मानसी को अपने ऊपर बहुत घमंड था दिखाने में सुंदर और एक एकहरी काया भगवान ने जैसे फुर्सत में बनाया हो…पढ़ी लिखी हुई बहुत ..घर के काम में भी निपुण.. इसलिए उसे अपने ऊपर बहुत घमंड है ….जेठानी को तो वह गांवार समझती थी …जेठानी सुनिधि गांव की रहने वाली सरल और शांत स्वभाव की सांवला रंग ..फीचर्स शार्प पढ़ी-लिखी ज्यादा नहीं थी।
उसके काम के तरीके से कोई भी खुश नहीं रहता था ..सास हमेशा उसकी उल्टा सीधा कहती रहती थी।
फिर भी वह कभी बुरा नहीं मानती थी दिल लगाकर काम करती और सिखती भी रहती थी.. एक दिन उसने सब्जी बनाई सास ने कहा था कि मिक्स वेज बना लेना.. तो उसे समझ में नहीं आया और उसने लौकी और गिलकी की सब्जी बना डाली।
मसाले भी कम डाले क्योंकि ससुर को तेज मसाले पसंद नहीं थे जब सभी लोग खाना खाने बैठे तो उसकी सब्जी खाकर सभी को बहुत गुस्सा आया ।
और उन्होंने कहा कि गंवार ने यह सब्जी बनाई है सुनिधि एकदम शांत रही और उसे समझ में नहीं आया।
कि मिक्स वेज में क्या-क्या डालना था उसने सास रमा से पूछा भी था कि मम्मी इसमें क्या-क्या डालना पड़ता है।
रमा ने कहा था तेरी मां ने कुछ नहीं सिखाया क्या? और सुनिधि ने अपने मन से सब्जी बना डाली ।
हर दिन की यही कहानी थी मानसी अपने काम में व्यस्त रहती थी कभी किटी पार्टी में जाना तो कहीं सहेलियों के साथ घूमने खाना भी अच्छा बनाती थी।
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लेकिन कभी सुनिधि की मदद नहीं करती थी जब खाना बनाने खड़ी होती थी तो अकेले ही खाना बना लेती थी।
जब सुनिधि किचन में आती थी तो उससे कहती थी कि तुम जो मैं अकेले खाना बनाऊंगी यह देखकर सुनिधि को बहुत बुरा लगने लगा।
वैसे तो उसका स्वभाव था कि वह बुरा बहुत कम मनाती थी ।
एक दिन मानसी किचन में अकेले काम कर रही थी और उसका बेटा बाहर खेल रहा था खेलते खेलते वह बहुत दूर निकल गया।
और उसे ढूंढने के लिए पूरा घर परेशान हो गया किसी को भी नहीं पता था ।
कि ईशान खेलते खेलते कहां चला गया मानसी ने सुनिधि से कहा एक तो तुम कभी किचन में अच्छे से काम नहीं करती और मेरा बेटा बाहर खेल रहा था।
तुमने उसे भी नहीं देखा सुनिधि ने कहा की मानसी तुमने मुझे कहा भी नहीं था कि ईशान को देख लो मैं अपने कपड़े तय कर रही थी।
सभी लोग सुनिधि को चिल्लाने लगे तभी सुनिधि ने चप्पल पहनकर गेट के बाहर दौड़ लगा दी।
उसे गाड़ी चलाना आता नहीं था इसलिए उसने दौड़ लगा दी ईशान को ढूंढने के लिए उसने दिमाग लगाया कि वह कहीं पेड़ के पीछे जाकर तो नहीं छुप गया वापस आकर उसने मैदान में झांक कर देखा तो सच में ईशान बड़े बच्चों के साथ खेल रहा था ।
वहीं दूसरी तरफ मानसी घर पर ही बैठकर चिल्ला चिल्ला कर रो रही थी और उसके पति रमेश गाड़ी लेकर ढूंढने के लिए निकले थे।
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सास मानसी को समझ रही थी कि बेटा ईशान मिल जाएगा अभी और कुछ ही देर में सुनिधि ईशान को गोदी में उठाकर मानसी के पास लेकर आ गई ।
जैसे ही ईशान को देखा उसने तुरंत सुनिधि की गोदी से लेकर अपने गले सीने से चिपका लिया।
और कहने लगी ईशान तुम कहां चले गए थे तभी पीछे से सास रमा ने आकर कहा कि सुनिधि हम लोग तुम्हें बहुत बुरा बुरा कहते रहते हैं।
लेकिन आज तुमने ईशान को ढूंढ कर लाकर हम सब की नजरों में तुम ऊंची उठ गई हो।
मुझे नहीं पता था कि तुम में भी यह हुनर है तुम नहीं जानती और हम लोग घर पर बैठे रहते ईशान को कैसे ढूंढते।
पीछे से मानसी के पति रमेश जाकर कहने लगे की मां मैं तो सभी जगह ढूंढ कर आ गया था।
सुनिधि ने कहा कि मुझे लग ही रहा था कि यह बच्चों की टोली के पीछे पीछे मैदान में चला गया होगा।
सब ने हाथ जोड़कर सुनिधि से माफी मांगी और कहां की वक्त पर अपने ही लोग काम आते हैं इसलिए हमें हमेशा सोच समझ कर सबसे बातें करनी चाहिए।
छोटी सी माफी से रिश्ते सुधर जाते हैं इसलिए हमें माफी मांगने में कभी भी कंजूसी नहीं करनी चाहिए।
विधि जैन