“अरे ! , तुम आ गई अपने मायके से?”सूरज ने चौंक कर रोशनी को देखा जो घर में घुसते ही उसे दिखी।
“कितने दिन से घर में उदासी थी आज आई हो तो सच में रोशनी लौट आई है तुमसे…” उसके करीब आते वो बोला।
जाओ…जाओ…इन किताबी बातों को अपने उपन्यास में ही लिखा करो,वास्तविक जिंदगी में इनसे काम नहीं चलता,वो मुंह बिसूरती बोली।
नाराज़ हो किसी बार पर?,सूरज को दुख हुआ,इतने दिन बस मिली है फिर भी शिकायत और कड़वाहट कम नहीं होती इसकी।
जब नाक कटवाओगे मायके में तो खुश कैसे रह सकती हूं?वो तुनक कर बोली।
मैने क्या किया?आहत होते सूरज बोला।
मिला था तुम्हारा मनी ऑर्डर…ढाई हजार रुपल्ली का,कितनी बेइज्जती हुई मेरी सबके सामने,इतनी तनख्वाह तो भैया अपनी एक मेड को दे देते हैं।
अपनी पत्नी को पैसे भेजना अपराध है?सूरज भौंचक्का रह गया,जिसकी आमदनी जितनी होगी वो उसी हिसाब से तो भेजेगा,अब मै तुम्हारे भाई की तरह बिजनेसमैन तो नहीं जिसकी असीमित इनकम हो,ये सब तो शादी से पहले सोचना चाहिए था।
मेरी अक्ल पर पत्थर पड़ गए थे जो तुम पर फिदा हो गई थी,तुम्हारी कविताएं,कहानियां और उपन्यास…सबने मुझे कितना समझाया था पर तब नहीं सुनी मैंने किसी की बात,सही कहती हैं बड़ी जीजी किसी से बदला उतारना हो तो उसकी शादी गरीब से करवा दो,सारी उम्र तिल तिल जल कर मर जायेगी।
तो लौट क्यों आईं वहां से?इस बार चिढ़ कर सूरज बोला,वहीं रह जाती ,तुम्हारी बड़ी जीजी भी तो अपने पतिदेव के साथ वहीं टिकी हुई हैं शुरू से।
आपको क्यों मिर्ची लग रही है?रोशनी तमक कर बोली,अपनी मां के घर ही तो हैं…
लेकिन जिस तरह तुम्हारे जीजा ससुराल में पड़े रहते हैं , मैं नहीं रह सकता,मेरा भी आत्म स्वाभिमान है,ससुर के घर जमाई की इज्जत कुत्ते से बढ़कर नहीं होती।
आप अपनी सीमाएं लांघ रहे हैं…रोशनी गुस्से से चीखी और पैर पटकती अंदर चली गई।
सूरज कवि हृदय ,भावुक,गौर वर्ण एक खूबसूरत नौजवान था जिसकी कविताओं पर रोशनी का दिल आ गया था।अमीर घराने की सुख सुविधाओं में पली बढ़ी लड़की ने जिद पकड़ ली थी कि शादी करूंगी तो सूरज से।उसके घरवालों ने बहुत समझाया कि दोनो घरों के रहन सहन में बहुत अंतर है,ज्यादा दिन उसके साथ खुश नहीं रह सकेगी पर रोशनी ने एक न सुनी।
थोड़े ही दिनों बाद,आर्थिक तंगी से रोशनी ऊबने लगी थी और आए दिन ,उसका सूरज से लड़ाई झगड़ा होता।
सूरज को उसके घरवालों,दोस्तों ने समझाया कि वो कोई नौकरी ढूंढ ले जिससे कुछ अच्छी आय हो सके पर उसे जुनून सवार था अपने साहित्य प्रेम का,उसे अपना छोटा सा प्रेस चलाना था जिसका नाम उसने बड़े प्यार से रोशनी के नाम पर ही “रोशन प्रेस” रखा था।
वो जितनी कोशिश करता रोशनी की जरूरतें पूरी करने की, पैसे की दिक्कत उतनी ही सुरसा के मुंह की तरह बढ़ जाती।और फिर नौबत यहां तक आ पहुंची कि उसके प्रेस को कहीं बंद न करना पड़े।उसपर कर्ज बढ़ता ही जा रहा था।वो बीमार रहने लगा था और रोशनी उसे समझने को तैयार न थी।
एक दिन लड़ झगड़ कर वो फिर अपने मायके जा पहुंची।उसकी मां को बार बार उसका मायके चले आना अच्छा नहीं लगता था।बड़ी लड़की,दामाद ही जाने का नाम नहीं लेते थे अब छोटी भी उसी रास्ते पर चलने लगी थी,उसके भाई भाभी को भी वो दोनो बहने अब पहले जैसे अच्छी न लगती।
रोशनी को मायके में रहते काफी समय हो चला था,गुस्से में वो सूरज से बात नहीं करती थी,उधर सूरज ने न उसे पैसे भेजे,न ही कोई संपर्क किया।
एक दिन,रोशनी ने भाई भाभी को कहते सुना,ये छोटी जीजी,अब हमेशा यहीं रहेंगी क्या?उसका भाई विनय अपनी पत्नी से बोला।
पता नहीं,सराय बना ली है आपकी बहनों ने इस घर को..मेरी तो कोई प्राइवेसी ही नहीं…।
जल्दी ही इन्हें रुखसत करता हूं डार्लिंग!तुम फिक्र न करो।
रोशनी,विनय के मुंह से ये बात सुनकर चौंक गई,उसे बहुत बुरा लगा ,तभी विनय अपनी पत्नी के करीब आकर उसे मनाने लगा,उन दोनो की नजदीकी से रोशनी पलभर को विचलित हो उठी,उसे सूरज से अलग हुए कितना समय ही चुका था,आज अचानक उसकी याद बहुत तेज़ी से उसके दिल में आई।
अचानक,उसने एक निर्णय लिया और वो अगले ही दिन,अपने घर जाने को तैयार थी।उसके मां बाप,भाई भाभी दिल में खुश थे पर ऊपर से उसे रोकने का अभिनय करते रहे।
खैर,चार घंटे सफर कर वो घर पहुंची,वो अचानक जाकर सूरज को चौंका देना चाहती थी पर खुद ही चकित रह गई जब घर पर ताला लगा देखा।
काफी पूछताछ के बाद पता चला,सूरज कई महीनों से घर में नहीं था ,और तो और,उसका प्रेस भी बंद हो चुका था।
रोशनी सकते में आ गई।उसने सूरज के खास दोस्त राघव को फोन किया जिसने बताया कि सूरज बहुत बीमार था जब उसपर कर्ज बढ़ रहा था और एक दिन बैंक से लिए कर्ज को न चुका पाने की वजह से उसके प्रेस पर ताले जड़ दिए गए।
वो बेचारा,ये सह न सका और रातों रात शहर छोड़कर चला गया।कहां गया,कोई नहीं जानता।
रोशनी को बहुत शर्मिंदगी हुई, मैं उसकी धर्मपत्नी,मुझे कुछ नहीं पता,वो इतना बीमार था,परेशान था और मैं मायके में पड़ी थी।क्या मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं बनती थी मेरे सूरज के लिए?उसने खुद को धिक्कारा।वो जानती थी,सूरज जहां कहीं भी होगा,एक बात है ऐसी जिसे जानकर वो दौड़ा चला आएगा जिससे वो सबसे ज्यादा प्यार करता है।
उसने अपने गहने,बैंक बैलेंस,मां पिता से मिले रुपए पैसे सब लेकर बैंक पहुंची।वहां का ऋण ज्यादा था पर इतना नहीं जो रोशनी अपने गहनों से चुका न सके।एक पल को उसने तड़प के अपने गहनों को देखा पर उसके दिल में अपने प्रियतम सूरज से मिलने की तड़प ज्यादा थी इस समय।
रोशनी के प्रयासों से रोशन प्रेस फिर से शुरू हो गया था।
एक दिन,हरिद्वार के शांतिकुंज में रहते सूरज के पास उसका मित्र दौड़ा हुआ आया।
देखो सूरज!तुम्हारे प्रेस से तुम्हारी कहानी”आन मिलो सजना”का प्रथम अंक छपा है।
ये कैसे संभव है?वो आश्चर्य चकित रह गया,ये तो बंद हो गया था।किसने चलवाया इसे और उसी नाम से।वो एकदम वहां से दौड़ता हुआ बस स्टैंड पहुंचा और सीधा अपने प्रेस पर पहुंचा।
सामने ही रोशनी खड़ी,उसके पुराने स्टाफ के साथ पेपर वर्क में व्यस्त थी।
तुम यहां?ये सब तुमने??उसकी नजर रोशनी के हाथ,गले और उंगलियों पर गई।हमेशा सोने,चांदी के आभूषणों से सजी आज वो बिल्कुल सादगी से,बिना जेवर थी।
तो तुमने अपने गहने बेच के ये सब मेरे लिए किया?सूरज की आंखों में आंसू भर आए।
नहीं…ये सब मैंने अपने लिए किया,कितना समय हो गया तुम्हारी कोई नई कविता,कहानी नहीं पढ़ी,फिलहाल तुम्हारा पुराना उपन्यास छपवाना शुरू किया है,अब जल्दी घर चलो,मेरे लिए कुछ लिखोगे नहीं।
रोशन प्रेस की रोशनी के लिए नहीं लिखूंगा तो जिऊंगा कैसे?सूरज ने कहा तो सब हंस पड़े और वो दोनो घरके लिए चल दिए।
रोशनी को अपने दायित्वों का भान हो चुका था,वो जान गई थी कि उसकी रोशनी उसके सूरज के साथ होने से ही है।
डॉक्टर संगीता अग्रवाल
वैशाली,गाजियाबाद