एक कुटुंब ऐसा भी – सुनीता मुखर्जी “श्रुति”Moral Stories in Hindi

“चाची..तुम तो रहने ही दो..! मैं कर देता हूंँ प्रथम बोला।” चाची की मदद करने के लिए साक्षी भी दौड़ती हुई आई। मुझे बताओ चाची मैं तुम्हारी मदद करती हूंँ। आज चाची ने रसोई के ऊपर चढ़कर साफ- सफाई का अभियान शुरू कर रखा था। दोनों बच्चे चाची से बहुत स्नेह करते थे। 

“तुम लोग जाकर अपनी पढ़ाई करो…! चाची बोली।”

मैं अकेले ही रसोई साफ कर लूंँगी। जीजी और भाई साहब भी अभी अम्मा का चेकअप करवा कर आते ही होंगे। उसके पहले खाना भी बनाना है। तुम्हारे चाचू भी ठीक ढेड़ बजे ऑफिस से लंच करने के लिए आ जाएंगे। 

मुझे पता है मेरे बच्चों..! चाची का दर्द तुम लोग बिल्कुल नहीं देख सकते हो। 

मिताली अपने ख्यालों में खो गई। चेतन से विवाह पश्चात जब वह इस घर में आई थी। जीजी ने मुझे अपनी छोटी बहन से भी ज्यादा बढ़कर प्यार दिया। उस समय प्रथम बहुत छोटा था, तुतलाते- तुतलाते मुझे चिजी बोलता था। क्योंकि मैं जेठानी को जीजी बोलती थी, इसीलिए प्रथम मुझे चिजी बोलने लगा। उसकी यह बात सुनकर घर के सभी लोगों के चेहरे पर हंँसी फूट पड़ती। 

मिताली और चेतन जब भी कहीं बाहर घूमने जाते, प्रथम उनके साथ जरूर जाता। मिताली भी उसे साथ ले जाने के लिए आतुर रहती। दोनों पति-पत्नी बहुत स्नेह के साथ बच्चे को अपने साथ लेकर जाते थे। रात को अक्सर प्रथम चाची के हाथ से खाना खाकर,वही सो जाता था। कई बार जीजी ले जाती थी…नहीं तो मेरे पास ही सो जाता था। 

इसके बाद साक्षी ने जन्म लिया। साक्षी के आने से ऐसा लग रहा था जैसे पूरा घर संपूर्ण हो गया है। 

साक्षी जब छोटी थी, मैं उसे अपनी इच्छानुसार सजाती, संवारती।

मिताली मायके जाने के लिए जब तैयार होती, तब प्रथम और साक्षी रो-रो कर पूरा घर सिर पर उठा लेते थे। मिताली तब जीजी से पूछती…जीजी क्या मैं बच्चों को अपने साथ मायके ले जाऊंँ ..? जीजी तपाक से बोलती..! बच्चे क्या मेरे अकेले के हैं..? तू भी तो चाची है इनकी, अपने निर्णय खुद लिया कर…! मिताली भी दोनों बच्चों से दूर नहीं रह पाती थी और खुशी-खुशी दोनों बच्चों को लेकर अपने मायके चली जाती। 

अम्मा सुबह-सुबह दोनों बच्चों को लेकर स्कूल बस तक छोड़ने जाती, लेकिन बच्चे चाची के साथ जाने के लिए ठुनकते। बच्चों के स्कूल जाना, उनका होमवर्क करवाने में मदद करना एवं उनके साथ घूमना-फिरना इसके लिए जीजी ने कभी कुछ नहीं बोला। दोनों बच्चों पर मिताली का उतना ही अधिकार था जितना जीजी का। पी टी एम में जीजी अक्सर बोलती… तू ही स्कूल जाकर देख ले…! मिताली खुशी-खुशी बच्चों के स्कूल जाकर टीचर से उनकी परफॉर्मेंस के बारे में बात करती।

अम्मा, जीजी से अक्सर कहती- कि बच्चे, दादी और तुझे ज्यादा पूछते ही नहीं..?  जीजी हंसते हुए कहती… अच्छा ही है मिताली का भी मन लगा रहता है,और बच्चे भी खुश रहते हैं। ऐसा लगता था कि जैसे मिताली उनकी चाची नहीं उनकी मांँ है। 

जीजी मुस्कुराते हुए कहती चाची और मांँ में अन्तर ही कहांँ है अम्मा..?

विवाह के कई वर्ष बीत जाने के पश्चात मिताली और चेतन के कोई संतान नहीं हुई। जीजी ने बड़े से बड़े डॉक्टर को दिखाया लेकिन कोई भी सकारात्मक जवाब नहीं मिला।  कोई भी कहीं डॉक्टर, वैद्य, हकीम बताता, जीजी तुरंत मिताली को लेकर जाती। मंदिरों में जाकर प्रार्थना करती  हे ईश्वर…! मिताली का दिल स्नेह से भरा हुआ है, कम से कम एक बच्चा मेरी मिताली को गोद में डाल दो ..!

जब चारों तरफ से निराश हो गए तब एक दिन मिताली जीजी से बोली – मेरे कोख से बच्चे नहीं जन्मे है, तो क्या  हुआ…?

मेरे घर में दो बच्चे तो हैं…?

बिल्कुल सही कहा मिताली…!

जीजी उनके बारे में सोचो जिनके घर में एक भी बच्चा नहीं है। हम लोग तो बहुत खुश नसीब हैं कि हमारे घर में दो बच्चे हैं…!

घर में अब कोई बच्चे के लिए बात नहीं करता था। पूरा घर दोनों बच्चों के साथ ही मगन रहते थे। चेतन और मिताली को दोनों बच्चे अपने से अलग कभी नहीं लगे। 

बच्चे बड़े हो गए थे। प्रथम ने उच्च माध्यमिक की परीक्षा दी जिसमें वह सफल हो गया एवं जेईई का एग्जाम दिया जिसमें अच्छी रैंकिंग होने के कारण आईआईटी मुंबई का कॉलेज मिला। मिताली फूली नहीं समा रही थी। 

वह समय भी आ गया, जब प्रथम को कॉलेज के लिए भेजना था। पूरे घर में खुशी का माहौल था। मिताली तरह-तरह के नमकीन बनाकर जीजी से बोल रही थी यह भी प्रथम को दे देते हैं, जीजी खट्टी-मीठी नमकीन भी प्रथम को बहुत पसंद है। जीजी उसकी उत्सुकता देखकर मुस्कराते हुए बोली- तुम्हारी जो भी इच्छा हो वह सब दे दो।  

एक बात कहूंँ जीजी..! प्रथम को कॉलेज छोड़ने के लिए मैं और चेतन चल सकते हैं क्या? 

“जीजी ने कहा तुम ऐसा क्यों बोल रही हो..?”

वह जितना मेरा बेटा है, उतना ही तुम्हारा, इसमें पूछना कैसा…? 

“तुम तो अच्छी तरह से जानती हो मिताली…! बच्चे मुझसे ज्यादा तुमसे हिले मिले हैं।”

तुम्हारे भाई साहब ने पहले ही पांच टिकट मुंबई के लिए बुक करवा दी है। 

साक्षी को अम्मा के पास छोड़ दिया। साक्षी साथ जाने के लिए ठुनकने लगी। मिताली ने साक्षी को समझाया कि अगली बार अम्मा और तुम्हें भी साथ लेकर चलेंगे अभी घर खाली नहीं छोड़ सकते बेटा…!

अम्मा और साक्षी घर पर अकेली थी। अम्मा, साक्षी से बोली देख बेटा..; मुझे बहुत ज्यादा खुशी है कि परिवार का प्रत्येक सदस्य एक दूसरे का सम्मान करता है, और सब मर्यादाओं में बंधे हुए हैं। इससे ज्यादा और मुझे क्या खुशी हो सकती है..?

साक्षी..! तेरी मांँ और चाची में बिल्कुल भी फर्क नहीं किया जा सकता है। दोनों इस घर के लिए पूर्ण रूप से समर्पित है।

तुम्हारी चाची, प्रथम और तुम्हें अपने बच्चों से भी बढ़कर ज्यादा चाहती है। साक्षी, तुम हमेशा इस चीज का ध्यान रखना, कभी उनके दिल में ठेस न लगे..! 

साक्षी बोली.. जी अम्मा..!

इस बात का मैं हमेशा ध्यान रखूंँगी। 

कुछ सालों के बाद मिताली ने भी उच्च माध्यमिक परीक्षा पास कर नीट प्रतियोगी परीक्षा में सम्मिलित हुई, और उसका चयन एमबीबीएस में हो गया। 

मिताली दोनों बच्चों के लिए बहुत खुश थी। उसे एक पल के लिए भी कभी नहीं लगा, कि उसकी अपनी कोई औलाद नहीं है। वह प्रथम और साक्षी में ही अपनी संतान के हर रूप को देख रही थी। अगर उसकी खुद की भी औलाद होती तब भी वह वही करती जो प्रथम और साक्षी के लिए कर रही थी। 

दोनों बच्चे दूर कालेज में पढ़ाई कर रहे थे। घर एकदम खाली-खाली सा लगने लगा। मिताली दोनों बच्चों को बहुत याद करती थी।

एक बार साक्षी दो महीने की छुट्टी में आई तो उसने चाची से बताया- कि उसके कालेज में एमबीबीएस करने वाला एक लड़का उससे सीनियर है, वह उसे बेहद पसंद है एवं वह भी उसे पसंद करता हैं। हम लोग विवाह करना चाहते हैं। लेकिन चाची…! मम्मी, पापा क्या इस रिश्ते के लिए तैयार होंगे..?

यह सब कुछ तुम मुझ पर छोड़ दो। मैं, जीजी और भाई साहब से बात करूंँगी। 

दूसरे दिन शाम के समय सभी लोग चाय पी रहे थे। उस समय मिताली ने उचित अवसर देखकर, अपनी बात सभी के सामने रखी। जीजी और भाई साहब… मैं आप लोगों से साक्षी के विवाह के संबंध में कुछ बात करना चाहती हूँ।

मिताली की बात सुनकर सभी अचंभित होकर मिताली की तरफ देखने लगे..! भाई साहब ने कहा- हांँ बोलो बहू, क्या कहना चाहती हो…?

मिताली के कॉलेज में एक लड़का जो उससे एक साल सीनियर है। इसी साल वह पास आउट हुआ है। अगर लड़का और उसका परिवार ठीक-ठाक है तो क्यों न साक्षी के लिए बात आगे बढ़ाई जाए…!

सभी एक दूसरे का मुंँह देखने लगे। भाई साहब ने अम्मा से कहा आप घर की बड़ी हैं, इस संबंध में आपकी क्या राय है…! 

सर्वप्रथम लड़के और उसके परिवार से मिलो। अगर घर और वर सचमुच ठीक है, तो बात आगे बढ़ाने में कोई हर्ज नहीं है..! लड़के के परिवार के विषय में सम्पूर्ण जानकारी हमें ही लेनी है। क्योंकि साक्षी तो सब कुछ नहीं जान पाएगी..!

भाई साहब ने हांँ में सिर हिलाया। इसके बाद भाई साहब ने चेतन की तरफ देखा, चेतन ने कहा भाई साहब सब कुछ ठीक हुआ तो मेरी तरफ से भी हांँ हैं। आखिरी फैसला जीजी के ऊपर निर्भर करता था। जीजी बोली अगर मिताली को साक्षी ने सब कुछ बताया है तो, मिताली हमसे ज्यादा ठीक से समझ पाएगी। 

अगले हफ़्ते सभी लोग मिलकर लड़के वाले के घर गए।  वहां घर,वर सब कुछ पसंद आया और दोनों परिवारों की सहमति से सगाई कर दी गई। 

अम्मा ने एक शर्त रखी, कि विवाह साक्षी के पास आउट होने के बाद ही होगा। यानी एक साल बाद। सभी लोगों ने एक साथ हामी भर दी।

कुछ दिनों के बाद अम्मा की तबियत ज्यादा ही गड़बड़ा गई थी। दोनों बहुएं खूब सेवा कर रही थी। अम्मा को एक बात मन ही मन कचोट रही थी काश..! चेतन और मिताली को भी एक बच्चा हो जाता। लेकिन वह स्पष्ट कभी भी यह बात नहीं बोल पाई, क्योंकि देवरानी- जेठानी में अगाध प्रेम था। 

दोनों बच्चे चाची और अपनी मांँ को बराबर ही मानते थे, इसलिए मिताली और चेतन को कभी बच्चे की कमी महसूस नहीं हुई।

क्या सोच रही हो….अम्मा! जीजी बोली।

पूरा परिवार अम्मा के आसपास बैठा था। अम्मा बारी-बारी से सभी को देख रही थी और बोली मैं अपने जीवन में पूरी तरह से संतुष्ट होकर दुनिया से जा रही हूंँ। तुम देवरानी, जेठानी आपस में एक बहन की तरह हो और भाई-भाई में प्रेम और सम्मान है। आखिर…और मुझे क्या चाहिए??

यह कहते हुए अम्मा ने आंखें मूंँद ली। उनके चेहरे पर संतुष्टि के भाव थे। 

दोनों बच्चे आ गए.. पूरा विधि विधान से अम्मा का क्रिया कर्म किया गया। 

कुछ महीनो के बाद एक दिन मिताली की तबीयत खराब हो गई। उसे लगातार उल्टियां आ रही थी जब जीजी अस्पताल लेकर गई तब डॉक्टर ने बताया….यह तो मांँ बनने वाली है ..! डॉक्टर की यह बात सुनकर जीजी खुशी से फूली नहीं समाई और उन्होंने इधर-उधर कुछ नहीं देखा और अस्पताल में ही नाचने लगी। जैसे उनके जीवन की कोई बहुत बड़ी मुराद पूरी हो गई हो। घर आकर सब लोगों को बताया तो सभी लोगों के चेहरे पर खुशी छा गई।

जीजी अम्मा की फोटो के सामने जाकर बोलीं जरूर… अम्मा तुमने भगवान से जाकर मिताली के लिए कहा होगा, इसीलिए मेरी मिताली की गोद भर गई।

कुछ महीनो के बाद मिताली ने एक चांँद सी बच्ची को जन्म दिया। जीजी, भाई साहब और चेतन तो फूले नहीं समा रहे थे। जीजी ने बच्चे के जन्म की खुशी में एक बहुत बड़ी दावत रखी। आज हमारे घर बहुत साल बाद यह शुभ घड़ी आई है। चेतन बच्ची को दावत में पहनाने के लिए बहुत सुंदर फ्राक लेकर आए। 

“मिताली ने तुरंत वह फ्राक छुपा दी और चेतन से बोली तुरंत जाकर साक्षी और प्रथम के लिए कपड़े लेकर आओ, तब वह यह फ्राक बच्ची को पहनायेगी। हमारे लिए तीनों बच्चे बराबर है।”

चेतन मुस्कुराते हुए बाजार चला गया।

बच्ची के नामकरण के लिए मिताली जेठानी से बोली.. जीजी दोनों बहनों के नाम में मेल होना चाहिए। साक्षी और…. जीजी जोर से बोली… मीनाक्षी। वहां पर उपस्थित सभी लोग ताली बजाकर जोर से हंसने लगे।

मीनाक्षी पूरे घर का खिलौना बन गई। जीजी तो उसे एक पल के लिए भी अपनी गोदी से नीचे नहीं उतारती थी। मिताली से कहा तुम आराम करो। मीनाक्षी की देखभाल की जिम्मेदारी मेरी है। 

प्रथम और साक्षी अपनी छोटी बहन को पाकर फूले नहीं समा रहे थे वह छोटी बहन के लिए पता नहीं क्या-क्या सपने देख रहे थे। मिताली बोली… अपनी छोटी बहन को अपने जैसा योग्य बनाने में तुम लोग मदद करना।

प्रथम और साक्षी में कहा अवश्य चाची..!

– सुनीता मुखर्जी “श्रुति”

लेखिका 

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

हल्दिया, पूर्व मेदिनीपुर, पश्चिम बंगाल

#संयुक्त परिवार

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