“पापा आप नहा कर आ जाइए गर्म गर्म फुल्के सैक देती हु”
अवनी ने अखबार पढ़ते 78 वर्षीय सोमेश बाबू को कहा
सोमेश बाबू पहले तो मुस्कुराए फिर बोले ” देखो घड़ी
दीया और चुन्नू का स्कूल टाइम होने वाला है तुम उन्हें संभालो मैं कोई बच्चा थोड़ी ना हु दो फुल्के सैक ओर तुरंत खा लूंगा।
व्यर्थ ही चिंता करती हो?
अवनी ;” अपनी बेटी के होते आप बनायेंगे?”
सोमेश बाबू ;” देखो बेटा अगर ये हाथ पैर चलते रहे ना तो ही ठीक है वर्ना ये शरीर रूपी मशीन खराब हो जाएंगी।”
पापा मम्मी थी तब तो आपको अपने शरीर की तंदुरुस्ती का कभी ख्याल ही नहीं आया अब अचानक क्यों ?
बताओ बताओ गोल गोल आखों को मटकाती हुई अवनी ने प्रश्न दाग दिया।
सोमेश बाबू ने गहरी श्वास ली और बोले ” तुम्हारी मम्मी थी
तो दिन रात ऐसे ही निकल जाते थे कभी लड़ते तो कभी
गुनगुनाते ?
पता ही नहीं चला ।
उस वक्त तो कुछ कहती भी तो नहीं थी अब तो उसकी फोटो ही डाट देती है।
देखो कैसे घूर रही है?
नहीं नई तुम परेशान मत हो मैं तुम्हारे बच्चो को परेशान नहीं करूंगा ना ही बोझ बनूंगा।
मैने थोड़े थोड़े काम करने शुरू कर दिए है और अब पूरे में ही करूंगा ।
अवनी हसी और बोली पापा आप भी ना?
अभी भी मम्मी..…।
तो तुम्हारी मम्मी अभी भी हिदायते देती है कहती है ” आजकल आर्थिक युग है बच्चे वैसे ही जरूरत से ज्यादा व्यस्त रहते है फिर विदेश से आना बार बार संभव भी नहीं।
ओर अवनी पास है तो क्या ?.
उसे परेशान करोगे?
मैं तो देख रही हर घर में खट पट क्लेश रहता है और सम्मान की तो पूछो मत धज्जियां उड़ रही है।
अच्छा है खुद का काम खुद करो और व्यस्त रहो,मस्त रहो।
किसी पर भी बोझ नहीं बनोगे तो इज्जत रह जाएंगी।
अवनी पापा की बात सुनकर मन ही मन मुस्कुराती हुई सोचती है ” मम्मी को मिस करते है तो अभी भी हर काम में मम्मी का नाम लगा देते है।
फिर खुश होकर सोचती है तभी तो आज भी समाज में पापा
का नाम आदर के साथ पुकारा जाता है।
ओर बात सही भी है।
अचानक पापा की आवाज सुनकर विचारों की श्रृंखला टूट कर बिखर गई।
सोमेश बाबू बोल रहे थे ” अब घर जाओ बच्चो को संभालो,सास श्वसुर का भी ध्यान रखा करो।
वरना तुम्हारी मम्मी मुझ पर बरस पड़ेगी।
हल्की फुल्की मजाक से बोझिल मन भी हल्का हो जाता है।
एक बेटा भावेश अपनी पत्नी और बच्ची के साथ कैनेडा रहता है।
उसने भी सोमेश बाबू को साथ चलने के लिए खूब कहा पर सोमेश बाबू उम्र के इस दौर में अपना देश अपनी जमी नहीं छोड़ना चाहते थे।
बेटी पास ही रहती थी।
आती जाती संभाल लेती थी।
सोमेश बाबू नहा कर आए ही थे कि डोर बेल बजने लगी।
सोमेशबाबू ने टीशर्ट पहनी और दरवाजा खोल दिया सामने अपने मित्र जिलेश भाई को देखा तो गर्म जोशी से बोले “आओ आओ भाई कई दिनों बाद देखा।
कॉर्नर टेबल पर रखे अपने चश्मे को साफ कर पहना ओर फिर जिलेश भाई के पास बैठ गए।
क्या बात है?
कोई परेशानी?
नहीं नहीं वो तो काफी दिन हो गए ना…इसीलिए चला आया।
वो तो अच्छा किया ओर बताओ कैसी चल रही है?
सोमेश बाबू ने जिलेश के कंधे पर हाथ रख कर पूछा
जिलेश भाई ;” यार ये रोज रोज के घर कलह से परेशान हु
कहने को चार चार लड़के है ।
पर सम्मान दो कौड़ी का नहीं रहा?
सोमेश बाबू बोले ” अपना तो एक ही उसूल है अपना सम्मान अपने हाथ में ।
अवनी कह रही थी कि फुल्के सैक देती हु पर नहीं भाई
अपन अपना काम खुद करेंगे और काम करने से शरीर घिसेगा नहीं बल्कि ओर तरोताजगी रहेंगी।
अब देख सुबह साफ सफाई का काम करता हु फिर मेडिटेशन और उसके बाद चाय की चुस्कियों के साथ अखबार पढ़ता हु।
फिर आस पास के बच्चे पढ़ने आ जाते है उन्हें पढ़ाता हु।
उसके बाद मनपसंद सब्जी बना कर
गर्म फुल्के खा लेता हु।”
जिलेश ;” आपको थकान नहीं होती है?
होती है ना? तभी तो गहरी नींद आ जाती है।
तुम्हारा ये फैसला तो मुझे बहुत पसंद आया।
सोमेश बाबू अपनी पत्नी की तस्वीर के आगे खड़े होकर बोले ये फैसला मेरा नहीं इनका है।
जब ये थी तो कभी कुछ नहीं सोचता था।
पर अब भी मुझे अपनी तस्वीर से निकल कर हिदायते देती रहती है।
बच्चे तो कई बार नाराज होते है ” पापा जी हम लोग इतना कमाते है नौकर चाकर रख लीजिए ।
बेटी दामाद भी जिद्द करते है।
फिर थोड़ा मुस्कुरा कर बोले ” मैं उलटवार करता हु क्यों इस रौबदार शरीर से जलते हो क्या?
अरे ,रॉब आत्मविश्वास का होता है और आत्मविश्वास काम का।
तभी जिलेश जी की नजर एक कांच की अलमीरा पर पड़ी
जिसमें हर क्लास की दो दो तीन किताबें सब्जेक्ट वाइस रखी थी।
कुछ प्लास्टिक के डिब्बों में पेंसिल रबड़।
कुछ में छोटी छोटी रंग बिरंगी बाल खिलखिला रही थी।
ओर कुछ कहानियों की किताबें गुनगुना रही थी।
जिलेश जी ;” ये सब?
सोमेश बाबू ;” ट्यूशन पढ़ाता हु कभी बच्चे किताब ,पेन पेंसिल भूल जाते है तो यही से दे देता हु।
ओर प्रोत्साहित करने के लिए कभी बॉल,कभी इनडोर गेम
खेलता हु।
बच्चे भी खुश और मैं भी।
ये सब भी भाभीजी की ही युक्ति होगी ? जिलेश जी ने हस कर कहा।
सोमेश बाबू बोले घर इनका तो युक्ति भी इनकी ।
ये तो हमेशा से ही दिमाग में सवार रही है और रहेंगी।
जिलेश जी ने हंसते हुए मन ही मन खुद भी एक फैसला ले लिया था।
दीपा माथुर