अम्मा की बड़बड़ चालू थी। आज का बहु रीना को सुना कर बोल रही थी,”आजकल की बहुएँ तो गजब हैंः सास ससुर तो फूटी आँख नहीं भाते। इन लोगों का बस चले तो”
कहते कहते बात अधूरी छोड़ दी थी और कनखियों से प्रतिक्रिया के लिए कमर कसने लगी थी। पर ये क्या रीना तो सुबक रही थी…थोड़ा दिल पसीजा पर नहीं वो इतनी कमजोर तो नहीं है…दहाड़ पड़ी,”तुम सब तो चाहते ही हो कि ये बुढ़िया विदा हो और तुम लोग चैन की बंसी बजा सको पर मेरा खूँटा बहुत पक्का है, आसानी से ना उखड़ने वाला है..हाँ नहीं तो।”
अब रीना से और नहीं सहा गया, वो भी चिल्ला पड़ी,”तो कौन आपको विदा कर रहा है? आपका घर है …चैन से रहिए ना।”
उसके इतना बोलते ही वो भड़क गई थीं,”पर तुम लोग चैन से रहने दो तब ना। हे भगवान! अब मुझे अपनी शरण में ले ले।”
रीना चिढ़ कर बोली थी,”आखिर आप हम सबसे चाहती क्या हैं?”
अब तो चिंगारी लग ही चुकी थी…वो कमर कस ही चुकी थीं,”मैं तो जैसी हूँ, वैसी ही रहूँगी। चैन से रहने वाले आराम से रहें।”
तभी दुकान बढ़ा कर सतीश आ गया और घर की चकचक से ऊब कर अम्मा को बोला,”आप तो खुद ही कन्फ्यूज्ड हो। कभी ऊपर जाने की कहती हो, कभी खूँटा गाड़े रहने की धमकी देती हो। इस तरह तो आपको ना माया मिलेगी और ना राम।”
तब फेंटा कस कर रीना सामने आई तो वो उन दोनों के आगे हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया और बोला,
“भई, हाथ जोड़ कर विनती कर रहा हूँ…मुझे दो पाटन के बीच घनचक्कर मत बनाओ। एक तरफ़ अम्मा हैं तो दूसरी तरफ़ पत्नी है। किधर जाऊँ…बताओ।”
वो दोनों एक दूसरे का मुँह देखने लगी। दोनों के चेहरों पर दुख और पछतावे का भाव था। तभी अंदर से उनका पोता गुनगुनाते हुए निकला,
चलती चक्की देख कर, दिया कबीरा रोए।
दो पाटन के बीच में, साबित बचा ना कोय।।
नीरजा कृष्णा
पटना