दुर्दशा – डॉक्टर संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

अचानक जलाई गई लाइट से,रामस्वरूप जी की आंखें चौंधिया उठीं,नजर उठा के देखा उन्होंने,पड़ोस वाली

बिट्टी ने आकर लाइट जला दी थी उनके कमरे की।

“कब तक यूं ही अंधेरों में बैठकर इंतजार करोगे दादू,आपके बच्चे नहीं आयेंगे अब?”

बिट्टी ने कहा तो राम स्वरूप बौखला गए,”हमेशा बुरा ही बोलेगी,अच्छा नहीं बोल सकती कभी?”

“कई महीनों से देख रही हूं दादू आपको,रात दिन दरवाजा ही ताकते रहते हो,कोई आएगा…आपको यहां से ले

जायेगा,लेकिन कोई आया कभी? मुझे दुख होता है आपके लिए,प्लीज! आप उन्हें इतना याद मत किया करें

जो आपको भूल गए हैं..”

“वो लोग बुरे नहीं थे…मै अपने अहंकार में भूल गया था कि परिवार में पत्नी की क्या हैसियत होती है,वो पूरे

परिवार की धुरी होती है जो सबको जोड़े रखती है,मैंने कभी व्यस्तता,कभी अभिमान में उनकी कद्र नहीं की

और आज अकेला पड़ा हूं…”कहते हुए राम स्वरूप की आंखें भीग गई।

“क्या आपकी पत्नी यानि दादी मां अभी जीवित हैं?”बिट्टी ने आंखें फैलाई।

“हां..”, दुखी और हताश होते उन्होंने कहा,”जब तक वो मेरे साथ थी,मैंने उसकी कीमत न समझी,उससे बुरा

और कठोर व्यवहार किया और आज परिणाम भुगत रहा हूं।”

“पर मां कहती है कि एक स्त्री सब कुछ सहती है चुपचाप,वो पति का घर नहीं छोड़ती कभी तो दादी जी

किसके पास चली गई?फिर आपने उन्हें रोका नहीं?”

“बेटा! मै बहुत बुरा इंसान हूं,मैंने खुद उसे ,गुस्से में घर से निकाल दिया था…” ये कहते हुए राम स्वरूप की आंखें

डबडबा आईं।

“च…च…ये तो आपने ठीक नहीं किया दादू …फिर आप उन्हें मनाने नहीं गए कभी?”

बिट्टी को अब दादी के लिए अफसोस हो रहा था।

“शुरू शुरू में तो मै अहंकार में ही रहा पर जब बीमार रहने लगा, रिटायर हो गया तो मुझे उन सबकी याद आने

लगी…”

“उन सबकी मतलब?और कौन कौन था आपके परिवार में?”बिट्टी बोली।

“मेरे दो लड़के,दो लड़कियां थीं,सब बच्चे अभी पढ़ ही रहे थे,जब मैंने तेरी दादी को घर से निकाला था,सबसे

छोटा बेटा जो अभी पढ़ ही रहा था,उसके साथ चल दिया…मैंने भी रोकने की कोशिश नहीं की,सोचता था कि

जायेगी कहां?कैसे पालेगी उसे मेरे बिना? झक मारकर यहीं लौटेगी,मेरे पांव पड़ेगी तब रख लूंगा लेकिन वो

नहीं लौटी।”

“इसका मतलब उनके स्वभाविमान पर चोट पहुंची आपकी बात से?”

“हम्मम…ठीक कहती हो,किसी के भी पहुंचती…”खोया हुआ वो बोला,”जब मै बहुत समय बाद उसे मनाने गया

तब तक देर हो चुकी थी,उसको दूर कहीं नौकरी मिल गई थी,वो पढ़ी लिखी थी,वहीं चली गई बिना किसी को

बताए।”

“आपके बाकी बच्चे??वो सब कहां हैं?उनका क्या हुआ उनके जाने के बाद?”

“दो लड़कियों की तो शादी कर दी मैंने,उसमे तो वो भी मेहमान की तरह आई और चली गई,मेरी नौकरी चल

रही थी तब,मेरा अहंकार बाकी था तब भी,मुझे लगता,जब तक वो नाक नहीं रगड़ेगी मेरे आगे, मैं उसे वापिस

नहीं बुलाऊंगा,उसे लगा होगा कि मै बहुत जिद्दी हूं,शायद उसे माफ नहीं करूंगा अभी ,फिर गलती मेरी थी,मैंने

उसे गृह निकाला दिया था,इतना आत्म सम्मान तो था उसमे कि वो पहल नहीं करती।”

“ओह!और जब आप गए तो वो जा चुकी थीं दूर…यही बता रहे हैं आप?”बिट्टी भी दुखी हो गई थी।

अब रोज इंतजार करता हूं सबका, कोई मुझसे मिलने भी नहीं आता…उदास होते वो बोले।

“और आपका बड़ा बेटा?वो कहां गया?”

“उसकी शादी तो बहनों के सामने ही हुई थी,मैंने अपने गुरूर में उसकी पत्नी से भी दुर्व्यवहार किया,उसे नीचा

दिखाया,कमियां निकाली उसमें लेकिन वो मेरी पत्नी की तरह सरल ,सीधी,शांत नहीं थी,उसने अपने पति को

सब कुछ ऐसा नमक मिर्च लगाकर समझाया कि बहनों की शादी से निबट कर वो अलग घर में शिफ्ट हो

गया।”

“इसी शहर में?”बिट्टी को आश्चर्य हुआ।

“पहले यहीं और बाद में उसने अपना तबादला करा लिया कहीं दूसरे शहर में”वो बहुत दुखी थे ये बताते हुए।

“तो आपको लगता है कि वो लोग अब लौट के आयेंगे कभी?”बिट्टी ने पूछा।

“लगता तो नहीं लेकिन दिल में एक क्षीण सी उम्मीद है कि शायद कोई आ जाए कभी बस इसलिए रोज

टकटकी लगाए उधर देखता हूं,शायद किसी दिन…”

बिट्टी अवाक होकर राम स्वरूप को देख रही थी,कितनी नादानी करी इन दादू ने, जब सब भरपूर परिवार था ,

उन्होने किसी की कद्र न की,सबको डांटते फटकारते उम्र बिता दी और आज इतने बच्चों,बहु,लड़की

दामाद,नाती पोती होने पर भी ये अकेले हैं!

वो नहीं जानती थी कि उनके परिवार से फिर कोई आएगा या नहीं लेकिन एक बात जरूर जान गई थी कि

व्यक्ति को कभी भी किसी की बेकद्री नहीं करनी चाहिए,रिश्ता बनाने से ज्यादा उसे निभाना आना चाहिए

नहीं तो कुछ रिश्ते जन्म भर सिर्फ सालते ही हैं और उसकी कीमत हमें बाकी सारी उम्र चुकानी पड़ती है,आज

दादू की दुर्दशा उनके खुद के कठोर व्यवहार की वजह से ही हो रही थी।

डॉक्टर संगीता अग्रवाल

वैशाली,गाजियाबाद

#कीमत

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!