अरे!! देखो ये हैं मेरी फैमिली कहने को तो हम सात देवरानी जेठानी हैं लेकिन किसी को किसी के दुःख की कहाँ पड़ी हैं…उसदिन तो वो रेणु बड़ी बड़ी डींगें हाक रही थी की-भाभी जी जब ऑपरेशन हो तब मुझे बता देना…खुद को अकेले मत समझना…बस उसे तो सिर्फ बाते करना ही आता है, कॉल करके भी नही पूछा कि ऑपरेशन हुआ या नही।। और
आंख का ऑपरेशन कराए हुए आज पूरे सात दिन हो गए है लेकिन मजाल हैं किसी न भी मेरे हाल चाल पूछने के लिए फोन भी किया हो….”अरे हाल चाल पूछने से कौनसा दुःख उनके साथ लग जाता बस मन को खुशी मिल जाती है कि परिवार वाले चाहे कितने भी दूर हो लेकिन सुख-दुःख में तो साथ है।। माया जी गुस्से में बड़बड़ाये जा रही थी।।
अरे !! भगवान गुस्सा मत करो…औऱ थोडा धीर धरो…तुम्हारी आँखों का ऑपरेशन हुआ है, तेज बोलना,ज्यादा बातें करना, औऱ ज्यादा सोचने से आँखों पर असर होगा….।।
औऱ तुम यह सोच सोचकर क्यो दुःखी होती हो कि कोई तुमसे मिलने नही आया।। परिवार में किसी को जब पता ही नही की तुम्हारा आँख का ऑपरेशन हुआ है तो उन्हे बेवजह दोष क्यो देना….!! ग़र उन्हें पता चलता तो अब तक परिवार के सभी लोग मिलने आ जाते..मैने ही किसी को खबर नही दी..। क्योंकि मैं जानता हूँ मेरा परिवार हर सुख दुःख में मेरे साथ खड़ा है…!! तुम्हारे ऑपरेशन की खबर सुनते ही तुम्हारे परिवार वाले औऱ मेरे परिवार वाले चिंतित हो जाते…बेवजह फिक्र करते…उन्हें भी दुःख होता तुम्हे इस हाल में देखकर… औऱ मैं नही चाहता कि परिवार वालो को किसी वजह से दिक्कत हो…!! माया के पति देव ने कहा।।
यह बात तो तुम ठीक ही कहते हो…बेवजह परिवार वालो को दोष क्यो देना…जब उन्हें मेरे ऑपरेशन का पता ही नही…औऱ फिर परिवार के लोग आस पास तो रहते नही जो तुंरत आ जाये औऱ चले जाये… कोई दिल्ली ,बेंगलुरु अहमदाबाद, हैदराबाद सभी दूर दराज शहरों में रहती हैं… आने जाने में ही सारा समय बर्बाद हो जाता है।। माया जी ने कहा।।
तभी माया जी का फोन बजा… माया जी ने फोन न उठाते हुए पतिदेव ने उठाया… नमस्कार भाई साहब जी…चरणस्पर्श
मैं रेणु बोल रही हूँ… अहमदाबाद से
हाँ !! खुश रहो.. कैसे हो तुम लोग( माया जी के पति विमल जी ने कहा)
हम सब ठीक है भाई साहब जी…भाभी जी की आंखों का ऑपरेशन हो गया क्या…? रेणु ने पूछा।।
हा हो गया…पर तुम्हे कैसे पता चला(विमल जी ने पूछा)
भाई साहब जब हम होली पर आए थे,तब भाभी बता रही थी कि उन्हें एक आंख से कम दिखता है, डॉक्टर को दिखाया तो डॉक्टर ने ऑपरेशन बोला है…!!ऑपरेशन तो मैं करवा लुंगी लेकिन एक चिंता मुझे सताए जा रही है…की घर का काम तेरे भाई साहब से तो होता नही है.. इनके भी कमर में दर्द रहता है… घर के काम काज की दिक्कत हो जाएगी…।। इसलिए सोचती हूँ कि ऑपरेशन रहने दू… जब तक चल रही हैं गाड़ी चलने दूँ…!! क्योंकि किसी के पास भी समय नही है कुछ दिन हमे काम करके देने की सभी की अपनी अपनी गृहस्थी हैं…!! माया जी ने कहा
अरे भाभी आप यह क्या कह रही हो…आपने भी तो हमारे सुख दुख में साथ दिया था…औऱ परिवार होने का मतलब ही क्या हुआ जब एक दूसरे के सुख दुख के साथी ही न बने तो…आप बेफिक्र होकर अपनी आँखों का ऑपरेशन करवाइए…जब ऑपरेशन हो तब मुझे बता देना…मैं बच्चो के साथ आ जाऊंगी… । आप चिंता मत करो…बस आप जब ऑपरेशन हो तब बता देना…डॉक्टर ने ऑपरेशन की तारीख दे दी क्या…। रेणु ने पूछा।।
हा 18 अप्रैल दी हैं… माया जी बताया।।
ठीक है मैं 17 तक आपके पास पहुँच जाऊंगी…जब तक बच्चो के पेपर भी खत्म हो जाएंगे… आप बिलकुल भी फिक्र मत करना…!! (रेणु ने विमल जी को अपने और माया जी के बीच हुई बातें बताई।।)
माफ करना भाई साहब मैं बच्चो के एग्जाम में इतनी व्यस्त हो गई थी कि भाभी के ऑपरेशन की तारीख ही भूल गई थी..आज याद आया तो कॉल करके पूछ लिया।।
रेणु ने कहा।।
अरे!!” कोई बात नही…घर मे इतने काम होते हैं, भूल ही जाते हैं
हा माया की आंखों का ऑपरेशन हो गया है..। विमल जी ने कहा।।
मैं कल ही आ रही हूँ …आप लोगो के पास । माया भाभी जी से बोल देना की वो सोच फिक्र न करे।। रेणु ने यह कहकर फोन काट दिया।।
देखा माया जी अपने तो अपने होते है, औऱ परिवार के लोग ही दुःख में साथ देते हैं, आप तो बेवज़ह ही परिवार वालो को कोस रही थी…औऱ आपकीं सेवा के लिए परिवार वाले आ रहे हैं…।। रेणु का फोन था वह कल या परसो तक आपके पास आ जायेगी..।। यह सुनकर माया जी की खुशी का ठिकाना नही रहा… वह रेणु की बातो को सिर्फ बनावटी समझ रही थी…लेकिन सच मे उसकी बातें औऱ अपनापन दिखावे का नही है…मन ही मन उसके बारे में कितना गलत सोच रही थी…ईश्वर मुझे क्षमा करना।।
पर वह खुश थी कि परिवार वास्तव में हर समय साथ देता है। .!! दो दिन बाद ही रेणु अपने जेठानी जी की सेवा के लिए आ गई…जेठानी जी की सारी चिंता दूर कर दी..।।
दोस्तों चाहे परिवार वाले कितने भी दूर रहे लेकिन दूर रहकर भी परिवार की चिंता तो रहती ही हैं… औऱ शायद दूर रहने के बजह से ही रिश्तों में आज प्रेम व अपनापन बरकरार हैं।।
यह कहानी पूर्णयता मौलिक व स्वरचित हैं।।
©️ममता गुप्ता