दोषी कौन – ऋतु दादू : Moral Stories in Hindi

दफ्तर से आकर जब राघव ने नेहा को बताया कि वह कार्यालय के काम से जयपुर जा रहा है,चाहे तो वह भी साथ चल सकती है,तो नेहा ख़ुशी से चहक उठी, आखिर उसने अपना बचपन जयपुर में ही तो बिताया था। जयपुर जाने के लिए गाड़ी में बैठते ही नेहा बचपन की यादों में खो गई। नेहा करीब १६-१७ वर्ष की होगी

जब शर्मा अंकल आंटी, उनके बेटे आलोक भैया उनकी नव विवाहिता पत्नी रजनी भाभी उसकी पड़ोस में आकर रहने लगे थे। नेहा की मां और शर्मा आंटी बहुत अच्छी सहेली बन गई थी। रजनी भाभी को नेहा के रूप एक छोटी बहन मिल गई थी। अंकल और आलोक भैया की जयपुर के प्रसिद्ध बाज़ार में साड़ियों की बड़ी सी दुकान थी, पटरानी साड़ी शो रूम के नाम से। आलोक भैया से छोटे विनय भैया भी थे, जो बंगलौर में रहकर इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे।

जब नेहा कॉलेज के दूसरे वर्ष में थी तब उसके पिता का तबादला इन्दौर हो गया था। कुछ वर्ष तो शर्मा आंटी और उसकी मां के बीच चीत होती रही, फिर धीरे धीरे सब अपनी दुनिया में व्यस्त हो गए। नेहा का विवाह भी राघव से हो गया और वह दिल्ली आ गई।

नेहा, अंकल -आंटी और रजनी भाभी से मिलने की खुशी का उत्साह समेट नहीं पा रही थी, राघव ने नेहा को कॉलोनी के बाहर ही उतार दिया । नेहा बहुत उत्साह से चारों तरफ देख रही थी,अपने बचपन के पड़ोसियों को याद कर रही थी। अब वह २५ नंबर बंगले के आगे खड़ी थी, जहां वह अपने माता पिता के साथ रहती थी,बराबर में २६ नंबर में अंकल

आंटी रहते थे, उसने दरवाजे पर लगी घंटी बजाई तो देखा दरवाज़ा खुला ही था, सामने दीवान पर कृशकाय काया में शर्मा अंकल अख़बार पढ़ रहे थे, और पास में आंटी बैठी सब्ज़ी काट रही थी। नेहा ने जब अपने परिचय दिया तो उन दोनों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था, बहुत देर वो लोग आपस में बात करते रहे, उसके माता पिता का हाल चाल, उसके सुसराल के बारे में पूछते रहे। नेहा ने अपनी दृष्टि घर में दौड़ाई तो घर बहुत अस्त व्यस्त सा था, नेहा की नज़रे रजनी भाभी को खोज रही थी। जब उससे रहा न गया तो उसने धीरे से पूछा कि भैया – भाभी कही बाहर गए है क्या?

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उनका ज़िक्र आते ही अंकल – आंटी के चेहरे पर निराशा सी उभर आई। आंटी ने बताया कि क़रीब चार वर्ष पहले वो दोनों हमसे अलग हो गए और दिल्ली जाकर बस गए। विनय ने भी अपने साथ काम करने वाली लड़की से प्रेम विवाह कर लिया है और बैंगलोर में ही बस गया है। नेहा को सुनकर धक्का लगा, उसे रजनी भाभी और आलोक भैया से ऐसी उम्मीद नहीं थी, इस उम्र में अंकल आंटी को यूं अकेला छोड़कर चले जाएंगे।

नेहा ने आंटी से रजनी भाभी का दिल्ली का पता ले लिया और निराशा भाव से पति राघव के साथ दिल्ली वापिस आ गई।

सही मायने में तो उसकी भैया भाभी से मिलने की इच्छा ही खत्म हो गई थी, पर जो रजनी भाभी नेहा की आदर्श थी, सही मायने में रिश्तों की गरिमा नेहा ने सिखी ही रजनी भाभी से थी, फिर उन्होंने अंकल आंटी के साथ इतना अन्याय क्यों किया? यह जानने के लिए उसने उनसे मिलने जाने का निर्णय लिया।

अगले दिन राघव के ऑफिस जाने के बाद नेहा रजनी भाभी के फ्लैट पर पहुंच गई। इतने दिन बाद उसे देख रजनी भाभी ने प्यार से अपने सीने से लगा लिया। छोटा सा फ्लैट था,उनका, बहुत करीने से सजाया हुआ।

नेहा को अनमना सा देख रजनी भाभी गंभीर हो गई और उन्होंने कहा, नेहा तुम मुझे और आलोक को बहुत दोषी मान रही हो न, मां बाबूजी को अकेला जो छोड़ दिया। सही मायने में जो दिखता है, वो ही सच नहीं होता। उन्होंने बताना शुरू किया, पढ़ने में तो आलोक भी बहुत अच्छे थे, लेकिन जब वो बारहवीं कक्षा में थे तब बाबूजी की तबियत खराब रहने लगी थी

और आलोक को दुकान संभालनी पड़ी, ग्रेजुएशन की डिग्री भी उन्होंने प्राइवेट ही ली और बहुत जल्दी दुकान का सारा काम उन्होंने संभाल लिया था। विनय भैया ने अपनी पढ़ाई पूरी कर बैंगलोर में ही एक अच्छी कंपनी में नौकरी कर ली थी। मां , बाबूजी को हमेशा ये लगा कि आलोक को बिना मेहनत के सब कुछ जमा जमाया मिल गया, अगर आलोक मेरे लिए कुछ अलग से ले आते तो मां और बाबूजी हमें फिजूल खर्ची पर अच्छा खासा भाषण सुना देते। बाबूजी रोज़ हमे यह अहसास कराते कि आलोक को आराम से बसी बसाई दुकान मिल गई, जबकि विनय ने बहुत मेहनत से पढाई करके नौकरी हासिल की है।

जब भी विनय भैया घर आते उनके लाएं उपहारों की चर्चा सारे रिश्तेदारो से करते और अगर हम कुछ भी लाकर देते तो बोलते हमारे पैसे से ही हमे देने का क्या फायदा। विनय भैया ने अपनी पसंद की लड़की शिल्पी से प्रेम विवाह कर लिया। मां, बाबूजी १०- १५ दिन उनके यहां रहने जाते तो महीनों तक उनका गुणगान करते। धीरे धीरे मैं अवसाद ग्रस्त होती जा रही थी।

सच बताऊं, नेहा जिंदगी बोझ सी हो गई थी, मां बाबूजी को लगने लगा था कि हम उनके ऊपर आश्रित हैं, इसलिए वो विनय भैया को ज्यादा मान सम्मान देते।

अपने बच्चों के भविष्य की खातिर हमें यह कठोर निर्णय लेना पड़ा, आलोक ने अपने दोस्त के साथ मिलकर दिल्ली में एक छोटी सी कपड़ों की दुकान खोली, ईश्वर की कृपा से आज हमारे पास अच्छी बड़ी दुकान है।

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जब हमने घर पर अपने अलग होने का निर्णय बताया था तब भी बाबूजी ने इनको यह कहकर फटकार दिया था कि दो दिन में आटे दाल के भाव मालूम पड़ जाएंगे, तुम्हारे जगह मै दुकान पर कोई नौकर रख लूंगा,वह सब संभाल लेगा।

हमारे दिल्ली आने के कुछ माह बाद ही विनय भैया आए थे, हमे वापिस जयपुर ले जाने के लिए। दुकान घाटे में जाने लगी थी, बाबूजी का स्वास्थ्य भी बिगड़ रहा था, और मां को घर संभालने में भी बहुत कठिनाई हो रही थी। सब कुछ जानकर आलोक ने कहा, मां बाबूजी चाहे तो वे दुकान बेचकर हमारे साथ दिल्ली आकर रह सकते हैं पर हम अब वापिस जयपुर नहीं आयेंगे।

शायद इसमें भी मां बाबूजी का अहम आड़े आ रहा था।वो हमारे पास रहने के लिए नहीं आए ।

अब तुम ही बताओ नेहा इस में हमारा क्या दोष है। जो आज की परिस्थिति में देखेगा उसे हम ही दोषी नजर आएंगे। किस किस को अपनी सफाई देंगे इसलिए जमाने की चिंता करना हमने छोड़ दिया है।

रजनी भाभी से मिलकर नेहा को बहुत हल्कापन महसूस हो रहा था ।उसे समझ नहीं आ रहा था कि” #घर टूटने पर आखिर हर बार बहु बेटे को ही क्यों दोष दिया जाता है”?

ऋतु दादू

इंदौर (मध्य प्रदेश)

 “#घर टूटने पर आखिर हर बार बेटे बहु को ही दोष क्यों दिया जाता है?”

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