” स्वाति बेटा…किसी के दिये उपहार को यूँ फेंककर अपमान नहीं किया करते।” बेटी द्वारा फेंके गये पर्स को फ़र्श से उठाकर उसे देती हुई कामिनी बोली।तब स्वाति उन्हें पर्स के पीछे लगे प्राइस टैग को दिखाते हुए तल्ख-स्वर में बोली,” इसका प्राइस तो देखिये…सिर्फ़ सौ रुपये…उँह! इससे ज्यादा कीमत की तो मेरे पास पेन है..पर्स तो…।” तब कामिनी उसे समझाते हुए बोलीं,” बेटी..#उपहार की कीमत नहीं, दिल देखा जाता है।देखो तो, रजनी ने कितने प्यार-से अपने हाथों से पर्स पर लेस और चमकीले सितारे लगाकर उसेआकर्षक बना दिया है।तुम्हें उसकी दोस्ती का मान तो रखना चाहिए…।”
” आप ही रखिये मान..।” अपनी मम्मी की बात सुने बिना ही वो गुस्से-से पैर पटकती हुई अपने कमरे में चली गई।
कामिनी के पति श्रीकांत जिंदल ‘ जिंदल एंटरप्राइज ‘ के मालिक थे।उनका बेटा आशीष सरल स्वभाव का मिलनसार लड़का था।बेटी स्वाति इसके विपरीत थोड़ी जिद्दी और घमंडी स्वभाव की थी।
स्वाति के पाँचवें बर्थ-डे पर उसकी आया ने उसे उपहार में एक लंचबाॅक्स दिया।स्वाति को लंचबाॅक्स का रंग पसंद नहीं आया और जब उसकी कीमत 20rs देखी तो उसने आया के सामने ही ज़मीन पर फेंक दिया।तब कामिनी ने उसके व्यवहार को बचपना समझकर आया को साॅरी बोल दिया।लेकिन जैसे -जैसे वो बड़ी होती गई, उसका अकड़पन भी बढ़ता गया।
दसवीं कक्षा में प्रथम आने पर उसकी बुआ ने अपने हाथों से सिल कर एक ड्रेस उसे दिया।प्राइस टैग दिखाई न देने पर उसने बुआ से पूछ लिया।तब उसकी बुआ मुस्कुराते हुए बोलीं,” अपनी प्यारी भतीजी के लिये ड्रेस मैं अपने हाथों से सिल कर लाई हूँ…चल, पहनकर तो दिखा..।”
” क्या बुआ..कम से कम मेरी हैसियत का तो लाती..इसे तो आप ही…।” कहते हुए उसने अपनी बुआ को ड्रेस लौटा दिया।तब कामिनी ने उसे डाँटना चाहा लेकिन बुआ ने यह कहकर उन्हें रोक दिया कि अभी तो बच्ची है ना भाभी, बड़ी होगी तब सब समझ जायेगी।श्रीकांत ने भी यही कहकर पत्नी को शांत करा दिया।
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स्वाति काॅलेज़ जाने लगी तब रजनी नाम की लड़की से उसकी मित्रता हुई।बातचीत में वो रजनी को बताती कि मेरे पिता की बहुत बड़ी कंपनी है..मेरे घर में इतने सारे नौकर-चाकर है..इतनी गाड़ियाँ हैं, वगैरह-वगैरह।रजनी बोलती कुछ नहीं, बस हाँ-हूँ कर देती।कभी-कभी वो रजनी को घड़ी,पेन, इयररिंग आदि उपहार में भी देती रहती।रजनी मना करती कि मैं तुम्हारी तरह अमीर नहीं हूँ..तुम्हें इतने महंगे गिफ़्ट..।”
” दोस्ती के बीच ये महंगे-सस्ते वाली बात नहीं होती है..।” हँसते हुए स्वाति कहती और उसे चीज़ें जबरदस्ती दे देती।
अपने जन्मदिन पर स्वाति ने क्लास में टाॅफ़ियाँ बाँटी।तब रजनी ने उसे उपहार में पर्स दिया जिसे उसने घर आकर फेंक दिया और तब उसकी माँ ने उसे उपहार और रिश्ते के महत्त्व को समझाना चाहा लेकिन उसने अनसुना कर दिया।
बेटी का ग्रेजुएशन पूरा होते ही कामिनी ने उसका विवाह शहर के प्रसिद्ध बिजनेस के बेटे मनीष के साथ कर दिया।मनीष अपने पारिवारिक बिजनेस में अपने पिता और बड़े भाई के साथ संलग्न था।कुछ दिनों तक तो स्वाति अपने ससुराल वालों के साथ रही लेकिन फिर उसने मनीष पर दबाव डालकर घर और बिजनेस अलग करा दिया।
समय के साथ स्वाति एक बेटा और एक बेटी की माँ बन गई लेकिन उसका अहंकार बरकरार रहा।मायके जाती तो अपने भतीजे के कपड़ों-खिलौनों देखकर कहती,” भाभी..आप बहुत सस्ती चीजें खरीदतीं हैं.. मेरे बच्चों का देखिये..।” सुनकर उसकी भाभी तो चुप रह जाती लेकिन कामिनी जी उसे समझाती और वो हमेशा की तरह एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल देती।
समय कभी एक जैसा नहीं रहता..कभी तो लक्ष्मी जी की बहुत कृपा होती है तो कभी वो रूठ जातीं हैं।मनीष के बिजनेस में भी एकाएक घाटा होने लगा।तब उसने मार्केट से कर्ज़ लिया कि अगले महीने मुनाफ़ा होगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ।अपने भारी नुकसान की भरपाई के लिये अपने भाई और ससुराल वालों से मदद माँगना उसके स्वाभिमान को गँवारा न हुआ।
उसने त्वरित अपना बिजनेस, बंगला और गाड़ियाँ बेचकर सबके कर्ज़ चुकाये और पत्नी-बच्चों के साथ एक किराये के मकान में शिफ़्ट हो गया।स्वाति की आँख खुल चुकी थी।मनीष को अपने जेवर देकर बोली,” आप इसे बेचकर नया काम शुरु कीजिए, तब तक मैं कुछ बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने का काम कर लेती हूँ..।हमारे बच्चों की पढ़ाई नहीं रुकनी चाहिए।”
एक दिन स्वाति राशन खरीदकर घर लौट रही थी कि एक महिला ने उसे आवाज़ दी,” स्वाति…।”उसने पीछे मुड़कर देखा..कार के पास खड़ी महिला को देखकर वो चौंक पड़ी और चेहरे पर मुस्कराहट लाते हुए बोली,” रजनी! तुम यहाँ कैसे?”
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रजनी बोली,” छह महीने पहले ही मेरे पति की पोस्टिंग यहाँ हुई है।चल बैठ ना..घर चलकर बातें करते हैं।”
” आज नहीं..वो..घर में..।” सकुचाते हुए स्वाति बोली।रजनी ने उसके मनोभावों को पढ़ लिया था।मुस्कुराते हुए बोली,” कोई बात नहीं..लेकिन परसों मेरी मैरिज़ एनिर्वर्सरी है..अपने पति और बच्चों के साथ तुझे आना है.. ये मेरा कार्ड है, पता और फ़ोन नंबर लिखा है।तू अपना नंबर बता..।” उसने स्वाति का नंबर अपने मोबाइल में सेव कर लिया और दोनों अपने-अपने रास्ते चलीं गईं।
घर आकर स्वाति ने निश्चय किया कि पार्टी में नहीं जायेगी लेकिन रजनी ने उसे दो-तीन बार फ़ोन किया और प्यार से आग्रह किया तो वो मना नहीं कर सकी।उसने मनीष को कहा कि शाम को बच्चों को आप देख लीजियेगा..मैं ज़ल्दी ही वापस आ जाऊँगी।एक थैले में गिफ़्ट रखकर वो स्वाति की पार्टी में चली गई।
रजनी ने अपनी सहेली का खुले दिल से स्वागत किया।मेहमानों से घिरी होने के बाद भी वो स्वाति को शरबत-मिठाई पूछना नहीं भूलती।धीरे-धीरे मेहमान जाने लगे तब स्वाति ने सहेली से जाने की अनुमति ली और बाहर निकल गई।कुछ दूर जाने के बाद उसे याद आया कि गिफ़्ट देकर वो थैला लाना तो भूल ही गई।उसने ऑटो वाले को वापस चलने को कहा।
मेहमानों के जाने के बाद रजनी और उसकी बेटी ड्राइंग रूम में बैठकर उपहारों की पैकिंग खोलने लगी।एक उपहार देखकर बेटी बोली,” मम्मी..ये क्या!”
स्वाति तेजी-से रजनी के दरवाज़े पर पहुँचकर काॅलबेल बजाने लगी कि रजनी की बेटी की बात सुनकर उसके हाथ रुक गये।
” मम्मी..आपने तो बताया था कि स्वाति आंटी बहुत अमीर हैं..वो आपको मँहगे-मँहगे गिफ़्ट देतीं थीं तो फिर आज आपको..सबने आपको और पापा को हज़ार-हज़ार रुपये के गिफ़्ट दिये हैं और उन्होंने…।”
रजनी बोली,” बेटी..#उपहार की कीमत नहीं, दिल देखा जाता है।कुछ महीनों पहले ही उसके पति को बिजनेस में बहुत नुकसान हुआ था।फिर भी वो आई और देखो..कितना सुंदर पौधा लाई है..।बाकी उपहार कीमती हैं लेकिन बेजान हैं।स्वाति का दिया पौधा तो हमें हमेशा फूल देगा.. ऑक्सीजन देगा..।” सुनकर स्वाति की आँखों से झर-झर आँसू बहने लगे।आज रजनी ने उसकी दोस्ती का मान रख लिया।उसे याद आया कि उसने कितनी बेदर्दी से रजनी के दिये पर्स…।कितनी महान है रजनी..।वो वापस लौट गई।
अगले दिन रजनी ने उसे फ़ोन किया,” स्वाति..तेरा थैला तो..।”
” तो लेकर तू आ जा..अच्छी-सी चाय पिलाऊँगी..।
” सच!…।” रजनी चहक उठी और दोनों सहेलियाँ हँसने लगीं।
विभा गुप्ता
स्वरचित, बैंगलुरु
# उपहार की कीमत नहीं, दिल देखा जाता है