एक माफी ने बिगड़ने से पहले रिश्ते सुधार दिए – प्रतिमा श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

“दीदी आपका राजू मेरी बेटी सुहाना को हमेशा तंग करता रहता है । ये क्या बात हुई माना हमारे पास ज्यादा रुपया – पैसा नहीं है तो क्या हम और हमारा परिवार आपके गुलाम बन कर रहेंगे ” गुस्से में तमतमाई रिचा अपनी जेठानी गुंजन को भला-बुरा सुनाए जा रही थी। गुंजन सरल स्वभाव की समझदार महिला थी।

वो जानती थी कि रिचा को किसी ना किसी बहाने पर गुंजन को पैसे का ताना देना है। जबकि गुंजन ने अपने और रिचा के बच्चों में कभी भी भेदभाव नहीं किया था। रिचा!” तुम भी बच्चों के झगड़े में पडती हो.. अभी हम तुम बच्चों के चक्कर में लड़ाई कर लेंगे और बच्चे थोड़ी देर में एक हो जाएंगे। मैं राजू को समझाऊंगी की बहन के साथ प्यार से रहे।” गुंजन की बातों का जबाब रिचा के पास होता ही नहीं था क्योंकि उसकी सरलता पर कितना भी चोट पहुंचाए रिचा पर गुंजन सबकुछ हंस कर प्यार से टाल जाती।वो जानती थी कि रिश्ता तोड़ना आसान है पर निभाना कठिन। रिचा जैसी भी हो है तो अपने परिवार का हिस्सा ही

      परिवार में मिलजुल कर रहने में किसी ना किसी को त्याग करना ही पड़ता है और कोई जानबूझ कर झगड़े का मन ही बनाए रहे तो समझदार को अपनी समझदारी से समस्या का समाधान निकालना भी पड़ता है। रिचा बड़ी चालाकी से कामकाज से भी पीछा छुड़ा लेती और बहाने बनाना उसके बाएं हाथ का खेल था। परिवार में सभी उसकी आदत से वाकिफ थे, लेकिन रिचा की नादानियां दिन पर दिन बढ़ती जा रही थी।घर का माहौल बिगडने लगा था।इसका असर बच्चों पर भी दिखाई देने लगा था। गुंजन ने सोचा कि

“हमलोग दूसरी जगह चले जाते हैं।दूर रहने पर शायद रिश्ते सही हो जाएं”। गुंजन ने थोड़ी दूर पर एक घर ले लिया।अब वहां शिफ्ट होना था,तभी एक दिन अचानक से सुहाना खेलते – खेलते बेहोश होकर गिर गई और राजू भागता हुआ अंदर आया… चाची.. चाची सुहाना को कुछ हो गया है। जल्दी चलिए बाहर।” ” तूने ही कुछ शैतानी की होगी मेरी बच्ची के साथ ” रिचा भागती हुई बाहर आई। शोरगुल सुनकर गुंजन भी भागकर बाहर आई।सुहाना!” बेटा क्या हुआ है? उठो ना देखो मम्मा आई है… दीदी सुहाना कुछ बोल क्यों नहीं रही है?””

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रिचा सबसे पहले इसे अंदर ले चलो।”गुंजन भाग कर पानी लेकर आई और सुहाना के चेहरे पर छींटे मारने लगी। पानी का चम्मच जब पिलाने के लिए मुंह में लगाई तो, सुहाना के दांत जाम हो गए थे। गुंजन रिचा घबरा गई। गुंजन ने जल्दी से कार निकाली और रिचा को लेकर अस्पताल पहुंची। उसने पति राजेश को और देवर राकेश को जल्दी से अस्पताल पहुंचने को कहा। रिचा का रो – रो कर बुरा हाल हो गया था।राजू चाची का हांथ थाम कर सांत्वना देने की कोशिश कर रहा था। चाची!” डॉक्टर अभी सुई लगा देंगे तो सुहाना ठीक हो जाएगी।”

तभी डॉक्टर सुशीला ने आकर बताया कि,” सुहाना अभी ठीक है। गर्मी की वजह से वो चक्कर खाकर गिर गई थी। मैंने और भी जांच करवाई है,कल तक सारे रिपोर्ट आ जाएगी।मेरा तजुर्बा कहता है कि कोई घबराने की बात नहीं है।” सुहाना घर आ गई थी।अब उसे बेहतर महसूस हो रहा था। गुंजन ने जल्दी से सुहाना के लिए सूप बनाया और रिचा के लिए चाय बनाई।

रिचा गुंजन से गले लग कर फूट – फूट कर रोने लगी। अरे रिचा!” सुहाना ठीक है।”

” दीदी मुझे माफ कर दीजिए। मैं कितनी नासमझ थी कि हमेशा आपके गुण और पैसे से जलती ही रही पर आपने कभी भी मेरे साथ बुरा बर्ताव नहीं किया।आज सुहाना की तबीयत खराब होने पर आपने बिना सोचे अपने बच्चे की तरह देख भाल की। सचमुच दीदी आप बहुत अच्छी हैं..हो सके तो मुझे माफ करके हमारे साथ ही रहिए।”

गुंजन घर की बड़ी तो थी ही और अपने रिश्ते को बांधना भी जानती थी। ” तुम परेशान नहीं हो परिवार ही एक दूसरे के काम आता है।” ‘रिचा की एक माफी ने बिगड़ने से पहले रिश्ते सुधार दिए।’ रिश्तों की अहमियत अब उसको समझ में आ चुकी थी।अब एक ही छत के नीचे एक दूसरे के सुख-दुख को सांझा करके सब खुश थे।

 

                        प्रतिमा श्रीवास्तव

                        नोएडा यूपी

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