नन्ही सी बच्ची को गोद मे लिए सिम्मी एक कोने मे चुपचाप बैठी अपने अतीत के बारे मे सोच रही थी।”क्या ये वही घर है..वही लोग है..जहा वह सबकी आंख का तारा थी..वह उदास होती थी तो पूरा घर परेशान हो जाता था..वह हंसती थी तो सभी खिल-खिलाकर हंसते थे..पर आज उसके पास न कोई बैठता है..न बात करता है।”आखिर क्यो किसका दोष है..क्या गुनाह था उसका”जिस भाई ने उसे रो रो कर उसे विदा किया था..पति की दुर्घटना मे मृत्यु हो जाने पर..रोते-रोते ही मुझे वापस लेकर आया था..अपनी फूल जैसी गुड़िया को विधवा के रूप मे देखकर पिताजी बीमारी की चपेट से उबर नही सके..और उनका साया भी उसके सिर से उठ गया..बस संजू भईया ही उसका साथ देते थे.. पिताजी की मृत्यु के बाद उसकी मां का भी व्यवहार उसके प्रति बदल गया था।
आज उसकी चाची की लड़की और उसकी छोटी बहन रजनी की शादी थी..पूरी रात वह सबके लिए अंजान बनी रही.. जैसे कि उसे छूत की बीमारी है।
“सिम्मी सिम्मी?”संजू ने आवाज दी।”अरे सिम्मी तुम यहा क्यू बैठी हो..चलो रजनी की विदाई होने वाली है?”सिम्मी के पास आकर आकर संजू बोला। सिम्मी की आंखो से आंसू छलक पड़े,वह संजू की ओर देखते हुए बोली।”भईया मै वहा जाकर क्या करूंगी..मेरा चेहरा देखकर अपशगुन होगा.क्योंकि मै विधवा हूं?”यह कहकर सिम्मी सिसकने लगी।
“किसने बोला कि मेरी बहन के जाने से अपशगुन होगा?”संजू गुस्साते हुए बोला।”चाची और बुआ ने”सिम्मी डरते हुए बोली।
“चाची..बुआ कहा हो?”संजू जोर से बोला।”क्या है..क्यो चिल्ला रहे हो?”चाची ने कहा,”चाची तुमने और बुआ ने सिम्मी को विदाई मे आने से मना किया है..क्यो?”संजू चाची से बोला।
चाची संजू को घूरते हुए बोली।”तुम क्या जानते हो..कल के लड़के हो..तुम्हे क्या पता..सुहागिन की विदाई मे किसी विधवा का होना अपशगुन होता है! “मै नही मानता इन घटिया रिवाज़ो को..मेरी प्यारी बहन सिम्मी अपशगुन नही है..उसका भाई अभी जिन्दा है..वह उसकी दुलारी छोटी बहन है..और हमेशा रहेगी..मै उसकी दूसरी शादी करूंगा..फिर से उसका घर बसाऊंगा..मुझे आप लोगो की कोई जरूरत नही है…सिम्मी चलो यहा से?”गुस्साते हुए अपनी भांजी को गोद मे उठाकर संजू बोला। सिम्मी की आंखो मे आंसू छलक पड़े..वह एकटक संजू की ओर देख रही थी। जैसे कि संजू भईया के रूप मे उसके पिताजी उसके सामने खड़े हुए हैं।
माता प्रसाद दुबे,
(मौलिक एवं स्वरचित)
लखनऊ,