“तन्वी और पर्व दोनों ही बच्चों को गाजर का हलवा बहुत पसंद है। जब तक वे दोनों PTM से वापस आएंगे, तब तक हलवा बनकर तैयार हो जाएगा। दोनों बहुत खुश हो जाएंगे।” अपने पोता-पोती के लिए बड़े मनोयोग से हलवा बनाते हुए राधा जी सोच रही हैं।
देख लिया न तुमने! तन्वी के 3 प्रतिशत और पर्व के 5 प्रतिशत अंक पहले से कम आए हैं।
सुना तुमने, क्लास टीचर ने क्या कहा कि आजकल बच्चों के अच्छे परिणाम में माता-पिता की बड़ी भूमिका होती है।
पर तुम्हें तो मोबाइल से फुर्सत नहीं!
टीवी का रिमोट तो हमेशा तुम्हारे हाथ में रहता है!
सारा दिन रील्स तुम देखते हो या मैं!
तुम्हें तो बच्चों का सिलेबस भी ठीक से नहीं पता।
राधा जी के बेटा-बहू ऊंचे स्वर में एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते हुए घर में प्रवेश करते हैं। बच्चों को सहमा हुआ देख राधा जी उन्हें अपने कमरे में ले जाकर हलवा खिलाकर सुला देती हैं। लेकिन बेटा-बहू की आवाजें अभी भी आ रही हैं। राधा जी करें तो क्या करें!
बहुत सोच-विचार कर वह अपने बेटे को आवाज देती हैं, “निपुण, जरा मेरी आंखों में दवाई तो डालना।” तब वे निपुण से कहती हैं, “क्या बात है बेटा? इतनी देर से तुम सविता से क्या कह रहे हो?”
“मां, मैं तो कुछ भी नहीं कह रहा। आप देख नहीं रही कि सविता मुझसे कितनी बहस कर रही है!” निपुण बोला।
“बेटा, जब तुम कुछ भी नहीं कह रहे तो वह अकेले बहस कैसे कर सकती है? बहस के लिए तो दो लोगों का होना और दोनों का बोलना आवश्यक है।” राधा जी ने कहा।
निपुण बोला, “मां, वह मुझसे कह रही है कि मैं सारा दिन ऑफिस की चेयर पर ऐसे ही बैठ कर आ जाता हूं।”
“हां, मैंने भी सुना…….।” राधा जी अभी बोल ही रही थीं कि उनकी बात बीच में काट कर उत्साहित होते हुए निपुण बोला, “वही न मां! मुझसे तो वह समझती नहीं। आप ही समझाइए न उसे, यदि मैं ऐसे ही बैठ कर आ जाता तो मुझे वेतन कौन देता?”
“ठीक है! पर पहले तुम मुझे यह तो बताओ कि तुमने उसे यह क्यों कहा कि तुम दिन भर घर में करती ही क्या हो?” राधा जी ने फिर सवाल किया।
“मां, अगर वह गलत बोलेगी तो मैं भी बोलूंगा ही न।” निपुण ने उत्तर दिया।
राधा जी ने समझाया, “तो फिर गलत तो तुम भी हुए ना। तुम अपनी गलती समझ लोगे तो उसे समझाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। बेटा, जिस दिन वह घर में कुछ करना बंद कर देगी, उस दिन से तुम आराम से ऑफिस नहीं जा पाओगे।”
“मां, फिर उसे भी तो फालतू नहीं बोलना चाहिए।” निपुण बोला।
राधा जी ने आगे कहा, “बेटा, तुम्हें याद है जब तुम्हारे पिताजी कभी गुस्से में होते थे तो मैं चुप ही रहती थी। और एकतरफा गुस्सा झगड़े का रूप ले ही नहीं पाता था। क्योंकि कभी एक हाथ से ताली नहीं बज सकती।”
निपुण याद करते हुए बोला, “हां मां! बिल्कुल याद है। आखिर पिताजी कितनी देर गुस्सा करते। वे जल्दी ही चुप हो जाते थे। पर मां, सविता कभी आपकी तरह चुप नहीं रहेगी। उसे कभी समझ नहीं आएगा कि पति का गुस्सा शांत करने के लिए चुप हो जाना चाहिए।”
राधा जी अपने मन में आए गुस्से को थोड़ा शांत करते हुए बोलीं, “बेटा, तू अब बड़ा हो गया है। नहीं तो अभी तेरा कान मरोड़ देती मैं। यह किस पुस्तक में लिखा है कि पति किसी अच्छे काम की पहल नहीं कर सकता। मैं तुझे चुप रहने के लिए कह रही हूं। जब तू चुप रहेगा तो सविता को अगर गुस्सा आएगा भी तो वह बहस या झगड़े का रूप ले ही नहीं पाएगा।”
“और बेटा, तुम जो ऊर्जा झगड़े में व्यर्थ करते हो, उससे बच्चों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। उस ऊर्जा को बच्चों को संवारने में लगाओ।”
निपुण ने आश्वासन दिया, “जी मां। मैं यह तो नहीं कहूंगा कि मैं बहुत समझदार बन गया हूं, पर ‘ताली एक हाथ से नहीं बजती’, इसका अर्थ अवश्य समझ गया हूं। इसलिए आपका आदेश समझकर मैं चुप रहूंगा और झगड़े की नौबत नहीं आने दूंगा। ऑफिस से आकर कुछ समय बच्चों को अवश्य दूंगा।”
निपुण राधा जी की समझाइश का पालन करने लगा। तो सविता को बहस का कोई अवसर ही नहीं मिला। इस सब का परिणाम यह हुआ कि अगली PTM में उनसे कहा गया, “हम अगले सप्ताह विद्यार्थियों के अभिभावको के लिए एक सैशन रख रहे हैं। कृपया आप दोनों उसमें पेरेंटिंग के टिप्स सबके साथ शेयर करें।”
-सीमा गुप्ता (मौलिक व स्वरचित)
प्रतियोगिता कहावत: #एक हाथ से ताली नहीं बजती।