ड्रेसिंग टेबल – विभा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

    हमारे समय में हर पिता अपनी बेटी को विवाह में पलंग, डाइनिंग टेबल, सोफ़ासेट, टीवी, फ़्रिज के साथ एक ड्रेसिंग टेबल देकर ही ससुराल विदा करते थें।मैंने अपनी तीन बड़ी बहनों की शादी देखी थी।बड़ी दीदी को एक शीशे वाला आदमकद ड्रेसिंग टेबल मिला।मंझली दीदी को डबल शीशे वाला(फ़ोल्डिंग) ड्रेसिंग टेबल और नमिता दी के ड्रेसिंग टेबल में लाईट भी लगी हुई थी।

उनके बेटे के पहले जन्मदिन की पार्टी में जब मैं उनके ससुराल गई तब उन्होंने मुझे बल्ब जला कर दिखाया।उत्सुकता वश मैंने पूछ लिया,” नमिता दी..सब कुछ तो दिख रहा है , फिर इसमें बल्ब क्यों दिया है।” हँसते हुए उन्होंने बल्ब बंद कर दिया और बोली,” फ़र्क नज़र आया..।” मैंने कहा,” अरे हाँ..लाईट जलने से तो चेहरा कितना चमक जाता है और मेकअप भी…।”

   बस उसी दिन से मैं भी एक ड्रेसिंग टेबल का सपना देखने लगी।इतनी उम्मीद भी थी कि मेरी शादी तक तो ड्रेसिंग टेबल के और भी न जाने कितने डिज़ाइन मार्केट में आ जायेंगे।फिर मैं भी मीना कुमारी की तरह छोटे-से स्टूल पर बैठकर शीशे में देखते हुए अपने लंबे-घने बालों को कंघी करते हुए गुनगुनाऊँगी,पिया ऐसे जिया में समाये गयो रे…

कि मैं तन-मन की सुध-बुध…।खैर, वो शुभ घड़ी भी आ गई..मेरी शादी तय हो गई। विवाह-तिथि निश्चित होते ही मैंने सोचा कि सब बहनों की तरह पिताजी मेरे लिये भी ड्रेसिंग टेबल खरीदने जब जायेंगे तब मैं उन्हें अपनी पसंद बता दूँगी या फिर अपने साथ ले जाने की ज़िद करूँगी लेकिन ऐसा मौका आया ही नहीं।मैंने माँ से पूछा कि पिताजी फ़र्नीचर का ऑर्डर दे आये क्या?” वो बोली,” नहीं..तेरे ससुर का कहना है कि हमें तो कुछ नहीं चाहिये.. लड़के से पूछ लीजिये।”

   ” फिर..?” मेरी जिज्ञासा बढ़ती ही जा रही थी।

 माँ बोलीं,” फिर क्या…लड़का कहता है कि अभी क्वार्टर तो मिला नहीं है तो फिर फ़र्नीचर रखेगा कहाँ..।इसीलिए तेरे पिताजी उन्हें कैश दे देंगे..वो अपनी पसंद से खरीद लेंगे।” सुनकर मैं तो खुश कि चलो… अब मैं अपनी पसंद का…आ- हा..।

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    शादी के बाद कुछ दिन ससुराल रहकर मैं फरक्का थर्मल पावर के गेस्ट हाउस में आ गई।अब मैं रोज अपने पति से पूछती कि आपको क्वार्टर कब मिलेगा? एक दिन चिढ़कर बोले,” जब मिलना होगा..मिल जायेगा..लाईन में बहुत लोग खड़े हैं। मैं चुप कर गई।

     दो महीने बाद क्वार्टर मिला तो मैंने उत्साह-से कहा,” अब फ़र्नीचर खरीद लेते हैं…बेड, डाइनिंग टेबल, सोफ़ा और ड्रेसिंग टेबल..।”

  ” ड्रेसिंग टेबल! वो कहाँ रखोगी..फिर अलमारी में तो फुल साइज़ का शीशा लगा ही हुआ है।” वो तपाक-से बोले।अब मैं कैसे कहती कि मुझे शौक है..नया-नया पति है..उनके स्वभाव से भी अभी अपरिचित हूँ..ज़िद की और वो रूठ गये तो…।यही सोचकर मैंने धीरे-से कह दिया,” हाँ..शीशा तो है ही..।”

     समय के साथ मैं दो बच्चों की माँ बन गई।फिर धीरे-धीरे मेरा ड्रेसिंग टेबल का सपना भी मरने लगा।उन्हीं दिनों मेरी ननद की शादी हुई।उनके दहेज़ में जा रहे ड्रेसिंग टेबल को देखकर मेरे मुँह से निकल गया,” हाय…कितना खूबसूरत है..काश! मेरे पास भी..।”पति बोले,” तो इतने दिनों तक चुप क्यों रही..बोल देती तो खरीद देता और अभी तुम उसी के सामने बैठकर श्रृंगार करती और मैं…।

अगले महीने मुझे बड़ा क्वार्टर मिल रहा है..शिफ़्ट होते ही डियर सबसे पहले तुम्हारा ड्रेसिंग टेबल..।” मैं तो खुशी-से उछल पड़ी।मेरी अधमरी इच्छा पुनर्जीवित हो उठी।अब मैं दिन गिनने लगी..अलमारी में लगे शीशे में खुद को निहारना अब अच्छा नहीं लगता था…सपने में खुद को ड्रेसिंग टेबल के सामने रखी स्टूल पर ही बैठे देखती थी।

      क्वार्टर मिला और मैंने जगह सोच लिया कि कहाँ रखना है।एक रविवार हम फ़र्नीचर हाउस पहुँच गये..दुकानदार ने ड्रेसिंग टेबल के कई डिजाइन दिखाये।मेरे मुँह- से निकल गया,” डबल मिरर और लाइट वाला नहीं है क्या..?”

   ” नहीं मैडम…बड़े शहर में उसकी सेलिंग है..यहाँ तो…वैसे ऑर्डर देंगे तो…।” दुकानदार ने इतना कहा तो पतिदेव ने लपक लिया, बोले,” ठीक है.. हम फिर आते हैं।” हमें गाड़ी बिठाते हुए बोले,” अगले महीने कोलकता जा रहा हूँ..एकदम नये डिज़ाइन का.. तुम्हारी पसंद का ड्रेसिंग टेबल का ऑर्डर दे आऊँगा..सप्ताह भर में यहाँ पहुँच जायेगा।” उनका उत्साह देखकर तो मुझे ऐसा लगा जैसे कल सुबह ही कोलकता के लिये रवाना हो जायेंगे।

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    पतिदेव का अगला महीना अगले-अगले साल में बदलता गया..फिर उनका ट्रांसफ़र हो गया।हम सब दूसरे शहर आ गये..घर की शिफ़्टिंग के बाद बच्चों की पढ़ाई में व्यस्तता इतनी बढ़ गई कि मेरी इच्छा कब किसी कोने में जाकर दुबक गई , पता ही नहीं चला।

       बच्चे बड़े हो गये…नौकरी करने लगे..मेरे काले-लंबे बालों पर सफ़ेदी की परत चढ़ गई..चेहरे पर झुर्रियाँ और आँखों के नीचे काले निशान भी पड़ गये।एक दिन बड़े  मूड में थे पतिदेव, मुझसे बोले,” सुनो ना..ऑफ़िस के काम और घर की ज़िम्मेदारियों में तुम्हारा ड्रेसिंग टेबल तो…।” उनके बोलने के भाव में प्यार कम व्यंग्य ज़्यादा नज़र आ रहा था।

    मैंने भी ठंडी साँस भरते हुए कह दिया,” नहीं लेना है अब।तीन दिन पहले मार्केट गई थी..उसका दाम तो सोने के समान हो गया है।उतना मंहगा लेकर अब क्या होगा..मेरे चेहरे की झुर्रियाँ और बालों की सफ़ेदी तो उसमें भी उतनी ही दिखेगी ना जितनी कि गाॅदरेज़ वाली शीशे में दिखती है।” वो पैसे बच जाने की अपनी जीत पर मंद-मंद मुस्कुराने लगे।मैंने भी मन में कहा, बच्चू..अपने सपने टूटने की भड़ास तुम पर न निकाली तो मेरा नाम भी…।”

                       विभा गुप्ता

                         स्वरचित

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