रात के घने अंधेरे और निस्तब्धता को चीरती हुई एक बच्चे के रोने की आवाज बहुत देर से आ रही थी । पर लग रहा था कि शहर में रहने वाले लोगों के कान भी दिल की तरह ही बहरे हो चुके थे, सब सुनकर भी अनसुना कर रहे थे ।
तभी उधर से हीरा मां गुजरी और वो ये आवाज़ सुनकर अपने आप को रोक ना सकी और कचरे के ढेर पर पड़े उस बच्चे को उठाकर ले चली । अपने ठिकाने पर जाकर हीरा मां ने देखा कि वह रुई के फाहे सी कोमल एक बच्ची थी, जिसे शायद बेटी के रुप में जन्म लेने की सजा मिली थी, जिसे उसी के जन्मदाता फेंक कर चले गए थे ।
हीरा मां ने उस बच्ची को सीने से लगा लिया और आश्चर्य वो बच्ची भी जो अभी तक गला फाड़कर रो रही थी, एकदम शांत हो टुकुर – टुकुर देखने लगी हीरा मां को।
हीरा मां जो एक किन्नर थी , जब अपनी मांसल आवाज में लोरी गाती तो सुरभि….. हां यही नाम दिया था हीरा मां ने उस बच्ची को, तुरंत चुप हो जाती और नींद के आगोश में समा जाती।
” सो जा मुनिया, तू तो है मेरी दुनिया
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सो जा मुनिया, मेरी दुनिया।।”
मां की लोरी तो वो अमृत है जो बच्चे के कानों से उतरकर दिल तक को तृप्त कर जाती है । इसी तरह से ये लोरी सुन – सुनकर सुरभि अब बड़ी हो गई थी और एक स्कूल में अध्यापिका के पद पर कार्यरत थी । पर अब भी जब तक वह अपनी हीरा मां से ये लोरी ना सुन ले, उसे नींद नहीं आती । उसकी ममत्व पूर्ण आवाज़ और सिर पर थपकी दे देकर सुलाने के अंदाज से सुरभि को असीम सुख और शांति का अनुभव होता और वह गहरी नींद में डूब जाती।
कुछ बर्षो बाद हीरा मां नहीं रहीं पर उनकी वो लोरी सुरभि के कानों में आज भी गूंजती है और उसे इस दुनियां से लड़ने ओर कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति देती है ।
सच ही है, मां बनने के लिए गर्भ-धारण करना ही जरुरी नहीं है, बिना प्रसव – वेदना सहे भी मां बना जा सकता है । ममता और प्यार तो दिल में होना चाहिए । जहां एक ओर सुरभि के पैदा करने वाले मां – बाप उसे कूड़े के ढेर पर पटक गए क्योंकि वो एक लड़की थी वहीं दूसरी ओर हीरा मां ने एक किन्नर होते हुए भी मां बनकर उसे लोरी दी और बाप बनकर अपने पैरों पर खड़े होने लायक बनाया।
।। धन्य है ऐसी मां ।।
नूतन योगेश सक्सेना