर दिया है मुझे

तो लगा लिया..

मैंने धुर्वा की ओर देखा

धुर्वा मेरा चेहरा देख मुस्कुरा रही थी

मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था

आप फ्रेश हो जाइए मैं चाय बनाकर लाती हूँ..

थोड़ी बातें करने के बाद मैं माँ से अलग हो फ्रेश होने के लिए अपने कमरे में आ गया पीछे पीछे धुर्वा भी चाय लेकर कमरे में आ गई..

क्या हो रहा ये सब. क्या करना चाहती हो तुम…??

बड़ा प्यार आ रहा मेरी माँ पर…

तो क्या वो मेरी माँ नहीं??

धुर्वा ने शिकायती लहज़े में टोन कसा..

नहीं मेरा मतलब यह नहीं था..

फिर धुर्वा ने माँ को लेकर जो कहा वो सब सुन मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया..

माँ ने धुर्वा को बताया कि कैसे वो इन दो महीनों में एक व्यक्ति के करीब आ गई हैं..जो उसी पार्क में सुबह सुबह टहलने आता हैं जहां वो जाया करती है,

पागल हो गई हो तुम और माँ भी पागल हो गई है लगता ..??

इस उम्र में प्रेम और शादी..???

‘दुनिया क्या कहेगी, मुहल्ले वाले,पास पड़ोस के लोग क्या कहेंगे..जरा सोचा है..?

अभी कुछ ही महीने पहले बेटी की शादी हुई है और आज़ माँ इश्क फरमा रही है,शादी करना चाहती है..

वो भी एक ऐसे आदमी के साथ जिसका न कोई अता है न कुछ पता..

दो बार पार्क में क्या मुलाकात हो गई प्यार हो गया..

अरे…!

मुहब्बत तो अक्सर ही पार्क में पेड़ तले मिलने पर ही होती है

धुर्वा ने चुटकी ली..

वैसे भी मुहब्बत को लेकर मुंशी प्रेमचंद जी ने कहा है

“मुहब्बत रूह की खुराक है,यह वह अमृत है जो मरे हुए भावों को भी जिंदा कर देती है”

और अपनी माँ जी तो रेखा हैं रेखा

सदाबहार..रेखा

देखो कहे दे रहा हूँ तुम मेरा माथा मत खराब करो,

इस उम्र में प्रेम मुहब्बत ..शोभा नहीं देती..???

तुम बेकार की बातें कर रही हो..

विज्ञान बोला..

धुर्वा ने विज्ञान की बातों को काटते हुए कहा..

मैं नहीं कर रही माथा खराब..

माँ जी से बात हुई मेरी..

मैंने सब पता कर लिया है..लड़का खाता- कमाता भले घर का है . बैंक से रिटायर्ड है, अच्छी खासी पेंशन मिलती है

एक बेटी है उसकी शादी हो चुकी है..

कहने का मतलब माँ जी और आराम से रहेगी, किसी बात की दिक्कत नहीं होगी मौज रहेगी उनकी..

फिर माँ जी भी तो पसंद करती हैं उन्हें,

और तुम्हें भी इस उम्र में पिता का प्यार प्राप्त हो जाएगा…जिससे तुम पिता के मरणोपरांत वंचित रहे..

धुर्वा ने फिर चुटकी ली

मैंने उसे घुरकर देखा..

अरे यार समझती क्यूँ नहीं तुम ??

मुझे नहीं समझना तुम समझने की कोशिश करो..

धुर्वा ने पति विज्ञान से कहा

देखो राशि भी शादी हो जाने के बाद अपने ससुराल मे़ व्यस्त रहती है,तुम भी अक्सर टूर पर रहते हो,मैं भी ऑफिस चली जाती हूँ,तो ऐसे में माँ जी को घर में अकेलापन महसूस तो होता ही होगा न ???

कभी तो समाज का भय छोड़ कर,लोक लिहाज़ की चिंता छोड़,अपनों के हित के बारे में सोचने की कोशिश करो….

दुनिया वालों का क्या है, दुनिया तो राई का पहाड़ बना देती है, शादी हो जाने के बाद कोई कुछ नहीं कहेगा.अगर कोई कहेगा तो थोड़े दिन बोलेगा, फिर अपने आप ही सब चुप हो जाएंगे..

वैसे भी किसी के कुछ कह देने से क्या होता है माँ जी की जिंदगी है,उसे वो फिर से रंग देना चाहती हैं तो इसमें गलत क्या है..??

दोनों बुजुर्ग एक दूसरे के साथी बन जाएंगे,दोनों अपने बुढ़ापे व एकाकी जीवन का सहारा बन जाएंगे,अपने सुख दुख के साथी बन जाएंगे.

जिनके दरमियान सिर्फ़ प्रेम और प्रेम रहेगा,छोड़ और कुछ नहीं..

तो हर्ज क्या है भला..?

फिर रहना तो उन्हें पास ही है..या फिर हम ही उनके साथ रह लेंगे

अच्छा..यूँ कहो माँ से पीछा छुड़ाना चाहती हो तुम..

तुम गर ऐसा समझते हो तो समझो

मैंने माँ जी को कभी सास नहीं समझा

तो क्या मैं माँ के बुढ़ापे का सहारा नहीं ,??

क्या मैं माँ का ख्याल नहीं रखता,??

तुम नहीं रखती..??

सहारे और साथी में अंतर होता है पतिदेव..

धुर्वा ने कहा..

मान लो कल को मैं न रहूँ तो क्या तुम अकेले नहीं हो जाओगे..

या

तुम मुझे छोड़ दो,क्या मैं अकेली नहीं हो जाऊँगी..??

पागलों जैसी बातें मत करो..

विज्ञान ने धुर्वा के मुंह पर हाथ रख उसे चुप करा दिया और सीने से लगा लिया..

फिर धुर्वा के सर पे हाथ फेरते हुए कहने लगा

मुझे नहीं पता था मेरी पत्नी इतनी समझदार है. इतनी संवेदनशील है जो दूसरों की भावनाओं का इतना कद्र करना जानती है…

करनी पड़ती है..साहब

वो माँ हैं मेरी ….

मैंने आश्चर्य भाव से धुर्वा की तरफ देखा

वैसे भी माँ जिनसे प्रेम करती है वो और कोई नहीं वर्मा अंकल हैं पापा के अभिन्न मित्र…जिनकी पत्नी का देहांत हुए वर्षों बीत गए..वो भी माँ जी की तरह अकेलेपन का शिकार हैं..

तो क्या तुम्हारे पापा जानते हैं यह सब..

हाँ.. कोई शक ही नहीं इसमें

पापा के पास गई थी तो पापा ने ही पहल की थी,उन्होंने अपनी राय रखी मेरे सामने जब वर्मा अंकल इधर के दिनों में माँ जी से पार्क में दो चार बार अकेले मिलें,तो उन्होंने पापा से अपने मन की बात कही और पापा ने मुझसे..

सुन और समझ मैंने भी हामी भर दी..

कहा गुड जॉब पापा..गो अहेड..

गुड जॉब की बच्ची.. बड़ी लव गुरू बनती है

पत्नी की कारस्तानी पर मैं मुस्कुरा उठा

धुर्वा का मायका भी इसी शहर में होने से अक्सर वो अपने पापा से मिलने चली जाया करती थी,संयोग से वह पार्क भी बीच में पड़ता था जहां माँ,धुर्वा के पापा और उनके मित्र वर्मा अंकल टहलने जाया करते थे.. लेकिन कभी सोचा नहीं था कि ऐसा भी संयोग होगा..माँ और वर्मा अंकल इस उम्र में एक दूसरे के एकाकी का सहारा बन जाएंगे…

सच ही है शायद प्रेम उम्र नहीं देखता,सीमाएं नहीं देखता और न प्रेम की कोई सीमा निर्धारित होती है, प्रेम तो असीमित है,जो किसी से भी किसी भी उम्र में हो सकता है..

मैं हक्का-बक्का धुर्वा को देख रहा था..

तभी उसने फिर चुटकी ली..

तो क्या मैं यह रिश्ता पक्का समझूँ ..???

तुम सुधरने वाली नहीं..

कहकर विज्ञान ने धुर्वा को पुनः अपने सीने से लगा लिया..

चलो माँ के पास चलते हैं..

बेटे का कमरा पास था और खुला था इसलिए हल्की-फुल्की आवाजें आ रहीं थीं

रेखा जी ने सबकुछ सुन लिया था शायद,

बहू बेटे की बातें सुन उनकी आँखें भीग चली थी.

दोनों को अपनी ओर आते देख उन्होंने झट अपना चेहरा साफ कर लिया..

विज्ञान ने माँ की हथेली पकड़ उनकी शादी की मौन सहमति दे डाली..थी

रहना साथ होगा लेकिन कहे देता हूँ

रेखा जी रो पड़ी…

धुर्वा उनका कांधा पकड़ उन्हें साहस दे रही थी

जब रेखा जी का मन हल्का हुआ तो

उन्होंने बहू के माथे को चूमते हुए बोलीं, ‘बहू मैं किन शब्दों में तुम्हें धन्यवाद दूँ.तुम बहुत समझदार हो बेटा. अपनी सूझ बूझ से तुमने आज मेरी जिंदगी को एक नया रंग दिया है बचे जीवन में एक नई उर्जा प्रदान की है…

धुर्वा हँसने लगी..

अरे माँ जी मैंने वही किया जो आप अपनी बेटी के लिए करतीं..और अभी आपकी विदाई में देरी है..अभी से पराई न करें मुझे..

पागल…कहकर रेखा जी ने बहू धुर्वा को गले लगा लिया..

आप तो जानती हैं मैंने बचपन में ही अपनी माँ को खो दिया था.हालांकि पापा ने मुझे माँ-बाप दोनों का प्यार दिया फिर भी मेरे मन में माँ के ममत्व की चाह सदैव बनी रही.मन में आस थी कि अपनी सास से माँ का प्यार मिलेगा और सच आपने मेरी इस आस को पूरा कर दिया. शादी कर ससुराल आई तो आपमें मुझे मेरी माँ दिखीं, बिल्कुल निस्वार्थ प्रेम से भरी..फिर धीरे धीरे आपके प्रेम और ममता से सरोवर होती गई कभी लगा ही नहीं कि आप मेरी माँ नहीं…

बहू की बातें सुन रेखा जी आँखें भर आईं..

रेखा जी ने बहू के सर पर हाथ फेर कहा..

सदा सुखी रहो..

धुर्वा भी सास के कांधे पर अपना सर रख कहा…आप भी बहुत अच्छी सास हैं माँ जी..

कितना अच्छा हो कि हर सास बहू आपस में हमेशा माँ बेटी की तरह रहे, उन्हें एक दूसरे का प्यार और सम्मान मिले तो फिर सास बहू के रिश्ते को कभी किसी कसौटियों पर नहीं परखा जाएगा..

सही कहा बेटा…

सास बहू की बातें सुन मैंने इत्मीनान की सांस ली, फिर माँ की तरफ नज़रें दौड़ाई.

सामने खड़ी माँ को देखा तो एक अजब सा रोमांच घुल गया मन में. मुझे माँ व उस जैसे बुजुर्ग माता-पिता से सहानुभूति सी होने लगी….जो एक समय आने पर एकाकी का शिकार हो जाते हैं..

मैं सोच रहा था कि प्रेम के भी कितने रंग होते हैं,क्या अजब था कि मैं मेरी माँ के प्रेम व उसकी नई जिंदगी के नए सफ़र का धुरी व प्रत्यक्ष बनने की ओर अग्रसर था और मेरी पत्नी धुर्वा ..दो जिंदगियों की..#केंद्र बिंदु

विनोद सिन्हा “सुदामा”

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