दूध और शक्कर- ज्योति व्यास

“भाभी , ये साड़ी  मुझे मेरी जेठानी के सामने दे देना जब मैं भाई और आपको तिलक लगाऊंगी।”

सीमा ने अपनी नई भाभी को  किचेन में ले जाकर एक पैकेट थमाते हुए कहा।सीमा भाईदूज पर अपने पीहर आई थी।

भाभी ने  सीमा की ओर प्रश्नात्मक दृष्टि से देखते हुए कुछ पूछना  चाहा जिसे सीमा ने मुँह पर उंगली रख कर चुप कर दिया ।

इस बात पर भाभी घोर आश्चर्य में पड़ गई पर नई ब्याहता होने के कारण कुछ नहीं बोल पाई। उसके पीहर में तो माँ और दादी बहुत दिनों पहले से बड़ी दीदी के लिये राखी और भाईदूज पर बहुत सारे उपहार खरीद कर रख लेती थीं।

दरअसल सीमा के पीहर में इससे पहले कोई महिला नहीं थी। सीमा ने अपनी माँ को बचपन में ही खो दिया था।पिता और भाई को न तो इन रीति रिवाजों का पता था न ही वे इस बारे में कोई रुचि रखते थे।अब भाभी के आने से चीज़ें बदल गई थी सीमा की सास की आशाएं भी बढ़ गई थी।अब उसके पीहर की इज्ज़त का सवाल था।

सीमा को  थोड़ा कुछ समझ आया।उसने अपनी संदूक खोली और एक और नई साड़ी साथ ही चूड़ी ,बिंदी भी  निकाल कर रख ली।

शाम को जब सीमा ने भाई -भाभी को भाई दूज का टीका लगाया तो नई भाभी ने सीमा के साथ उसकी जेठानी को भी साड़ी उपहार में दी।

सीमा की आँखों मे खुशी के आंसू थे।जिन्हें वह छुपा गई। जेठानी भी बहुत खुश हो गई।

सीमा को भाभी में माँ का रूप दिख रहा था।उसका मायका फिर जीवित हो गया था। आज उसकी खुशी की तलाश पूरी हो गई थी।कारण साड़ी नहीं  बल्कि पीहर का मान था ,स्नेह था।

आज पच्चीस बरस हो गए हैं ।उतने ही राखी और भाई दूज निकल गए सीमा अपने घर से कभी खाली हाथ नहीं गई।

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अब सीमा और उसकी भाभी के रिश्तों को ननद भाभी के रिश्तों से नहीं  बांधा जा सकता।वे दूध में मिली हुई शकर हैं  जिसे अलग कर के नहीं देखा जा सकता।

समाप्त 

तेज पान

 

” बधाई हो भाभी !अब तो तुम्हारी दूसरी बहू भी आ गई।” बुआ जी और माता जी का वार्तालाप जारी था।

“हाँ जिज्जी !तुम्हें भी बहुत बधाई।”

पर एक बात है! बड़ी बहू ने एक नंबर काम सम्हाला।पूरे ब्याव को हाथ में ले रखा था।

बुआ जी ने अपनी भाभी से कहा।

“अरे जिज्जी कैसी बात कर रही हो ? दस लोगों का काम दस लोग ही कर पाएँगे न !

बड़ी बहू ने ऐसा कौनसा तीर मार लिया ?”

“अरे भाभी !मैं खुद देख रहीं हूँ।पिछले पाँच दिन से सुबह छः बजे से रात को बारह बजे तक चकरी सी घूम रही है।”बुआ जी ने कहा।

अबकी बार तो माता जी का पारा और चढ़ गया।

बोलीं ,तो मैं ,तुम्हारे भैया ,चुन्नू ,मुन्नू और मीना झूला झूल रहे हैं क्या ?आप भी न जिज्जी बस हद करती हो।

इससे आगे न सुन पाई बहू।आँखें बरसने को ही थीं।

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सोच रही थी , “अपनी जिम्मेदारियों के चलते बीमार माँ को देखने भी नहीं गई और ये ईनाम मिल रहा है दिन रात कोल्हू के बैल की तरह काम करने का।”



तभी उसकी निगाह पास में बैठे खाना खाते हुए व्यक्ति पर चली गई जो छोले की सब्जी

से तेजपान निकाल कर बाहर रख रहा था।

सचमुच उसकी स्थिति भी तो तेजपान की तरह है जिसे सब्जी में स्वाद और खुशबू आने के बाद निकाल कर फेंक दिया जाता है।

आँसू और विचारों की  श्रंखला थम नहीं रही थी।

“काश ! मैं भी चुन्नू ,मुन्नू या मीना होती।

लेकिन मैं तो तेजपान हूँ जिसे काम खत्म होने के बाद निकाल के फेंका जाना तय है।”

 समाप्त 

 

मिठाई

                 

अरे सुलभा !मिठाई को हाथ मत लगाओ।मेहमानों को कम पड़ जाएगी।



जैसे ही सुलभा ने मिठाई के लिए जिद करते हुए बच्चे के लिए एक काजू कतली उठानी चाही जेठानी ने तुरंत टोक दिया।

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सहमी हुई सुलभा ने पैकेट तुरन्त बन्द कर दिया।

“दीदी ,देखो न टीकू ने मिठाई देख ली है।कितना रो रहा है।”

सुलभा ने चिरौरी करते हुए कहा।

नहीं ,तुम उसके लिए और मँगवा लो।

मिठाई न मिलने पर टीकू चुप होने के बजाय और जोर से रोने लगा।

बेचारी सुलभा ने टेबल से चम्मच कटोरी उठा कर बजाना शुरू किया।शायद टीकू आवाज सुनकर बहल जाए।

तभी जेठानी जी बोल उठी ,सुलभा देखो ,बच्चों के साथ बच्चों जैसे काम मत करो।बर्तन जहाँ रखे हैं वहीं रहने दो।मेहमानों के सामने कहाँ ढूँढने जाऊँगी ?

माँ अपने कमरे से बहुत देर से सारा तमाशा देख रहीं थी।

बाहर निकल कर बोलीं ,”सुलभा ,ला टीकू को मुझे दे। सोहन हलवाई के यहाँ से काजू कतली ,रसगुल्ला सब खिला कर लाती हूँ।”

“बड़ी बहू के मेहमान चार दिन से उपवास किये हुए हैं ,पूरी मिठाई तो खाएँगे ही कटोरी ,चम्मच और ट्रे भी खा सकते हैं।”

माँ टीकू को ले कर बाहर निकल गईं और सुलभा अपने कमरे में।

और बड़ी बहू ! उसके लिए तो माँ का तंज और कमरे के सन्नाटे को झेल पाना मुश्किल हो रहा था।

ज्योति अप्रतिम

 

 

ज्योति व्यास

स्वलिखित

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