एक बेटे का क्या देखा ? – करुणा मलिक : Moral Stories in Hindi

अम्मा, आज तो सुबह से ही बहू का जी ठीक नहीं….. क्या पता , रात को ही अस्पताल ना जाना पड़ जाए …. आप क्या कह रही थी कि अस्पताल जाने से पहले क्या करना है?

मैं कह रही थी कि एक साड़ी और कुछ रुपये गरिमा के हाथ से कुलदेवी का नाम लेकर मंदिर में रखवा देना …… सब ठीक ठीक हो जाए बस …..बहुत कठिन समय होता है औरत का । 

चलो अम्मा…. अबकी बार तो संजू का परिवार पूरा हो जाएगा। 

क्या मतलब ? देख पुष्पा …. अगर बेटा हुआ तो ठीक है…. नहीं तो, गरिमा के सामने इस बात का ज़िक्र मत कर देना । एक बेटे का क्या देखा ? अरे …. लड़की तो अपने घर चली जाएगी । किट्टू तो रह जाएगा अकेला …… कोई सुख- दुख में खड़े होने वाला चाहिए कि नहीं….

अम्मा,  पहले समय की बात ओर थी …. अब तो समय बदल गया है….. गरिमा के सामने मत कह देना …… इस बात के लिए कभी नहीं मानेगी…. चलो ,ये तो बाद की बात है…. देखेंगे 

मुझे क्या डर पड़ा है उसका  ? जो मेरे मन में है , कहूँगी….एक बार नहीं, हज़ार बार कहूँगी…..

अच्छा ठीक है अम्मा , इन बातों के बारे में बाद में कहसुन लेंगे।

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जैसे ही पुष्पा जी ने देखा कि सास ग़ुस्से में आ गई तो उन्होंने बात पलटने में ही भलाई समझी ।बात यह थी कि उनके छोटे बेटे संजीव की पत्नी गरिमा दूसरी बार बच्चे को जन्म देने वाली थी । शादी के डेढ़ साल बाद बेटा किट्टू पैदा हो गया था और अब उसके तीन साल बाद दूसरे बच्चे की प्लानिंग करके परिवार के पूरे होने की बात कही जा रही थी पर गरिमा की दादी सास चाहती थी कि अगर इस बार भी बेटा हुआ तो ही गरिमा के सामने परिवार के पूरा होने वाली बात का ज़िक्र करें क्योंकि बेटी तो ब्याह कर चली जाएगी, सुख-दुख के लिए दो भाइयों का होना ज़रूरी है । 

उसी रात गरिमा ने एक चाँद सी बेटी को जन्म दिया और दोनों पति- पत्नी ने मन ही मन परिवार पूरा होने के लिए भगवान जी का शुक्रिया अदा किया । पुष्पा जी ने बहू और बेटे को अलग से समझा दिया कि अम्मा के सामने परिवार पूरा होने की बात ना करें….. वरना वो आज से ही बखेड़ा करना शुरू कर देंगी । जब समय आएगा तब की तब देखेंगे । 

पुष्पा जी और उनके पति ने पोती का स्वागत ठीक उसी तरह किया जैसे पोते किट्टू का किया था । हाँ किट्टू के जन्म पर नाचने वाली अम्मा के पैरों में इस बार कुछ ज़्यादा ही दर्द बढ़ गया था । ख़ैर जचगी के चालीस दिन पूरे हुए और गरिमा अपनी स्वाभाविक दिनचर्या पर लौट आई ।

वैसे तो गरिमा ने मेटरनिटी लीव के बाद चाइल्ड केयर लीव ले रखी थी पर कभी-कभी वह अम्मा के पास गुड़िया को लिटाकर आ जाती तो अम्मा उससे बात करते हुए कहती —

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गुडडो….. अपने पीछे भाई को लेकर आना और भागों वाली बन जाना । दो भाइयों की लाड़ली बनकर इतराना ।

बस गरिमा चिढ़ जाती और तुरंत अपना काम छोड़कर गुड़िया को उनके पास से उठा लाती । उसने गुड़िया को अम्मा के पास लिटाना भी छोड़ दिया….. कभी पुष्पा जी कह भी देती—-

गरिमा…. अम्मा के पास सुला दे गुड़िया को …. हम दोनों ये काम निपटा लेंगे तो गरिमा तुरंत कहती —-

नहीं मम्मी…. हम एक-एक करके ही काम ख़त्म कर लेंगे । उनकी बेसिर पैर की बातें मेरा सिर घुमा देती हैं….. कुछ मुँह से निकल गया तो खाना-पीना छोड़ देंगी ।

ना बेटा…. ऐसा नहीं कहते । बड़ी उम्र हो रखी है…. फिर उनके जमाने में लड़कों को ही अहमियत दी जाती थी । उनका दोष नहीं है । एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल दिया कर ।

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पर मम्मी…. कम से कम बदलते जमाने को देखकर अब तो समझ सकती है । पहले आप को पाँच बच्चे पैदा करने के लिए मजबूर किया…. ख़ैर मैं क्या कहूँ… आप जानती हैं कि हम दोनों जी तोड़ मेहनत करके भी पिछले क़र्ज़े को अभी तक चुका रहे हैं….. ऐसे में …. 

गरिमा रूँआसी होकर वहाँ से चली गई । 

सचमुच पुष्पा जी ने महसूस किया कि गरिमा सही कह रही है।समीर  और साधना के जन्म के बाद उन्होंने और उनके पति ने अम्मा को कितना समझाने की कोशिश की कि दो बच्चे हो गए, बहुत हैं ….. साधारण कमाई और महँगाई के दौर में गुज़ारा मुश्किल हो जाएगा… पर अम्मा ने ऐसी आसनपाटी ली कि तीसरी सीमा , चौथी सुनीता के बाद पाँचवा बेटा संजीव पैदा हुआ  । तब जाकर अम्मा को शांति मिली ।

पाँच बच्चों का पालन-पोषण , शिक्षा, ब्याह,  नाते- रिश्तेदारी का निर्वाह, बहनों का भात- छूछक— अपना मन मार-मारकर पुष्पा जी ने कैसे गृहस्थी चलाई … वे ही जानती थी । सास- ससुर हमेशा उसी के पास रहे क्योंकि देवरानी-जेठानी का तेज- तर्रार सास के साथ तालमेल ही नहीं बैठा और ना ही देवर- जेठ ने कभी किसी खर्चे में हिस्सेदारी निभाई । सब अपने-अपने हिस्से की ज़मीन- मकान लेकर अलग हो गए ।

बड़ा बेटा समीर पढ़ाई में बहुत होशियार और महत्वाकांक्षी था। पिता ने यह सोचकर उसकी पढ़ाई के लिए क़र्ज़ लेकर अमेरिका भेजा कि वहाँ से डॉलर में पैसा भेजेगा  और अपने छोटे भाई-बहनों की सहायता करेगा पर अच्छी नौकरी मिलते ही शादी करके उसने तो दुनिया ही अलग बसा ली , उल्टा उसकी पढ़ाई के लिए लिया क़र्ज़ा अभी तक संजीव चुका रहा था । यहाँ तक कि समीर छोटी बहन की शादी में भी नहीं आया , शायद डर गया हो कि पिता पैसे ना माँग लें ।

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अब क्या मेरा छोटा संजू और गरिमा भी मेरी तरह तिल-तिल करके अपना जीवन ….. क्या इतिहास दोहराया जाएगा…..? नहीं….

पुष्पा जी ने सोच लिया कि पहले तो वह नहीं बोल पाई पर अब  उन्हें अम्मा को समझाना ही पड़ेगा । अगले दिन ही वह जानबूझकर गुड़िया को अम्मा के पास लिटा आई । कुछ देर बाद गुड़िया के जागने पर अम्मा की आवाज़ पुष्पा जी के कानों में पड़ी—-

पुष्पा…. गरिमा … गुड्डों को दूध पिला दे …. अपने पीछे भाई लाएगी, भागों वाली कहलाएगी…..

अम्मा…. है तो गुड़िया का भाई किट्टू । अब ओर की ज़रूरत नहीं….

चुप रह … एक का क्या देखा ? गुड्डों तो चली जाएगी ब्याह कर। किट्टू तो अकेला रह जाएगा…. सुख- दुख बाँटने के लिए कम से कम  किट्टू को एक भाई तो चाहिए ।

हमारे सुख- दुख किसने बाँटे , अम्मा!  आपके बेटे के तो छोटा भाई भी है और बड़ा भी …. आए क्या कभी पूछने कि भाई , तू जी रहा है या मर गया ।  अरे हमें तो छोड़ो …. कभी माँ- बाप की ख़ैरियत पूछी ….. बाबूजी के गुजरने पर पड़ोसियों की तरह आकर और बैठकर चले जाते थे । मेरी सीमा की कितनी इच्छा थी कि बी० एड० करके टीचर बनने की पर हमारे पास फ़ीस तक के पैसे नहीं थे…… और क्या-क्या बताऊँ , अम्मा! 

बच्चे संजू और गरिमा को पालने हैं …. कितने करने हैं उनके ऊपर छोड़ दो ….. मैं आपके हाथ जोड़ती , अम्मा । 

आज अम्मा चुप थी ….. शायद उन्हें अहसास हो रहा था कि पुष्पा ठीक कह रही है । 

 #जो रिश्ता विपत्ति बाँटने के लिए बनाया जाता है वह खुद संपत्ति बाँटने के चक्कर में बँट जाता है ।

लेखिका : करुणा मलिक

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