एक मौका – स्नेह ज्योति : Moral Stories in Hindi

अजी सुनती हो सुबह के सात बज गए है । चाय लें आओ……मुझे ऑफिस जाने में देरी हो रही है । यें है हमारी कहानी के मुख्य पात्र केशव कुमार ! जो पेशे से एक प्राइवट फ़र्म में वकील के पद पर कार्यरत है । यें समझ लो

की इनके बिना ऑफ़िस का कोई काम समय पर नहीं होता । थोड़ी देर में उनकी पत्नी बाला चाय-नाश्ता ला कर मेज पर रख देती है । जिसे करने के बाद वो ऑफ़िस के लिए निकल जाते है ।

केशव का आज तक का रिकॉर्ड है कि वो ऑफ़िस कभी लेट नहीं पहुँचा । बल्कि वो तो चपरासी के आने से भी पहले आ जाता है । अपने बॉस के आने से पहले सब चीज अच्छे से चेक करता । अपनी कर्मठता के कारण ही केशव इस फ़र्म का नम्बर वन वकील है ।

अगर कोई ऑफ़िस में लेट आता तो केशव उसे बहुत सुनाता । जिसके कारण सब केशव को छोटा बॉस कहते थे । शायद उसे इस बात पर अब बहुत ग़ुरूर होने लगा था । अपने बॉस को केस स्टडी कर लूप होल बताना

अपनी क़ाबिलियत को सबके सामने मनवाना उसकी आदत बनती जा रही थी । उसका बॉस भी उस पर विश्वास कर फ़र्म के कई केस उसे लड़ने देते थे ।

एक बार केशव के बॉस को पारिवारिक परेशानी के चलते कुछ दिनों के लिए शहर से बाहर जाना पड़ रहा था । केशव के अलावा और भी वकील थे , पर उसके बॉस ने केशव पर विश्वास कर उसे कई केस सौंपे और उन्हें बड़ी समझदारी से हल करने का निर्देश दे वो चले गए ।

बस फिर क्या केशव के ग़ुरूर की सीमा भी बढ़ गयी । अब तो वो अपने आपको ही बॉस समझने लगा । अगर कोई उसे केस के बारे में कोई सलाह देता तो वो उन्हें चुप करा देता। सब लोग ऑफ़िस में परेशान रहने लगे ।

एक दिन केशव ऑफिस जाने के लिए देरी हो रही थी तो उसकी पत्नी ने कहा -आज आप लेट हो रहे है । जल्दी करिए वरना बहुत ट्रैफिक मिलेगा । यें सुन वो अपनी पत्नी पर चिल्लाया तुम जानती हो क्या कह रही हो ! अब मैं ऑफिस का बॉस हूँ ।

अगर एक दिन देरी से जाऊँगा तो कोई भूचाल नहीं आ जाएगा । लेकिन केशव का यें ग़ुरूर उसे उसकी सोच समझ से दूर करता चला गया । उसे लेट आता देख सब हैरान और परेशान थे । ऑफिस वाले उसके पीछे बात बनाने लगे अगर सर यहाँ पर होते तो यें समय पर आ गया होता ।

लेकिन अब तो यें अपने आपको बॉस समझ मनमाने फ़ैसले करने लगा । उसे जो केस मिला था उसने उस केस में आगे की तारीख़ लें ली । अगले दिन ऑफिस के वकीलों ने उससे कहा कि इसमें तारीख़ लेने की ज़रूरत नहीं थी । हम यें केस आसानी से आज जीत जातें ।

तारीख़ आगे कर तुमने विरोधी पार्टी को जीतने का मौका दे दिया है । यें सब बातें सुन केशव बोला अब तुम मुझे बताओगे कि मुझे क्या करना है और क्या नहीं । जो केस हम आज जीत रहें थे वो कल भी हम ही जीतेंगे ।

उसका यें ग़ुरूर देख ऑफिस के एक वकील ने अपने बॉस को फ़ोन कर सब बताया । जिसे सुनने के बाद राघव तुरंत अपने सब काम निपटा अपने शहर अपने ऑफिस वापस आ गया । उसे ऑफिस में देख सबसे ज़्यादा आश्चर्य केशव को हुआ ।

सर आप तो एक हफ़्ते बाद आने वाले थे आज ……राघव ने केशव को अपने केबिन में बुलाया और खूब डाँटा तुम कौन हो केशव ?? सर मैं…… आपका एक मुलाजिम हूँ । तो यें बात याद रखो तुम यहाँ काम करते हो यहाँ के बॉस नहीं हो जो मनमाने फ़ैसले किए जा रहे हो ।

मैंने तुम्हें एक अथॉरिटी दी थी वो भी कुछ दिनों के लिए । तुम तो अपने आपको बॉस समझ मेरी फ़र्म का और इस फ़र्म में काम करने वालों का नुक़सान कर रहे हो । जो केस हम जीत सकते है तुम उन्हें हारने पर उतारू

हो । नहीं सर ऐसा नहीं होगा ! यें केस भी हम जीतेंगे । दो दिन बाद तारीख़ है । आप चिंता मत कीजिए ।

केशव ने अपने बॉस के आगे यें सब बोल तो दिया । लेकिन अब उसका यक़ीन डगमगाने लगा । दो दिन बाद कोर्ट रूम में वहीं हुआ जिसका डर सबको था । केशव की एक गलती की वजह से उनकी फ़र्म यें केस हार गयी । ऑफिस आकर केशव ने सबसे माफी माँगी

और अपना सारा सामान उठा वहाँ से जाने का निर्णय किया । उसे जाता देख उसके बॉस ने उसे रोका और कहा तुम इसी फ़र्म में काम करोगे । लेकिन सर मैंने तो आपका नुक़सान कर दिया है । माना तुमने हम सबका नुक़सान किया है । नुक़सान की भरपाई तो हम सब मिल कर कर लेंगे ।

लेकिन एक सच्चे और मेहनती सहयोगी को खो नहीं सकते । लेकिन तुम एक शर्त पर काम कर सकते हो ! क्या सर ? हमें हमारा पहले वाला केशव चाहिए यें नया नहीं । यें सब सुन केशव अपने आँसू पोंछ मुस्कुराने लगा ।

अगले दिन से वो ग़ुरूर को कुचल असल ज़िंदगी में सबके साथ कदम से कदम मिला आगे बढ़ने वाला वही पुराना केशव हो गया ।

#ग़ुरूर

स्नेह ज्योति

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