“अरे , बहुत बुरा हुआ !”
“कोई उम्र नहीं थी उनकी …पर यह कैंसर किसे छोड़ता है ?”
“घर में कोई औरत नहीं बची ,कैसे घर चलेगा ?”
“बड़ा बेटा-बहू विदेश में है ।यहाँ बस छोटा बेटा और मिस्टर श्रीवास्तव ही बचे हैं ।”
यह खुसर-पुसर चल रही थी पांचवें माले पर रहने वाली मिसेज श्रीवास्तवजी के अंतिम संस्कार में इकट्ठा हुई औरतों में।करीब आठ माह से वे कैंसर का इलाज करवा रही थी।कई कीमों लगाने के बाद ऐसा लग रहा था कि वे ठीक हो जाएंगी। पर ईश्वर की इच्छा !
अंतिम संस्कार हो गया और बारह दिन के रीति-रिवाज भी ।
धीरे-धीरे सब सामान्य होने लगा ।परंतु यह क्या ? तीन माह भी नहीं बीते थे मिसेज श्रीवास्तव को गुजरे कि पांचवें माले पर कुछ शोरगुल सुनाई दिया ।सुनकर सभी आश्चर्यचकित थे।
आज की किटी-पार्टी में यही खुसर-पुसर चल रही थी।
“ऐसा कैसे कर सकते हैं मिस्टर श्रीवास्तव?”
“अरे,ऐसी क्या आफ़त आ पड़ी थी कि साल भी नहीं गुजरने दिया ।”
“सुना है कि दूसरे राज्य की कोई विधवा लड़की है ।”
” अरे ,शादी नहीं करते तो घर कैसे चलता?” रमा बोली ।
“हां भाई ,खाना -बर्तन -सफाई, घर में कितने काम होते हैं ?बिना औरत घर-घर नहीं होता ।”शारदाजी ने स्वीकृति देते हुए कहा।
“बात तो सही है आपकी ।” सभी ने सहमति जताई ।
“बहुत खूब ,क्या कहने ? यदि इसका उल्टा हुआ होता तो …?”
“क्या मतलब ?” सबकी नज़रें किटी पार्टी की सबसे छोटी सदस्या मीरा की तरफ उठ गई जिसने यह कहा।
” क्या मतलब है तुम्हारा नीरा ?” शारदाजी उत्तेजित होकर बोली।
मीरा ने हाथ जोड़ते हुए कहा -“आंटीजी ,क्षमा करें।बात कड़वी ज़रूर है पर सत्य है।आप सबसे एक बात पूछना चाहती हूँ।यदि यह कैंसर मिसेज श्रीवास्तव की जगह मिस्टर श्रीवास्तव को हुआ होता और उनके मरने के तीन माह में ही मिसेज श्रीवास्तव ने शादी कर ली होती तो …..?”
एक करारा प्रश्न हवा में उछल कर सबकी आंखों में समा गया। प्रश्न तो प्रश्न है… क्या आपके पास है इसका जवाब ??
स्वरचित
उषा गुप्ता
इंदौर