दूध का जला – डॉ संगीता अग्रवाल: Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : निष्ठा! क्या बात है,अब तुम बात बात पर सबसे बहुत रूड हो जाती हो,पहले तो ऐसी कभी नहीं थी,कुछ हुआ क्या तुम्हारे साथ?जीवन ने पूछा।

नहीं तो..निष्ठा ने टाल दिया था उसे,बिना बात ये परेशान होगा ये सोचकर।

जीवन कई दफा पूछ चुका था निष्ठा से पर वो हमेशा उसे टाल देती।एक बार वो दोनो मार्केट जा रहे थे और रास्ते में रोशनी दूर से आती दिखाई दी।

ओह!आज तो हो गई छुट्टी,अब निष्ठा घंटों लगाएगी उससे गप्पे मारने में,दोनों कितनी पक्की सहेलियां थीं ,वो भली भांति जानता था पर ये क्या? दोनो ही एक दूसरे को अवॉइड कर आगे बढ़ गई

जीवन के लिए ये बहुत शॉकिंग था…क्या हुआ निष्ठा? ओह!तो तुम्हारी बात तुम्हारी प्रिय सहेली से ही हुई है कुछ?? बताओ ना…प्लीज..क्या मुझे भी नहीं कहोगी?देख रहा हूं पिछले काफी समय से तुम बहुत घुल रही हो अपने में ही।

निष्ठा,जीवन के साथ एक कॉफी शॉप में आ बैठी,कहीं खो सी गई वो बोलते हुए…

तुम्हें पता है,हम आठ सहेलियों ने एक साथ मिलकर एक राइटिंग ग्रुप बनाया था,जिसमें हमने कई किताबें भी पब्लिश कराई थीं।

हां …हां…वो तो बहुत पॉपुलर हो रहा है।क्या हुआ उसे?

एक बार,किसी प्रतिष्ठित पत्रिका ने एक कहानी प्रतियोगिता कराई जिसमें हम आठों सहेलियों ने भाग लिया था।

वोही…जिसमें तुम्हें प्रथम पुरुस्कार भी मिला था,जीवन सोचते हुए बोला।

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एक्जेक्टली!!मेरे साथ बाकी छह की भी कहानी पुरुस्कृत हुई,ये एक संयोग ही था लेकिन अफसोस कि रोशनी की कहानी इस प्रतियोगिता में कोई स्थान न बना सकी।

तो इसमें क्या हुआ?प्रतियोगिता में तो कोई जीतता या हारता ही है…फिर??जीवन को उत्सुकता थी।

बस,रोशनी बिदक गई,हम सबसे बहुत लड़ी और नाराज हो गई।

लेकिन क्यों?आश्चर्य से जीवन ने पूछा।

उसका कहना था तुम लोग मिलजुल कर कोई साठगांठ कर मुझे नीचा दिखाना चाहती थीं,तुमने प्रतियोगिता के निर्णायक मंडल से कहकर खुद को जिता लिया।

अरे!आउट ऑफ माइंड हो गई है क्या वो?जीवन बोल पड़ा।

वही तो…हमने बहुत समझाया पर वो मानी ही नहीं,हमारे ग्रुप से अलग हो गई,हमारे व्यक्तिगत जीवन पर बहुत सी अशोभनीय बातें उछाली,पुराने, गड़े मुर्दे उखाड़े और न जाने क्या क्या…।

इतना सब कुछ हो गया और तुमने मुझे नहीं बताया…ये तो गलत बात है।

तुम ही क्या कर लेते जीवन, बेवजह परेशान होते मेरे लिए।वो बोली।

फिर..उसके बाद?

वो ग्रुप से अलग हो गई,ये आरोप लगाकर कि तुम सब इस लायक नहीं हो कि तुम्हारे साथ मिलकर कोई काम किया जाए।

अजीब दादागिरी है…इस सबमें तुम कहां थीं बीच में?

उसे हमारे ग्रुप के बहुत से सीक्रेट्स पता थे,हम जो स्ट्रेटजी बनाते थे लोकप्रियता के लिए,वो जानती थीं और वो अंटशट बोलकर हमे बदनाम कर रही थी।

तो फिर तुम सबने क्या किया?जीवन को उनके लिए बहुत बुरा लग रहा था।

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वो खुद ही अलग हो गई थी,हमने उनके लिखित बयान पर ही रिप्लाई कर दिया..”आपकी इच्छानुसार आपको ग्रुप से अलग किया जाता है,आप पर विश्वास करना हमारी सबसे बड़ी गलती थी।”

ओह!ऐसा कहना पड़ा तुम लोगों को?

और क्या करते?उसने मजबूर किया हमें ये कहने और सोचने को।निष्ठा थोड़े आवेश में आ गई थी।

फिर उसकी जगह तुमने किसी और को लिया अपने ग्रुप में?

बिलकुल नहीं,तुम जानते हो न दूध का जला छाछ को भी फूंक फूंक के पीता है,अब हम किसी पर विश्वास कैसे कर सकते थे?

लेकिन एक के खराब होने का मतलब ये तो नहीं कि सारी  दुनिया ही ऐसी है?जीवन ने उसे सकारात्मक करना चाहा।

तुम ठीक कह रहे हो पर सब कुछ सामान्य होने में वक्त लगता है ,फिलहाल तो हम सब उसके इस व्यवहार से बहुत आहत हैं,किसी को भी किसी दूसरे से ऐसा नहीं करना चाहिए,इससे विश्वसनीयता कम होती है।

बात तो ठीक है तुम्हारी…चलें, कॉफी भी खत्म हो गई है।

जीवन,निष्ठा का हाथ पकड़ बाहर निकल आया,निष्ठा अब रिलैक्स लग रही थी,इतने दिनो से जो बात उसके दिल पर पत्थर की तरह रखी थी,आज उसका बोझ कुछ कम जो हो गया था।

डॉ संगीता अग्रवाल

वैशाली,गाजियाबाद

#तुम पर विश्वास करना मेरी सबसे बड़ी गलती थी

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