सुप्रिया हाथों में मिठाई का पैकेट लेकर घर के बाहर बेल बजाकर दरवाज़ा के खुलने का इंतज़ार कर रही थी । जैसे ही दरवाज़ा खुला उसने सासु माँ के पैर छूकर उन्हें गले लगाते हुए कहा माँ मुझे प्रमोशन मिल गया है ।
वह भी आपके कारण मुँह मीठा कीजिए ना कहते हुए उन्हें लड्डू खिलाया । उसी समय बच्चे भी अंदर से आए तो उन्हें भी मिठाई खिलाकर गोद में बिठाया । आज वह बहुत खुश थी ।
उसके घर पर जब से सास ससुर रहने के लिए आए हैं तब से ही उसे सुकून की ज़िंदगी जीने को मिलने लगा था । वह ऑफिस में काम भी अच्छे से करने लगी थी । सासु माँ को जब उसने बताया था कि बच्चों की बीमारियों की वजह से उसे ऑफिस से आए दिन छुट्टी लेनी पड़ती थी। जिसके कारण उसका रिकार्ड अच्छा नहीं है कहकर तीन साल से प्रमोशन रुका हुआ है ।
उस समय सासु माँ ने कहा था कि मैं हूँ ना तुम्हारे घर और बच्चों को सँभाल लूँगी तुम अपने काम पर ध्यान दो बस उसका ही परिणाम है कि आज मुझे प्रमोशन मिल गया है ।
उसे ऑफिस से घर पर आते ही साफ सुथरा घर मिलता है और साफ सुथरे स्वस्थ बच्चे मिलते हैं जो कभी हमेशा बीमार रहते थे और उन्हें लेकर उसे डॉक्टरों के पीछे भागना पड़ता था । आज वे ही बच्चे इतने खुश और स्वस्थ रहते हैं कि उन्हें देखकर दिल खुश हो जाता है ।
उसे अब ना बच्चों की फिक्र और ना ही घर की चिंता थी अपने आज के निर्णय पर उसे गर्व महसूस हुआ साथ ही शर्मिंदगी भी महसूस होती है कि सासु माँ के साथ उसका बर्ताव कितना बुरा था उन्होंने बड़प्पन दिखाते हुए मुझे माफ कर दिया है और यह भी अच्छा हुआ कि समय रहते हुए उसने सासु माँ से माफी माँग ली और एक माफी ने बिगड़ते हुए रिश्ते को बचा लिया था ।
उसे वे दिन याद आए जब वह दोनों बच्चों को लेकर ऑफिस से आकर बड़ी मुश्किल से घर का ताला खोलकर घर में आती थी । बच्चे आते ही भूख की रट लगाते थे । हाथ पैर धोकर सीधे रसोई में जाकर दोनों के लिए दूध बनाकर देती थी और खुद के लिए चाय बनाने की हिम्मत नहीं होती थी और वह सोफे पर निढाल हो बैठ जाती थी । उसे मालूम है कि यह आराम ज़्यादा देर तक नहीं मिलने वाला है क्योंकि बच्चों के लिए खाना बनाना है ।
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संजय के ऑफिस से आते ही उसने उसे भी अपने प्रमोशन के बारे में बताया और सासु माँ से कहा कि आज हम बाहर जाकर खाना खाएँगे ।
संजय ने रात को सोते समय सुप्रिया से कहा कि वो दिन याद करो सुप्रिया जब तुम्हें माँ पापा बिल्कुल पसंद नहीं आते थे।
जब भी मैं उन्हें यहाँ लाने की बात करता था तो तुम मुझसे लड़ पड़ती थी एक बार तो बच्चों को लेकर मायके भी चली गई थी ।
सुप्रिया ने कहा तो कुछ नहीं पर अपने दिल ही दिल में सोच रही थी कि सचमुच मैं कितनी मतलबी थी । आज भी याद है जब मैं शादी करके संजय के घर आई तो घर पूरा भरा हुआ था । ससुर सरकारी स्कूल में गणित पढ़ाया करते थे ननंद सिमी इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही थी और देवर राघव लॉ कॉलेज में प्रथम वर्ष की पढ़ाई कर रहा था । हमारे घर में दो ही कमरे एक हॉल और एक रसोई है । संजय के साथ मुझे बात करने के लिए प्राइवेसी नहीं मिलती थी । घर में सबके लिए खाना नाश्ता लंच बॉक्स सब कुछ सास ही बना लेती थी ।
एक दिन संजय ने सुप्रिया से कहा कि तुम सुबह उठकर माँ की मदद कर सकती हो वे अकेली ही सारे काम करती हैं ।
सुप्रिया- आपकी बहनें भी तो माँ की मदद नहीं करती हैं फिर आप मुझसे ऐसी उम्मीद कैसे रखते हैं कि मैं आपकी माँ की मदद करूँ ।
संजय- वे तो अभी छोटी हैं सुप्रिया और पढ़ रही हैं तो उनके पास समय कहाँ मिलेगा । तुम नौकरी करती हो इसलिए थोड़ा समय उन्हें दे सकती हो ।
मैंने दूसरे दिन सुबह सासु माँ से कह दिया था कि शाम का खाना अब से मैं बना दिया करूँगी । उनसे कह तो दिया था परंतु हर रोज मैं ऑफिस से देर से आती थी जिसके कारण सासू माँ को ही खाना बनाना पड़ रहा था ।
इसी तरह से रोज के झगड़ों से झूझते हुए ही दो साल बीत गए थे और मैं एक खूबसूरत सी बेटी की माँ बन गई थी । माँ के यहाँ तीन महीने रहकर वापस ससुराल आ गई थी ।
मेरे ऑफिस जाते ही सासु माँ को घर का सारा काम करने के साथ बच्ची को भी सँभालना पड़ रहा था । एक दिन सासु माँ ने कहा कि देखो सुप्रिया तुम सुबह जल्दी उठ कर मेरी मदद कर दिया करो मैं अकेले इतने सारे काम नहीं कर सकती हूँ। मैं संजय से रोज उनकी शिकायत करने लगी हमारे बीच के झगड़े बढ़ते जा रहे थे तो सासु माँ ने संजय से कहा कि तुम दोनों अलग जाकर रहो ताकि रोज का क्लेश ख़त्म हो जाए । संजय ने उनकी बात सुनी और हम दोनों अलग जाकर रहने लगे मुझे हमेशा इस बात का बुरा लगता था कि सासु माँ ने हमें घर से बाहर कर दिया है।
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कुछ समय पश्चात ननंद की शादी हो गई थी और वो बैंगलोर में रहने लगी और देवर अपनी पढ़ाई पूरी करके नौकरी करने लगा और शादी करके अहमदाबाद चला गया था।
सासु माँ और ससुर जी अकेले रहने लगे थे । संजय ने एक दिन कहा कि माँ पिताजी की उम्र बढ़ती जा रही है उन्हें अपने पास बुला लेते हैं ।
मैंने साफ कह दिया था कि जिन लोगों ने हमें घर से बाहर निकाल दिया है उन्हें मैं अपने घर नहीं आने दूँगी । इस बीच हमारा बेटा हो गया था । इन दोनों बच्चों को लेकर घर और ऑफिस के काम करने में मुझे तकलीफ़ हो रही थी ।
संजय बार-बार कहने लगे कि मैं उनका बड़ा बेटा हूँ माता-पिता की देखभाल करना मेरी ज़िम्मेदारी है । उसकी बातों को सुनकर मैं भी बच्चों के बारे में सोचने लगी और सासू माँ को चिट्ठी लिखी और उनसे अपने किए की माफ़ी माँगी थी । उसका ही नतीजा यह है कि मेरे बच्चे और मेरे घर को सासु माँ ने सँभाल लिया और मेरी गलती को माफ करके हमारे रिश्ते को बचा लिया था ।
यह सब सोचते हुए मैं रात भर सो ना सकी थी । इसी बीच अलार्म बज गया याने सुबह के छह बज गए हैं । मैं फ्रेश होकर बाहर निकल कर आई और सासु माँ के साथ बालकनी में बैठ कर चाय पीने लगी ।
के कामेश्वरी