चंद्रिका और सुधा भी नाश्ता कर फ्री हो गईं थी।
“चंदू.. राघव ने दिव्या के आराम पर ध्यान देने के लिए कहा है। किसी तरह का स्ट्रेस ना ले वो.. ध्यान रखना और उसके कमरे को भी थोड़ा खाली करवा लेना। दिव्या का कमरा ही उसे उपयुक्त लग रहा है उपचार के लिए। मैं भी तैयार होकर निकलता हूँ… नाश्ता तो हो ही गया है।” आनंद अपने कमरे की ओर बढ़ने से पहले चंद्रिका को निर्देश देते हैं।
“ठीक है” बोल कर चन्द्रिका सुधा से दिव्या के कमरे में आने के लिए कहती है।
चंद्रिका, अपनी सोचों के गहरे समुद्र में डूबी हुई थी, जैसे कि रात के अंधेरे ने उसकी आत्मा पर आवरण चढ़ा दिया हो। नींद उसकी आंखों से दूर थी, और उसका मन विचारों की लहरों में बह रहा था। वह एक करवट से दूसरी करवट मोड़ रही थी। यही हाल आनंद का भी था, बैचैनी उस पर भी हावी था। चंद्रिका दिव्या के कमरे में जाने के लिए उठती है।
“नींद नहीं आ रही है क्या चंदू?” आनंद उसे बिस्तर से उतरते देख पूछते हैं।
“अजीब अजीब से ख्याल आ रहे हैं। पता नहीं क्या होने वाला है। आप भी तो जगे हैं अभी तक।” चंद्रिका दिल हल्का करती हुई कहती है।
“आज तुम्हारे खर्राटों ने लोरी नहीं गाई इसीलिए मैं सो नहीं सका।” आनंद बात को हँसी में उड़ाते हुए चंद्रिका के तनाव को कम करने की कोशिश में कहते हैं।
“कुछ भी बोलते हैं”.. कहकर चंद्रिका दिव्या के कमरे में चली गई।
उधर राघव भी अपने कमरे में चहलकदमी कर रहा था और रिया उसे स्ट्रेस फ्री करने की कोशिश कर रही थी।
“क्यूँ इतना तनाव ले रहे हो राघव। ये कोई नई बात तो नहीं है। इससे पहले भी तुमने कई लोगों का इस तरह इलाज किया है और देखो वो सभी नॉर्मल लाइफ जी रहे हैं।” रिया राघव को परेशान देख उसे याद दिलाती है।
“हाँ रिया… पर पहली बार ऐसा लग रहा है अगर मैं फेल हुआ तो उस बच्ची का क्या होगा। एक डर सा दिल में बैठा जा रहा है।” राघव चहलकदमी करते करते ही अपने जज्बात व्यक्त करता है।
“इतना मत सोचो। ऐसा कुछ नहीं होगा। सोने की कोशिश करो, तुम्हें भी एकाग्रता की जरूरत होगी। तभी दिव्या भी एकाग्र हो सकेगी।” रिया कुर्सी से उठ कर राघव के सामने खड़ी होकर कहती है।
“तुम सही ही कह रही हो… मैं शायद ज्यादा ही सोच रहा हूँ। चलो सोया जाए।” बोलता हुआ राघव बिस्तर की ओर बढ़ गया।
सुबह की सैर के समय राघव कमरे का मुआयना करता है। उसे सब कुछ ठीक लगता है। सबसे अच्छी बात ये थी कि कमरा बहुत शांत था। घर के अंदर होने के कारण बाहर की आवाज कमरे में नहीं आती थी। जो उसे पूरी शांति और नियंत्रण का माहौल दे रहा था
“दिव्या बेटा तैयार रहना। दस बजे तक सेशन आरंभ कर देंगे। नाश्ता हल्का लेना, मैं साढ़े नौ बजे तक आ जाऊँगा।” कहकर राघव चला गया।
राघव अपने घर जाकर स्नान ध्यान कर नाश्ता करके दिव्या की मेडिकल फाइल्स.. दिव्या के लिए तैयार किए गए कोटेशन(जो उसने इतने दिनों में खुद तैयार किए थे)…फिर से पढ़ने बैठ गया।
आज आनंद क्लिनिक नहीं गया था क्योंकि राघव ने उसे घर पर रहने के लिए कहा था। सब अपने अपने कमरे में चले गए। यूँ भी सब तनाव में थे। रिया चंद्रिका की मनःस्थिति भली भांति समझ रही थी और परछाई की तरह उसके साथ साथ थी। घर के भीतर के वातावरण में सभी तनाव का सामना कर रहे थे।
दिव्या के कमरे में पहुॅंच कर राघव हल्की फुल्की बातें कर दिव्या के साथ साथ माहौल को भी आरामदायक बनाने की कोशिश कर रहा था।
धीरे धीरे दिव्या से आँखें बंद करने और ध्यान करने कहता है।
जब राघव को पूर्णतया विश्वास हो गया कि दिव्या बिल्कुल आरामदायक स्थिति में चली गई है, तब वह दिव्या से प्रश्न पूछना शुरू करता है।
फ़िलहाल वह उससे उसकी क्लास, उसकी सहेलियाॅं, उसके शौक से संबंधित प्रश्न पूछता है। सारे प्रश्नों के उत्तर राघव ने दिव्या से पहले हुई बातों के आधार पर मिलान करने के लिए लिख रखे थे। दिव्या के जवाब राघव के लिखे जवाब के अनुसार ही थे।
आगे बढ़ते हुए राघव उसके किशोरावस्था में पहुँच गया। यहाँ दिव्या कुछ भी बता पाने में असमर्थ सी दिखने लगी। चेहरे पर बताने की जद्दोजहद दिख रही थी लेकिन वो कुछ बोल नहीं रही थी।
“कुछ बताओ…अच्छा अपना नाम ही बताओ।” राघव ध्यानमग्न दिव्या से पूछता है।
“प्रियंवदा”… दिव्या उसी अवस्था में कहती है।
राघव एक झटके से दिव्या को देखता है… क्या नाम बताया तुमने…
“प्रियंवदा”… दिव्या फिर से दुहराती है।
“दिव्या तुम कुछ देख रही हो। कहाँ हो इस समय तुम.. कुछ बता सकोगी।” राघव दिव्या के चेहरे को गौर से देखते हुए पूछता है।
“प्रियंवदा… तुम कुछ देख रही हो.. कहाँ हो तुम इस समय”…राघव दिव्या को कोई जवाब देते नहीं देखकर उसके द्वारा बताए गए नाम प्रियंवदा से संबोधित करते हुए फिर से पूछता है।
“मैं अपनी माँ, मौसी और चाकरों के साथ मेला में हूँ। हमारे साथ साथ सिपाही भी हैं।” प्रियंवदा कहती है।
“तुम्हारे पिता”… राघव जिज्ञासा प्रकट करता है।
नहीं, इनमें से कोई मेरे पिता तो नहीं लग रहे हैं।” प्रियंवदा कहती है।
राघव हाथ में एक डायरी लिए सब कुछ नोट करता जा रहा था।
“प्रियंवदा, तुम्हारी माँ अर्थात् साथ में चंद्रिका भाभी हैं।” राघव प्रियंवदा की माॅं के बारे में जानने के लिए चंद्रिका का नाम लेता है।
“कौन चंद्रिका.. मेरी माँ का नाम रक्षंदा है।” प्रियंवदा के माथे पर पड़े बल को राघव ने नोटिस किया।
ये दूसरा झटका था राघव के लिए। आज का सेशन वो यही स्थगित करने की सोचता है क्यूँकि इस तरह के केस पर राघव ने अभी तक काम नहीं किया था। अब वो पहले इस सेशन के बारे में अपने सीनियर्स से डिस्कस करने की सोचने लगा था।
“प्रियंवदा… अब तुम ये सोचते हुए कि तुम दिव्या हो ध्यान से बाहर आओगी और धीरे धीरे आँखें खोलोगी।” राघव दिव्या के बिल्कुल करीब आकर धीमे मगर दृढ़ और स्पष्ट आवाज में कहता है।
दिव्या आँखें खोलती है। उसे थकान सी महसूस हो रही थी और वो निढ़ाल सी हो गई थी।
“दिव्या पानी पियो बेटा और थोड़ी देर सो जाओ।” राघव दिव्या की ओर पानी का गिलास बढ़ाते हुए कहता है।
“अभी क्या सब हुआ, मुझे कुछ याद नहीं आ रहा है अंकल।” दिव्या जो कि कभी कभी राघव को अंकल भी कहती थी, जानने की चाह में कहती है।
“दिमाग पर स्ट्रेस बिल्कुल मत डालना बेटा। अभी हम लोग लंबा सेशन लेंगे।” राघव मुस्कुरा कर कहता है।
“पर क्यूँ अंकल… ज्यादा प्रॉब्लम है क्या?” दिव्या राघव से पूछती है।
“नहीं.. जब डॉक्टर घर में उपलब्ध है तो मारा मारी क्यूँ करना? आराम से समाधान क्यूँ ना ढूँढा जाए।” राघव एक कुर्सी खिसका कर दिव्या के सामने बैठता हुआ कहता है।
“मैंने आपसे अभी जो भी कहा होगा। आपने जो भी पूछा होगा.. मुझे कुछ याद क्यूँ नहीं है चाचाजी?” ये बोलते हुए दिव्या की ऑंखें कुछ खोजती हुई सी प्रतीत हो रही थी।
“ऐसा होता है बेटा। सारे सेशन के बाद भी अगर तुम्हें कुछ याद नहीं रहा तो मैं खुद तुम्हें सब कुछ बताऊँगा।
अब तुम थोड़ी देर सो जाओ।” राघव कुर्सी छोड़ उठ खड़ा होता दिव्या की ओर अपना हाथ बढ़ाता है।
राघव चिंतित भाव लिए दिव्या के कमरे के बाहर बैठक में चला आया और आनंद को आवाज देता है। राघव की आवाज़ पर सारे लोग अपने कमरे से बाहर आ गए। सभी उत्सुक और प्रश्नवाचक दृष्टि से राघव की ओर देखने लगे। राघव गहरी साँस लेकर सोफ़े पर बैठ गया। आनंद भी उसकी बग़ल में बैठ गया। चंद्रिका और आनंद की माँ दिव्या के कमरे में दिव्या के पास चली आईं।
“मेरी बच्ची को भूख लगी होगी ना”…..दिव्या की दादी दिव्या के सिर पर हाथ फेरती हुई पूछती हैं।
“नहीं दादी, खाने की इच्छा नहीं है। नींद आ रही है, थोड़ी देर सोना चाहती हूँ दादी।” दिव्या थकी थकी सी कहती है।
“ठीक है बिटिया, तुम आराम करो। बहू.. तुम दिव्या के पास बैठो। मैं बाहर देखती हूँ।” एक गहरी साॅंस लेकर दिव्या की दादी कहती हैं।
दिव्या चंद्रिका की गोद में सिर रखकर तुरंत ही सो गई। उसकी ऑंखें नींद से या थकान से इस तरह बोझिल हो रही थी मानो कई रात्रि उसने जाग कर गुजारी हो और अब उसे उसका मनपसंद बिस्तर माॅं की गोद में मिली हो। चंद्रिका बेटी के बालों को सहलाती वही बैठी रही।
“तुम लोग इतने शांत क्यूँ बैठे हो? राघव दिव्या ने कुछ बताया।” दिव्या की दादी राघव और आनंद के करीब आती हुई उत्सुकता से पूछती हैं।
दिव्या सो गई क्या…राघव प्रत्युत्तर में पूछता है।
“उसने कहा तो यही कि उसे नींद आ रही है।” दादी बताती हैं।
“रिया देखना.. अगर दिव्या सो गई हो तो भाभी को बुला लाओ।” राघव अपनी पत्नी रिया से कहता है।
रिया के साथ चंद्रिका बैठक में आ गई। सब राघव को उत्सुक नज़रों से देख रहे थे।
आज मैंने बहुत छोटा सेशन किया। इसमें मुझे अपने सीनियर्स की मार्गदर्शन की जरूरत पड़ेगी। तुम लोग किसी रक्षंदा या प्रियंवदा को जानते हो। सेशन की सारी बातों से अवगत कराते हुए राघव उन सभी से पूछता है।
“नहीं बेटा.. इस नाम की तो हमारे रिश्तेदारी में भी कोई नहीं है।” दिव्या की दादी कहती हैं।
“भाभी याद करके बताइए आपके मायके में या दिव्या की सहेलियों में किसी का नाम रक्षंदा या प्रियंवदा हो” राघव चंद्रिका की ओर देख कर पूछता है।
“नहीं.. दिव्या के बचपन में भी इस नाम की कोई सहेली नहीं थी। इन दोनों नामों को भी मैं पहली बार सुन रही हूँ भैया।” चंद्रिका सोचती हुई कहती है।
“बहुत ध्यान से सोच कर याद कर बताइए भाभी।” राघव की आवाज सचेत करती हुई सी थी।
“हाॅं यार… चंद्रिका सही कह रही है। पहली बार सुना है हमने ये नाम।” आनंद की आवाज़ में निराशा का पुट घुला हुआ था।
“तुम्हें क्या लगता है राघव.. ये क्या हो सकता है?” रिया राघव की ओर देखती हुई आगे झुकती हुई पूछती है।
“अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। हो सकता है दिव्या की ये बातें पुनर्जन्म से संबंध रखती हो।” राघव रिया के प्रश्न का उत्तर आनंद की ओर देखते हुए देता है।
“पुनर्जन्म!” आनंद और चन्द्रिका एक साथ चौंकते हुए बोलते हैं।
“दिव्या छोटी थी तो माँ ने भी एक बार कहा था कि पिछले जन्म की यादें हो सकती हैं। लेकिन इतने दिनों तक.. कैसे?” चन्द्रिका बीती बात को याद करती हुई कहती है।
अगला भाग
दिव्या(भाग–8) – आरती झा आद्या : Moral stories in hindi
दिव्या(भाग–6) – आरती झा आद्या : Moral stories in hindi
आरती झा आद्या
दिल्ली
interesting story h and suspense bhi bahut h next part jaldi upload kijiyega
Bhut hi interesting🤔🤗 story h please🙏🙏🙏 roj iska ek part upload kre ma’am aur please🙏 thoda long part banaye….
Waiting for next episode,very interesting n different story