भगवान के नाम पर कुछ दे दें बेटी! दो दिन से कुछ नहीं खाया है, विभा की नजर उस बूढ़ी अम्मा पर पड़ी तो वो सिहर गई, इस उम्र में भी उनको भीख मांगनी पड़ रही है, वो अपना पर्स खोलती कि इससे पहले ही ट्रेन चल पड़ी, लोकल ट्रेन से वो रोज इसी रास्ते से अपने ऑफिस जाती है, यूं तो स्टेशन पर काफी भीख मांगने वाले रहते हैं, पर इस बूढ़ी अम्मा को देखकर उसे विश्वास नहीं होता था कि ये भिखारिन है, पर जब भूख बर्दाश्त ना हो, और पास में खाने के लिए नहीं हो तो कोई दूसरा चारा नजर नहीं आता है।
विभा पूरे रास्ते उस बूढ़ी अम्मा के बारे में सोचती रही, और दिन भर ऑफिस में पूरा हो गया, शाम को जब वो लौटी तो स्टेशन पर फिर से वो ही दिखाई दी, विभा उनके पास गई तो उनकी आंखें बुझी हुई थी, यूं लग रहा था कि जीने की कोई उम्मीद ही नहीं बची हो, बस जिंदगी काटनी है इसलिए जीना है, उम्र करीब अस्सी साल, चेहरे पर अनुभवों की झुर्रियां, मैली कुचली साड़ी पर इन सबसे हटकर भी वो कुछ अलग लग रही थी।
किसी अच्छे घर की महिला ही नजर आ रही थी, पता नहीं कौनसी ऐसी मजबूरी है?
विभा ने वही खाने बेचने वाले से एक प्लेट ले ली, जिसमें चार पूड़ी और आलू की सब्जी थी, साथ ही उसने एक पैकेट छाछ भी ले ली ताकि गले में तरावट हो जायेगी।
अम्मा, ये खाना खालो और छाछ पी लो, आपका पेट भर जायेगा, खाना देखते ही उनकी आंखें चमक गई, उन्होंने आशीर्वाद दिया और खाने लग गई, विभा आगे कुछ पूछती कि विनीत का फोन आ गया, कहां हो यार अब तक तो घर आ जाती हो, आज तो बड़ा समय लगा दिया।
हां, आ रही हूं, वो मै आकर बताती हूं और विभा घर की ओर चल दी।
तुम भी ना विभा! स्टेशन पर तो ऐसे कितने ही भिखारी होते हैं, रोज कितनों को खाना बांटोगी, आज दोगी तो कल भी मांगेंगे, फिर इन लोगों को रोज मांगने की आदत हो जाती है, काम-धाम तो कुछ ये करते नहीं है बस मुफ्त की रोटियां ही तोड़ते हैं, विनीत ने तेज स्वर में कहा।
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नहीं विनीत, ये आम भिखारिन की तरह नहीं थी, जरूर कोई मजबूरी होगी, इतनी लाचार लग रही थी कि तुमको भी देखकर दया आ जाती, मै कल अम्मा से बात करूंगी।
अरे!! कल तो संडे है, कल क्यों जाओगी?
तभी तो कल जाऊंगी, संडे है ऑफिस जाने की जल्दी नहीं होगी और ना ही घर आने की।
अगली सुबह विभा स्टेशन की ओर चल दी, वहां पर उसने बूढ़ी अम्मा को ढूंढा पर वो कहीं दिखाई नहीं दी, तभी पूछने पर किसी ने बताया कि वो स्टेशन के बाहर जो बड़ा सा बरगद का पेड़ है वहीं पर उनका बसेरा है, तो विभा वहीं चली गई।
बरगद के पेड़ के नीचे वो लेटी हुई थी, अम्मा मै आपके लिए नाश्ता लाई हूं, आज आप अंदर नहीं आई?
हां, बिटिया तबीयत ठीक नहीं लग रही है, हाथ -पैर भी जवाब दे चुके हैं, अब इस उम्र में कोई भी काम नहीं होता है, तो भीख मांगकर ही काम चला लेती हूं, वैसे कभी-कभी तेरे जैसे लोग भी आते हैं, मुफ्त में खाना दे जाते हैं।
अम्मा, आप कब से भीख मांग रही है? विभा के सवाल को सुनकर वो हैरान रह गई, और आंखों से आंसू बहने लगे।
बिटिया, भीख मांगना मुझे पसंद नहीं है पर क्या करूं? मजबूरी है, इस उम्र में हाथ-पांव चलते नहीं है,पेट की आग बुझाने के लिए खुद भी जलना पड़ता है। कभी नहीं सोचा था कि मेरी भी ये स्थिति होगी, मै तो स्टेशन पर भिखारियों को खुद भीख देती थी, खाना, कपड़ा, जरूरत का सामान बंटवाती थी।
शहर के बीचों-बीच हमारा बड़ा सा मकान था, मकान में नौकर-चाकर थे, किसी रानी से मै कम नहीं थी, घर पर दादी सास का हुकुम चलता था वो लाठी हाथ में लेकर सबकी बजाती थी, मजाल थी कि उनके हुकुम के बिना एक पत्ता भी हिल जाएं। घर में खाने-पीने की कोई कमी नहीं थी, हर आने-जाने वाले का घर में पूरा सम्मान किया जाता था, नौकर, माली, धोबी, मुनीम सबको त्योहार पर अच्छे कपड़े और पैसे, मिठाई देते थे।
जब मेरी गोद भराई हुई थी तो पूरा गांव जीमणे आया था, देशी घी में पकवान बने थे, सबने बेटे का आशीर्वाद दिया और मुझे पहली संतान के रूप में सोहन मिला।
सोहन की परवरिश में कोई कमी नहीं रही, डेढ़ साल बाद ही रोहन भी हो गया।
दो बेटो की मां बनने का जो गर्व था वो मेरे सिर पर चढ़कर बोल रहा था, मै दादी सास और सास की प्यारी बहू थी जिसने खानदान को दो वारिस दिये थे।
हम हर त्योहार पर मंदिर और स्टेशन पर जाकर भिखारियों और जरूरतमंद को कपड़े और खाना बंटवाते थे।
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मेरे दोनों बेटे बड़े हो रहे थे, पति विरासत से मिला व्यापार संभाल रहे थे, घर में साक्षात अन्नपूर्णा का वास था , दोनों बेटों की अच्छे से परवरिश हो रही थी पर वो
ज्यादा धन देखकर बिगड़ने लगे थे, पढ़ाई से जी चुराकर गलत संगत में फंस गए थे, दोस्तों और यारों में पैसा लुटाने लगे थे, घर में उनको डांटा जाता था पर मुझे सुनाया जाता था कि मै मां होकर बेटो का ध्यान नहीं रख पाती हूं।
दादी सास पोतो की चिंता करते-करते चली गई, और सास-ससुर का संसार से मन उठ गया तो वो धार्मिक स्थल में जाकर रहने लगे, हमने समझाया कि दोनों की शादी तो कर जाओं, पर वो बोले जब पोत बहू आयें तो मुंह दिखाने आ जाना। अब इतने बड़े घर में हम चार लोग रह गये थे, अब पहले की तरह घर में कोई आता-जाता भी नहीं था।
बेटे बड़े हो गए तो उनकी शादी की चिंता होने लगी, घर का व्यापार था पर अकेले मेरे पति संभालते थे, सोचा था बेटे हैं तो व्यापार अच्छा चलेगा पर बेटो को अपनी आवारागर्दी से ही फुर्सत नहीं मिल रही थी। गलत संगत में फंसकर जुएं और शराब में धन लुटाये जा रहे थे और जो लोग पति के साथ व्यापार में जुड़े थे वो भी छल कपट करके धन बना रहे थे।
शादी की उम्र निकली जा रही थी, हमने तय किया कि शादी कर देंगे ताकि हो सकता है बेटे शादी के बाद सुधर जाएं। परिवार का बड़ा नाम था, आखिर दोनों की शादी तय हो गई, एक साथ ही घर में दो बहूंएं आ गई।
अब लग रहा था कि लक्षमी घर आई है तो घर की स्थिति सुधर जायेगी। गरीब घरों से बेटियां लाये थे पर वो तो हमारे ही सिर पर चढ़ गई, इतना धन देखकर दोनों को लालच आ गया और फालतू खर्च करने लगी।
पहले तो हम बेटो से ही परेशान थे पर अब बहूंएं भी नकचढ़ी आ गई थी, वो भी अय्याशी में कम नहीं थी, महंगे कपड़े जेवर खरीदने और सैर सपाटे में लग गई थी, मेरे पति व्यापार और मै घर बार संभाल रही थी।
दोनों देर तक उठती नहीं थी और रसोई में पैर नहीं रखती थी, मेरी हालत देखकर पति ने बेटों को कई बार समझाने की कोशिश की, पर वो समझे नहीं।
ये चिंता करने लगे और एक दिन अचानक इनकी तबीयत बिगड़ी और मुझे संसार में अकेला छोड़कर चले गये।
इनके जाने के बाद भी बेटो की नींद नहीं खुली, दो-दो बच्चे हो गये, पर व्यापार संभाला नहीं गया और उसमें नुकसान होने लगा। एक दिन ऐसा आया कि कर्जदारों की भीड़ सिर पर आकर खड़ी हो गई, दोनों बेटों को तब होश आया पर जब तक सब कुछ नष्ट हो चुका था।
अब घर में लड़ाई झगडे शुरू हो गये, दोनों बहूंएं रोज मायके जाने की धमकी देती और घर में भी पैसों की भारी तंगी हो गई थी।
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वो कहते हैं ना विधवा मां सबकी आंखों में खटकती है, मै विधवा थी, कोई सहारा नहीं था,तो दोनों बेटे-बहू कुछ भी सुना देते थे। मेरे खाने-पीने में कटौती करने लगे थे, उन्हें लगता था कि अकेली इस मां का बहुत खर्चा हो जाता है। अब रोज मुझे कोसा जाने लगा, मेरी वजह से दोनों कहीं ढंग से काम नहीं कर पा रहे हैं, घर में विधवा हो तो बरकत भी कम होती है, यही सोचकर बहूंएं भी मुझे तानें देने लगी थी।
मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मै क्या करूं? एक दिन सोहन बोला मां आपको तीर्थ स्थल की यात्रा करवा लाता हूं हो सकता है कुछ पुण्य मिलें और हमारे घर की स्थिति सुधर जाएं।
मै भी खुश थी पर थोडी आशंकित भी, आखिर ऐसी गरीबी में तीर्थयात्रा करवाने की क्या सूझी, फिर भगवान का ही फैसला मानकर मै तैयार हो गई। जिस तीर्थ स्थल जाना था, वहां से दो स्टेशन पहले सोहन मेरे लिए पानी लेने को प्लेटफार्म पर उतरा था, पानी तो लाया नहीं और खुद भी नहीं आया, ट्रेन चलने लगी और मेरे पास एक रूपया भी नहीं था।
स्टेशन जाकर गाड़ी रूक गई, मै नीचे उतरी और अपने बेटे को संभाल रही थी पर वो नहीं आया। स्टेशन पर ही सुबह से शाम हो गई, पास में पैसा भी नहीं था और भूख भी लग रही थी, कुछ नहीं सूझा।
एक दो दुकानदारों को अपनी आपबीती सुनाई पर किसी ने भी मुझे खाना नहीं दिया।
मैंने कहा मुझे उधार दे दो, मेरा बेटा एक दो दिन में लेने आ जायेगा, तो सब हंसने लगे।
अम्मा, तुम बहुत भोली हो, तुम्हारा बेटा अब कभी नहीं आयेगा, वो तुम्हे यहां छोड गया है, तुमहारे साथ रहना उसको भारी लग रहा था।
मुझे विश्वास नहीं हुआ, नौ महीने जिस बेटे का भार उठाया, खून से सींचा आज उन्हीं बेटो को मां भारी लगने लगी थी।
बस तब से बेटों का इंतजार करना छोड़ दिया है, अब तो यही स्टेशन पर भीख मांगकर गुजारा कर लेती हूं और भगवान का नाम जप लेती हूं।
बूढ़ी अम्मा की कहानी सुनकर विभा की आंखें भर आई, सच है सब जानबूझकर भीख नहीं मांगते हैं, कुछ लोग मजबूर भी होते हैं, विभा घर पर आ गई।
अपनी बूढ़ी अम्मा से मिल आई? कोई कहानी सुना दी होगी।
हां, विनीत ऐसी कहानी जो अंदर तक मन को झकझोर देती है, बेटो से मां का भार ना उठाया गया तो वो उन्हें स्टेशन पर छोड़कर चले गये। मैंने कहा बूढ़ी अम्मा आप अपने घर का पता दो पर वो मुकर गई। वो अब ना बेटों के साथ रहना चाहती है और ना ही उन्हें सजा दिलाना चाहती है।
वापस भी जाना नहीं चाहती, जब बेटों ने मेरा त्याग कर दिया तो मै क्यों उनसे मोह रखूं ? पत्थर की बन गई है, पर विनीत मुझे अम्मा का इस तरह स्टेशन पर भीख मांगना अच्छा नहीं लगता है, हम उनके लिए कुछ नहीं कर सकते?
विभा, हम क्या कर सकते हैं? हमारी अपनी नौकरियां है, अपनी बेटी है, जिसकी जिम्मेदारी हमारी है कि हम उसे अच्छा जीवन दें।
लेकिन विनीत हम अपनी बेटी को सब दे रहे हैं पर जो सबसे अमूल्य विरासत है वो नहीं दे पा रहे हैं।
हमारी बेटी अकेलेपन से जूझ रही है हम उसे समय नहीं दे पा रहे हैं और ना ही दादी-नानी का प्यार दे पा रहे हैं।
विनीत, क्यों ना हम उन बूढ़ी अम्मा को गोद ले ले और अपने घर लेकर आ जाएं? उन्हें भी सहारा मिल जायेगा और हमारी बेटी को दादी-नानी का प्यार भी मिल जायेगा।
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तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है, ऐसे ही रास्ते से किसी को भी उठाकर अपने घर में ले आऊं? किसी के बारे में कुछ पता तो होना चाहिए, फिर वो हमारी कोई नहीं लगती है, ऐसे मदद करना चाहो तो कर सकती हो, पर उन्हें घर तो नहीं ला सकते हैं। अनजान,अजनबी लोगों का कोई भरोसा नहीं होता है। लेकिन विनीत तुम भी तो अनजान और अजनबी ही थे, जब तुम्हें अनाथालय से लाया गया था।
विभा की बात सुनकर विनीत चौंक गया, फिर वो झूठ भी तो नहीं बोल रही थी, वो भी अनाथ था, जाने क्यों उसके माता-पिता ने उसका त्याग कर दिया था? आज भी उसे अपने माता-पिता की याद आती है। जिन लोगों ने उसे गोद लिया था, उन्होंने बड़े लाड़ प्यार से पाला और आज उन्हीं के दम पर वो अपने पैरों पर खड़ा हुआ है।
विभा से शादी हुई और एक दिन दोनों उससे ही मिलने अपनी कार से आ रहे थे पर भीषण सड़क दुघर्टना में दोनों मारे गये और अपनी पोती का चेहरा भी देख नहीं पाएं। विनीत फिर से अनाथ हो गया था, ये तो विभा ने उसे संभाला और हर कदम पर उसका साथ दिया।
मुझे माफ कर दो विभा, हम कल सुबह ही उन अम्मा के पास चलेंगे और उन्हें घर पर ले आयेंगे । रात को विभा बहुत खुश थी उसने अपनी बेटी को भी बताया था कि वो कल दादी को लेकर घर पर आयेंगे।
सुबह उठकर तीनों ही स्टेशन चल दिए, विभा की नजरें उन्हें ढूंढ़ रही थी, तभी दूसरी ओर बहुत भीड़ दिखी, वो भी भीड़ के अंदर देखने की कोशिश करने लगी, अंदर देखा तो मुंह से चीख निकल गई, अम्मा का शव पड़ा था, काफी दिनों से बीमार थी, समय पर इलाज ना मिलने के कारण मृत्यु हो गई।
दो बेटो की मां भीख मांगने पर मजबूर हो गई थी और आज एक लावारिस की भांति स्टेशन पर पड़ी थी।
विभा रोने लगी, बहुत मुश्किल से विनीत ने समझाया, लोग एक-एक करके जाने लगे, पर विभा वहां से हिली नहीं, विनीत हम अम्मा को अपने साथ नहीं रख पायें, पर सम्मान से इनका अंतिम संस्कार तो कर ही सकते हैं, इनके बेटो को थो खबर भी नहीं होगी कि आज उनकी मां इस दुनिया से चली गई है।
विनीत ने पुलिस वालों से परमिशन ली और सम्मान से अम्मा का अंतिम संस्कार कर दिया। विभा ने भीगी आंखों से उन्हें विदाई दी।
पाठकों, समाज में लडको की बड़ी चाह है कि बेटे होंगे तो माता-पिता को बुढ़ापे में सहारा मिलेगा, उनके हाथों से चिता को आग दी जायेगी,पर कलयुग में सब परिभाषा बदल गई है, बेटे जीते जी माता-पिता को छोड देते हैं, घर से बेघर कर देते हैं।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खंडेलवाल
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