दोषी कौन – अनु मित्तल “इंदु”

“देखना आने वाले कुछ सालों में  यहाँ बस बूढ़े लोग ही  नज़र आयेंगे “

राजन की यह बात सुन कर पत्नी रश्मि चौंक उठी।

सुबह के सात बजे थे। दोनों पति पत्नी अखबार पढ़ते पढ़ते चाय पी रहे थे।

“ऐसा क्यों कह रहे हैं आप”? रश्मि ने कहा।

“यह देखो हमारी  आज़ की generation किस तरफ जा रही है।”

राजन ने बड़बड़ाते हुये  कहा।

अखबार में *sologamy * पर एक खबर छपी थी कि  एक 24 वर्षीया महिला पूरे विधि विधान के साथ ख़ुद अपने साथ ही विवाह रचा रही है जिसमें

शादी की सारी रस्में  *मेहंदी* संगीत *फेरे* सब निभाई जायेंगी।

sologamy यानी अपने आप से शादी।

1993 में US की linda Baker नामक  एक महिला ने पहली बार ऐसा किया था।

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लेकिन भारत में ऐसा पहला मामला है।

क्षमा बिंदु नाम की इस महिला का कहना है कि मैं दुल्हन तो बनना चाहती हूँ मगर बीवी नहीं। मैं अकेले केवल अपने साथ  रहना चाहती हूँ।

सुनकर रश्मि का मन विचलित हो गया।

अभी परसों की ही बात थी।घर में छोटा सा एक फंक्शन था जिसमें उसके ननद नंदोई और परिवार के सब सदस्य बैठे हुये थे। रश्मि के बेटा बहू भी बैठे थे। छः साल की पोती और डेढ़ साल का पोता नौकरानी के साथ खेल रहे थे।

“मैं तो तंग आ चुकी हूँ बच्चों से ,अब मुझे छुटकारा चाहिये इन सब झंझटों से” बहू  के कथन से रश्मि चौंक गई। 72 वर्षीय बुआ सास को भी बहुत बुरा लगा सुन कर।

“ऐसा नहीं कहते बेटा” बुआ ने कहा।

“नहीं मैं सच कह रही हूँ बुआ जी। मैं तो नौकरी भी इसलिये करना चाहती हूँ कि मुझे चैन की साँस चाहिये”।

बहू के इसी व्यवहार के कारण  रश्मि ने पांच साल पहले ही बेटे बहू को अलग घर ले कर दे दिया था। घर में फुल टाइम मेड के इलावा बर्तन सफाई  कपड़ों के लिये अलग मेड रखी हुई थी।घर में हर तरह के आधुनिक ऐशो आराम थे। मगर बहू नौकरी की आड़ में जिम्मेदारियों से बचना चाहती थी, यह जानकर  रश्मि को बहुत तकलीफ हुई।

दिल्ली में जहां वो पहले रहते थे ,उनके पड़ोस में एक सूद family रहती थी।उनके बेटा  बहू भी दोनों जॉब करते थे। शादी को 15 साल हो गये  थे मगर कोई बच्चा नहीं था। मिस्टर सूद ने हमें बताया कि उन्होंने by choice ही कोई बच्चा नहीं किया। कौन बच्चों की देख रेख करे ,

कौन सुबह उठ कर उन्हें स्कूल के लिये तैयार करे , स्कूल से लेकर आये। जॉब से थके हारे आओ और फ़िर बच्चे देखो ,यह सब हमारे बस की बात नहीं।

कल्पना कीजिये कि अगर सब यही सोचने लगेंगे तो एक दिन विवाह और परिवार की संस्था ही लुप्त हो जायेगी। जब कोई जिम्मेदारी उठाने वाला ही नहीं होगा तो ऐसा ही होगा।चारों तरफ रोते कराहते बूढ़े लोग ही नज़र आयेंगे।

अनु मित्तल “इंदु”

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