एक माफ़ी ने बिगड़ने से पहले रिश्ते सुधार दिए – रश्मि प्रकाश

रोते रोते कब राशि की आँख लग गई थी उसे पता ही नहीं चला था… अचानक से पास में ही सो रहे उसके दस दिन के बेटे कुश के उठकर रोने की आवाज सुन उसकी आँख खुल गई…. उसे छाती से चिपका दूध पिलाने लगी  और वो दूध पीते पीते फिर से सो गया।

राशि आज घर के बिगड़े माहौल को याद कर फिर से रूआंसी हो गई…. लग रहा था बेटी के रूप में जन्म लेकर ….किसी के घर की बहूबन कर आना सबसे बड़ी गलती होती हैं ।

तभी पति निकुंज कमरे में आए और बोले,‘‘ राशि…. तुम इस तरह मन दुखी मत करो…..माँ की शुरू से आदत रही है ….उसे बस ऐसालगता है वो जो बोल रही है बस वही सही है…..देखती तो हो पापा भी उसके आगे कुछ नहीं बोल पाते… जरा बोलने को हो तो माँ फिरशांत नहीं होती और पूरे घर का माहौल बिगड़ जाता ये सब देख पापा मौन साधे रहते हैं……फिर मैं छोटा होकर क्या ही बोलूंउनको…..बस हम सब चुप रह जाते कि घर का माहौल अच्छा बना रहे।”पास आकर सिर पर हाथ फेरते प्यार भरी नजरों से देखतेनिकुंज को देख राशि उसका हाथ पकड़ कर पास बिठा ली

‘‘ निकुंज आपको भी लगता है क्या …मेरे घर वालों की पसंद अच्छी नहीं है और आपने मुझसे शादी कर के गलती कर दी?‘‘ रोते हुएराशि ने निकुंज से पूछा

‘‘ अरे नहीं राशि… बिलकुल भी नहीं…..माना की हमारी अरेंज मैरिज हुई है पर मैं तुमसे मिलने के बाद ही शादी के लिए हाँ बोला था….तो ….तुम ये कैसे सोच सकती हो तुम मेरी पसंद नहीं हो ….बोल तो रहा हूं माँ की बात को दिल पर मत लो….अभी तुम्हारा शरीर भीकमजोर है…..इन बातों को सोचोगी तो तबियत खराब हो जाएगी……फिर कुश की देखभाल भी तुम्हें ही करनी है।‘‘ निकुंज ने कुश कोनिहारते हुए कहा

‘‘निकुंज एक बात कहूँ……प्लीज़ मुझे आप अपने साथ ही ले कर चल चलिए ना….. मैं सोच कर तो यही आई थी आपके साथ ही यहाँसे जाना होगा पर आपने मुझे यहाँ एक महीने रूकने की बात कह कर मुझे मजबूर सा कर दिया है…..क्यों बोलें कुछ दिन कुश भी दादादादी के साथ रह लेगा…..पर अब मुझे नही लगता की मैं यहाँ पर रह भी पाऊँगी…..दो साल हो गए हमारी शादी को …. मैं माँ की बातका कभी बुरा नही मानी……पर इस बार माँ ने सबके सामने मेरे मायके वालों को सुना दिया जो मुझे जरा भी अच्छा नहीं लगा…….आपतो कम से कम मुझे समझिए।”राशि विनती सी करती हुई बोली

‘‘राशि ये बेकार की बातें मत करो…..अब कुछ दिनों तक तुमको  यहाँ रहना ही होगा…..ऐसे कैसे और क्या बोल कर साथ ले जाऊंगाजबकि मैंने खुद आगे बढ़कर बोल दिया था कि राशि और कुश को महीने भर बाद लेकर जाऊँगा।” निकुंज खीझते हुए बोल कमरे सेनिकल गया 

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राशि सोचने लगी,“कितनी खुश थी वो …..पहली बार माँ बनने वाली थी…..डिलीवरी के लिए उसकी माँ सुमिता जी ने बहुत कहा मेरेपास आ जा….अच्छे से ध्यान रखूंगी पर मायका छोटे शहर में होने के कारण सासु माँ सुनंदा जी ने मना कर दिया था….वो अपने पासआने कह  को रही थी पर निकुंज ने दोनों जगह जाने से मना करते हुए कह दिया कि वो इधर ही रहेंगे क्योंकि इस शहर में दोनों जगहों सेज्यादा अच्छी सुविधा है कोई भी दिक्कत हुई तो डॉक्टर तुरंत मिल जाएँगे…….भगवान की दया से नार्मल डिलीवरी हुई और बेटा भीस्वस्थ ही था…..

 तब सुनंदा जी ने कहा,“बहू बच्चा तो वहां हो गया पर छठी का आयोजन यहाँ हमारे पास ही होगा…… सभी रिश्तेदारों को बुला करमनाया जाता है तो तुम पाँच दिन बाद यहाँ आ जाना।”

जब वो यहां आए तो निकुंज को माँ ताने दे कर सुनाने लगी ,“जरूर बीबी ने कहा होगा मुझे नहीं जाना ससुराल तभी तू नही आया…..आजकल सब बीबी की ही सुनते है…..माँ की तो कोई सुनता ही नही।”

“अरे नहीं माँ, वहां सुविधाएं उपलब्ध थी इसलिए डिलीवरी उधर ही करवा दिया…..देखो तुमने कहा तो हम आ गए हैं ना अब राशि एकमहीने रहेगी तुम्हारे पास।‘‘ बिना राशि से कुछ पूछे निकुंज ने माँ से बोल दिया था

छठी भोज में लगभग सभी रिश्तेदारों को न्योता दिया गया था…. राशि के मायके से भी लोग आए हुए थे…..उसकी माँ ने अपनी तरफ सेकोई कमी ना रखी…..बेटी के सास ससुर, बेटी दामाद के साथ नाती के भी ढेरों कपड़े ले कर आई थी…..नाती के लिए सोने कीचेन,झूला, खिलौने, पता नही क्या क्या सामान साथ लाई थी ।

ससुराल पक्ष के सब लोग कह रहे थे निकुंज के ससुराल वालों ने कितना कुछ दिया है…..पर एक इंसान ऐसा भी था जिसे लग रहा थाराशि के घरवालों ने कुश की छठी के लिए जो भी कपड़े, सामान दिए हैं वो सब लो स्टैण्डर्ड के है…..वो थी सुनंदा जी राशि की सासुमाँ…… वो तो कुश के लिए जो सोने की चैन उसकी नानी ने दिया उसे भी देखते हुए सुनंदा जी बोली,“कितनी हल्की चेन दी है…..मेरापोता ऐसे बेकार कपड़े और ये हल्की चेन कभी नही पहनेंगा।” 

घर में इतने लोगों के सामने बोल कर वो तो चली गईं थीं और राशि की माँ बेचारी चुपचाप नजरे झुकाए बेटी का हाथ थामे खड़ी रह गईथी। 

‘‘ बेटा, हमने तो अपनी तरफ से बहुत अच्छा ही करने की कोशिश की है पर पता नहीं समधन जी को पसंद क्यों नहीं आया…..कोई बातनही हम बाद में भारी चेन बनवा कर अपने नाती को दे देंगे ….अब हम लोग भी निकलते हैं।”कहकर सुमिता जी जाने लगी

‘‘ पर माँ तुम तो रहने वाली थी ना दो चार दिन आज सुबह ही आई अब रात को ही निकल जाओगी….. दो दिन रुको ना।” राशि माँ कोरूकने के लिए बोल रही थी पर सुमिता जी वो अब वहां कैसे रूक सकती थी जहाँ उन्हें बेइज़्ज़ती महसूस करा दिया गया हो 

माँ के जाने के बाद से ही राशि का मन बहुत दुखी हो गया था और वो कमरे में जाकर रो रही थी….

दो दिन बाद निकुंज भी चले जाएँगे….मैं यहां कैसे रहूँगी…..कभी रहने का मौका भी नहीं मिला था…. जब  भी यहाँ आती थी दोनों साथआते और साथ चले जाते थे…..पहली बार कुश को लेकर उसे रहना था …..वो भी एक महीने के लिए ये सोच सोच कर ही राशि कीहालत खराब होने लगी।

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राशि को अभी कुछ दिनों तक कोई काम नहीं करना था….वो बस अपने कमरे में ही पड़ी रहती थी और कुश की मालिश ये सब करतीरहती।

आज उसकी मौसी सास जाने वाली थी तो वो राशि से मिलने कमरे में आई…..पोते को देखकर कुछ पैसे देते हुए बोली,‘‘ बहू मैं जोकपड़े लेकर आई थी वो नहीं दे सकती, इसलिए पैसे दे रही हूं तुम मेरे पोते के लिए कुछ अच्छा सा खरीद लेना।‘‘ मौसी सास ने कहा

‘‘ ये आप क्या कर रही है मौसी जी, बस अपना आशीर्वाद दीजिए इसे….और जो कपड़े आप इतने प्यार से लेकर आई है वही दीजिएपैसे की कोई जरूरत नही है।“ राशि अपनी मौसी सास से बोली

‘‘ अरे नहीं बहू…..तेरी सास को कहाँ पसंद आएंगे वो कपड़े!! जब तेरी माँ शहर से इतना सारा और इतना अच्छा  सामान लेकर आई वोतो उसे पसंद ही ना आया तो हम तो गांव से आए हैं उधर के कपड़े कहां तेरी सास को पसंद आने वाले है…..बस तू अच्छा सा कुछ लेलेना ।”कहकर पोते को प्यार से निहारते आशीर्वाद देते हुए मौसी सास जाने को मुड़ी ही थी कि सामने राशि की सासु माँ सुनंदा जीनजरें झुकाए खड़ी थी

‘‘ जीजी, मुझे माफ कर दो…..मैं तो सोच भी नहीं सकती थी मेरी  कही बात मेरी अपनी बड़ी जीजी के दिल में इस कदर चुभ गई है किवो मेरे पोते के लिए अपने साथ लाया कपड़ा देने में झिझक रही है….आप वही दो जीजी जो आप प्यार से लेकर आई है…..मेरा पोताजरूर पहनेगा।” राशि की सास सुनंदा जी ने कहा 

‘‘ देख छोटी मैं तो तेरी बहन हूँ…..मन में कोई बात चुभ भी गई तो निकाल लूंगी वैसे भी तेरे पास किसी फंक्शन में ही आना होताहै…..तुम हमेशा ऐसे ही करोगी तो हो सकता कल को मैं ना भी आऊँ…..हो सकता है तुझे उससे कोई फर्क  भी ना पड़े पर ये तो तेरी बहूहै और इसके घरवालों का सम्मान करना तेरी जिम्मेदारी…..अगर कल को राशि निकुंज से तुम सब के लिए बुरा बोलने लगे तो ना निकुंजबर्दाश्त करेगा ना तुम लोग…..फिर इसके घरवालों के लिए इसके सामने ही बुरा बोल कर अपनी बहू का दिल दुखा कर तू कैसे उम्मीदकरती है कि वो तेरा सम्मान करे…..वो तो बहू का बड़प्पन है जो कुछ ना बोली और  मैंने तो इसकी माँ को जाते वक्त देखा बेचारी आँखोमें अपमान और आँसू लेकर तेरे यहाँ से गई हैं और तो और जो राशि तेरे पास रूकना चाह रही थी वो भी तेरे व्यवहार से डरकर जाने कीसोच कर निकुंज से विनती कर रही थी…..वो तो मैं उस दिन बहू की आँखो में आँसू देख मिलने आ रही थी तभी दरवाजे पर ही दोनों कीबात सुन कर रूक गई ……अभी भी वक्त है संभल जाओ……माफी माँगनी ही है तो राशि की माँ से माँगों ….उनका दिल दुखाया हैतुने।”मौसी सास बोल कर अपनी बहन को देखने लगी

‘‘ आप सही कह रही हो जीजी मैं समधन जी से आज ही माफी माँग लूंगी और आप भी मुझे माफ कर दो….बहू तुम भी अपनी सास कोमाफ कर दो।‘‘  सुनंदा जी दुखी स्वर में बोली

‘‘ आप ये क्या कह रही है माँ !! …..हाँ  ये सच है मुझे बात बुरी जरूर लगी थी पर अब आप समझ गई है तो मेरे मन में कोई भी बात नहीरही।” राशि ने कहा और मौसी सास को कृतज्ञतापूर्वक देखने लगी …..“मानो कह रही हो आपने मेरी सास को बिना सामने से कहे हीसमझा दिया।”

राशि कुछ दिनों तक वही रूक गई…..सास को बहन की बात समझ आ गई थी….उन्होंने  राशि की माँ सुमिता जी से माफी माँग लीथी….. 

“ समधन जी हर बेटी की माँ अपनी तरफ़ से सदा अच्छा ही करने की कोशिश करती है…. कभी कुछ कमी रह जाए तो अलग से बोलदीजिएगा….माफ़ी की कोई ज़रूरत नहीं है बस मेरी बेटी को अपनी बहू बेटी मान प्यार दीजिएगा ।” सुमिता जी ने कहा 

“ बिलकुल समधन जी….. अब ऐसी गलती नहीं होगी… बस आप माफ कर दीजिएगा ।” सुनंदा जी ने कहा 

सुमिता जी मन ही मन सोच रही थी बेटी की माँ को कब नाराज़ होकर रहते देखा है….बेटी की ख़ुशियों की ख़ातिर अपमान का घूँट पी जाना पड़ता है ….. और दामाद की माँ माफ़ी माँगे ये तो कभी होता नहीं……फिर भी समधन जी माफ़ी माँग रही है तो बात यही ख़त्म कर रिश्ते सुधारने में ही समझदारी है।”

जो रिश्ते भविष्य में बिगड़ सकते थे उस बिगड़ते रिश्ते को मौसी सास ने अपनी सूझबूझ से सँभाल लिया था जो एक माफ़ी से जल्दी ही सुधर गए…. नहीं तो ये घुन की तरह रिश्ते को अंदर ही अंदर खोखला कर जाते हैं ।

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धन्यवाद

रश्मि प्रकाश

मौलिक रचना 

#माफ़ी

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