रामेश्वर जी और उनकी पत्नी मनोरमा जी पैकिंग करने में व्यस्त हैं,,।
“क्या कहीं घूमने जा रहे या फ़िर अपनी बेटी के यहाँ जा रहे,,?”
“अजी नहीं,,ये दूसरे घर में शिफ़्ट हो रहे।
अरे वाह, क्या इन्होंने दूसरा मकान भी ले लिया है,,? एक बड़े से मकान में तो पहले से ही रह रहे थे । किसी को कानोकान ख़बर तक नहीं होने दी । शायद दोनों
बच्चों (बेटियों) ने फिनांस किया होगा और गिफ्ट के तौर पर दिया होगा क्योंकि खुद तो रिटायर भी हो चुके हैं और ज़रूरत भी नहीं है। दोनों बेटियों का विवाह कर ही चुके हैं और दोनों ही अपनी-अपनी जगह सेटल हो चुकी हैं,,।” “वाह,,कितने किस्मत वाले हैं रामेश्वर जी भी,,भई, बेटियाँ हो तो ऐसी,,।”
आस-पड़ोस के लोग आपस में इस तरह की चर्चा कर रहे थे। जितने मुँह, उतनी बातें हो रही थी।
“लोग बेवज़ह ही बेटों की चाहत में हाय-तौबा मचाते रहते हैं, बेटियाँ भी बेटों से कम नहीं,,। बेटा हो या बेटी,, सभी के संस्कार अच्छे होने चाहिए। ईश्वर करे सभी की औलाद ऐसी हो।”
फिर किसी ने कहा– “बड़ा मकान लेने की ज़रूरत ही क्या थी,,? रहने वाले तो दो ही हैं पति-पत्नी,। बच्चे तो आयेंगे नहीं रहने,,।”
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“उसपर से इनकी तो दोनों बेटियाँ ही हैं,,। अच्छा था कि जहाँ बरसों से रह रहे थे,, वहीं रहते,,। वहाँ दस लोग जानने-पहचानने वाले हैं,, वक्त-बेवक्त काम आयेंगे,। अभी बुढ़ापे में कहाँ दूसरी जगह जाकर परिचय बढ़ायेंगे।”
जी, हाँ बात तो सही थी। कहने वाले ने कुछ ग़लत भी नहीं कहा था।
रामेश्वर जी इस मकान में रिटायर्मेंट से बरसों पहले से रह रहे थे। वो राज्य सरकार में नौकरी में थे । बड़ी मुश्किल से लोन लेकर बेटियों की उच्च शिक्षा और एक घर बनाया था। उनकी दो बेटियाँ ही थी जो बेटों से कम न थी, दोनों बहुत प्यार करते थे बेटियों से,, लालन-पालन व शिक्षा में कोई कमी न रखी थी,, बेटियों ने भी उनकी मेहनत व परवरिश का मान रखा था। खूब अच्छे रिजल्ट से पास होती थी। बड़ी बेटी कंप्यूटर साइंस से ग्रैजुएशन के बाद एम एस करने कैलीफोर्निया गयी और छोटी ने मेडिकल की पढ़ाई की।
पढ़ाई खत्म होने बाद रामेश्वर जी ने दोनों की शादी भी बहुत धूमधाम से की।
दोनों अपने-आप में बहुत ख़ुश हैं। छोटी बेटी और दामाद पुने में किसी अस्पताल में कार्यरत हैं और बड़ी तो कैलीफोर्निया में ही सेटल हो गयी। उसका पति भी वहीं किसी कंपनी में जी एम है।
रामेश्वर जी खुद पढ़े-लिखे, समझदार व मिलनसार व्यक्ति हैं यहाँ उन्हें बहुत लोग जानते हैं,,। सुख-दुःख सबमें खड़े रहते हैं।
अभी तो पिछले साल की ही बात है,जब मनोरमा जी बीमार हो गयी थी तो पड़ोस वाले रमेश जी और उनके परिवार ने दवा से लेकर खाने-पीने तक का कितना ध्यान रखा था। बेटियाँ तो दो दिन बाद आ पायी थीं,, तब तक इन लोगों ने ही पूरा ख़याल रखा था।
मगर जाने क्या फ़ितूर चढ़ा है कि मकान बदल रहे हैं,,। मगर किसी को क्या पता कि ये उनका फ़ितूर नहीं,, उनकी मजबूरी हो गयी है। जी,हाँ , उनकी मजबूरी,,!!
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उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि एक छोटी सी गलती की इतनी बड़ी सजा मिलेगी और ये सजा भुगतना उनकी मजबूरी बन जायेगी। दरअसल उन्होंने अपनी प्रापर्टी का बंटवारा दोनों बेटियों में कर दिया,। उन्होंने सोचा राम जाने कब बुलावा आ जाये। तो अपने रहते दोनों को उपहार स्वरूप अपना-अपना हिस्सा दे देना चाहते थे, जिससे उनलोगों के जाने के बाद दोनों में किसी तरह का मनमुटाव न हो। बस,,यही भावना उनसे गलती करवा गयी जिसकी सजा भुगतनी पड़ रही है।
अब आप सबको बताती हूँ रामेश्वर जी और उनकी पत्नी के दूसरे मकान में शिफ़्ट होने का राज। जी हाँ,,इसे राज ही कहेंगे,,।
दरअसल आज वो अपने नये मकान में नहीं, बल्कि अपने मकान से किराये के मकान में शिफ़्ट हो रहे हैं,,।
जी,,हाँ,,चौंकने वाली बात तो है,मगर है हकीक़त ,,पूरी तरह सच्चाई है इस बात में।
अब ये घर उनका नहीं रहा, अब ये घर उनकी बड़ी बेटी का है। जी हाँ, प्रापर्टी के बंटवारे में ये घर बड़ी बेटी के हिस्से में आया है, और उसे सारी प्रापर्टी बेचकर कैलीफोर्निया में सेटल होना है, इसलिए ये घर भी बेचना है।
इसीलिए अपने प्यारे पापा को किराये के मकान में शिफ़्ट होने को कह दिया,,उन्हें पेंशन तो मिलती ही है,, इसलिए रहने में कोई दिक्कत भी नहीं होगी।
हर बार बेटों को ही कोसा जाता है,, मगर बेटिया भी आज बेटों से कम नहीं ,,हर मामले में,,।
#मासिक_अप्रैल
मधु झा,,
स्वरचित,,
(v)
सच ही लिखा है आपने आजकल लड़कियों में भी संवेदनशीलता खत्म हो गयी है
मेरे विचार से हर माता पिता को अगर अपनी सम्प्पति बच्चों को देनी ही हो तो वे ऐसी वसीयत बनाएं की उनकी मृत्यु के बाद ही कुछ भी बच्चों का हो ना कि उनके जीते जी