“भरा-पूरा परिवार– रिश्ते महकते रहते थे उस परिवार में– कभी दादी बोलती कि,” ऐ– बिटिया– जरा सुनो तो,” तो कभी चाचा चिल्लाते,” भई– थोड़ी देर हमारे पास भी बैठ बतियाया करो मुन्नु,” सब बच्चों के घर के प्यारे प्यारे नाम थे और घर में सब उन्हीं प्रेम भरे नामों से बुलाया करते थे।बड़ी रौनक वाला घर था।जो भी आता आकर बड़ा खुश होता सब मिल-जुलकर आने वाला का आदर करते थे।
धीरे धीरे बच्चे बड़े होते गए– बिटिया अब मनीषा हो गई और मुन्ना का नाम विकास होगया।अब सब बच्चों को उनके नामों से बुलाने लगे।
घर का कपड़े का व्यापार था– पुश्तैनी– पीढ़ियों से चला आरहा व्यापार था।अब विकास भी दुकान संभालने लगा और एक दो साल में ही वो पारंगत होगया अपने काम में।
अब उसके लिए रिश्ते आने लगे — उसने काम संभाल रखा था और विकास व्यवहार कुशल भी था।अपने ग्राहकों से बड़ी नरमी और तमीज से बात करता था।ऐसे ही एक दिन एक बुजुर्ग आये कुछ लेने के लिए और शाम को वे विकास के घर पहुँच गए अपनी पोती सुषमा का रिश्ता लेकर। उनकी पोती भी बहुत अच्छी थी।सब घरवालों को लड़की पसंद आगई और कुछ ही दिन में संबध पक्का होगया। और फिर पंडित जी ने अगले महीने का मुहूर्त निकाल दिया। और वो घड़ी भी आगई दोनों विवाह-बंधन में बंध गए।
सुषमा ने आते ही थोड़े दिन बाद सब काम अच्छे से संभाल लिया।वो सबका बहुत ख्याल रखती थी।अपनी छोटी ननद मनीषा को तो अपनी छोटी बहन ही मानती थी– उसकी हर छोटी बड़ी जरूरत का ख्याल रखती थी।मनीषा भी बहुत अच्छी थी लेकिन थोड़ी जिद्दी थी।किसी बात की जिद्द पकड़कर बैठ जाती थी तो फिर मानते नही थी जब तक उसकी बात पूरी नही होती।
एकबार सुषमा और विकास कहीं घूमने जारहे थे।उन्होंने मनीषा से भी कहा तो माँ ने मना करदिया कि,” ये जायेगी तो चार दिन की पढ़ाई खराब होगी– तुम लोग चले जाओ बेटा,” और वे दोनों चले गए घूमने।
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चार दिन बाद जब लौटकर आये तो सबके लिए सुंदर सुंदर उपहार लाये।सब बहुत खुश थे लेकिन मनीषा थोड़ी गुस्सा थी –जब सुषमा ने उसका उपहार दिया तो उसने उठाकर फेंक दिया कि,” मुझे नही चाहिए ये उपहार–कहाँ से उठा लाये मेरे लिए इतना बेकार उपहार, ” और कमरें का दरवाजा बंद करलिया।सुषमा को बहुत दुख हुआ और वो दो दिन तक रोती रही कि,” हाय– हम दीदी को साथ क्यों नही लेगये– कितनी नाराज होगई हैं वे मुझसे,”और सुषमा ने खाना भी नही खाया ठीक तरह– बहुत उदास होगई वो कि एक बहन मिली थी वो भी रूठ गई।
उधर मनीषा को माँ ने प्यार से अपने पास बैठाया और कहा कि,’ क्या भाभी ने तुमसे चलने के लिए नही कहा था– हमने ही नही भेजा था तुम्हे क्योंकि तुम्हारे भैया भाभी कहीं घूमने नही गए थे– तुमने उनका उपहार फेंक कर अच्छा नही किया बिटिया– अब मेरे कहने से तुम भाभी से माफी मांग लो और उपहार लो,” मनीषा को माँ की बात सुनकर अपनी गलती समझ आगई और उसने भाभी के गले लगकर माफी मांगी और अपना उपहार भी लेलिया।
एक माफी ने बिगड़ने से पहले रिश्ते सुधार दिये।
अब दोनों पहले की तरह फिर हँसते-खेलते रहने लगीं–
पूरा परिवार आनंदित था अपनी प्यारी बहुरिया से।।
लेखिका:
डॉ आभा माहेश्वरी अलीगढ