संजना जो एक मध्यम वर्गीय परिवार की लड़की हैं , और बहुत सुन्दर है। संजना को बचपन से अपने गोरे रंग, ऊँचे क़द , लम्बे घने काले बाल और गहरी झील सी आँखों पर नाज़ रहा है। संजना की खूबसूरती देखते ही बनती थी। संजना हर वक़्त अपनी खूबसूरती को निहारती रहती थी ,उसे सारा दिन शीशे के सामने बनने संवरने में ही लग जाता था , पढ़ाई की ओर तो उसकी रूचि थी ही नहीं , न ही घर के काम काज सीखने में उसे कोई दिलचस्पी थी। कई बार संजना के पिता उस की पढ़ाई को लेकर उसे डांट चुके थे,
तो उसकी माँ भी घर के कामों को लेकर उसे टोकती रहती थी। लेकिन संजना को किसी बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता था , वो अपने ख्यालों में ही गुम रहती थी और बड़ी बेफिक्री से कहती थी कि मेरी सुंदरता को देखकर कोई राजकुमार मुझे महलों में ब्याह ले जायेगा, जहाँ नौकर-चाकर होंगे तो मुझे काम करने की क्या ज़रूरत और न मुझे नौकरी करनी है तो पढाई की क्या ज़रूरत???
संजना के माता पिता उसकी ऐसी बातों से परेशान रहने लगे थे ,लेकिन संजना को कोई परवाह नहीं थी।
धीरे धीरे संजना की शादी की उम्र हो गई ,संजना के लिए रिश्ते तो बहुत आए लेकिन सबसे अच्छा रिश्ता अजय का आया , अजय की बुआ ने संजना को किसी समारोह में देखा और रिश्ता लेकर संजना के घर पहुंच गई। उसके माता पिता ने संपन्न परिवार देखकर उसकी शादी कर दी , अजय एक बड़ा बिज़नेस मैन था और घर का इकलौता बेटा था , संजना इस शादी से बहुत खुश थी क्योंकि उसे उस के सपनों का राजकुमार मिल गया था। संजना के ससुराल में आधा दर्जन नौकरों की फ़ौज थी, और सारी सुख सुविधाएँ मौजूद थी। संजना के सास ससुर भी बहुत अच्छे थे। संजना और अजय हनीमून के लिए सिंगापूर घूम कर आये।
संजना के सारे सपने पूरे हो रहे थे, वो अक्सर अपनी माँ से कहती कि “देखा माँ , मैं कहती थी न कि मेरी खूबसूरती ही मेरा जीवन संवार देगी , मुझे चूल्हे चौके या दफ़्तरों में फाइलों के बीच पीसना नहीं पड़ेगा “..
मेरी बच्ची तू बस ऐसे ही सुखी रहे , मेरी यही कामना है , माँ ढेरों आशीर्वाद संजना को देकर उसकी बालाएं लेती।
संजना मदमस्त हवा की तरह बहती जा रही थी , लेकिन उसे मालूम नहीं था कि आगे एक बड़ा तूफ़ान उसका इंतज़ार कर रहा है। इसी तरह शादी को लगभग 1 महीना गुज़र गया।
संजना से अब तक अजय की प्यार भरी बातें ही हुई थी और शादी के बाद से मेहमानों के आने जाने और हनीमून में कुछ और बात हो ही नहीं पाई थी।
एक दिन अजय की माँ ने संजना से कहा कि बहु अब सारे काम निपट गए हैं , मेहमान भी सब चले गए और तुम लोग हनीमून पर भी हो आये हो। अब तुम अपनी रसोई सम्भालो, अभी तो तुम्हारी पहली रसोई भी बाक़ी है , वो रसम कर लो , फिर अपना घर और रसोई सम्भालो। रसोई के नाम से संजना के पैरों तले ज़मीन खिसक गई ,उसे तो कुछ बनाना ही नहीं आता था। उसने अपनी सास से कहा कि “मुझे तो कुछ नहीं बनाना आता और फिर जब घर में इतने नौकर हैं
,महाराज भी है तो मैं खाना क्यों बनाऊं “???
बहु हमारे घर में महाराज सिर्फ मदद के लिए है , खाना घर की औरतें ही बनाती हैं , अगर तुम्हें नहीं आता तो मैं सीखा दूंगी , लेकिन बनाना तो तुम्हें ही पड़ेगा, संजना की सास ने कहा।
ये सुन कर संजना अपने कमरे में आ गई और अजय का इंतज़ार करने लगी , जैसे ही अजय घर आया , संजना ने उससे खाना बनाने में असमर्थता जताई , अजय ने बहुत ही प्यार से संजना की बात सुनी , कुछ देर बाद वो बोला कि तुम मेरे बिज़नेस में मेरा साथ दो , मैं ज़्यादातर तो बाहर ही रहता हूँ , मेरे पीछे से दफ्तर के कई काम रुक जाते है क्योंकि मेरे पीछे मैं किसी और पर भरोसा करके सब फैसले उनके हाथ में नहीं दे सकता ,पिता जी की उम्र को देखते हुए उन्हें भी अब आराम की ज़रूरत है,
तुम मेरी बीवी हो , तुम्हारे दफ्तर ज्वाइन करने से मेरी सारी चिंताए दूर हो जाएँगी , माँ से मैं बात कर लूंगा।
लेकिन दफ्तर में करना क्या होता है , संजना ने घबराते हुए पूछा तो अजय ने कहा कि कुछ ख़ास नहीं सिर्फ फॉर्नर क्लाइंट्स से मीटिंग्स करनी होती है, उन्हें प्रेजेंटेशन देनी होती है और फाइल्स मैनेजमेन्ट्स देखने होते हैं ।
संजना अब और घबरा गई और अजय से बोली कि बाहर से आये क्लाइंट्स से मीटिंग और प्रेजेंटेशन में तो इंग्लिश की ज़रूरत होगी ।
जी मोहतरमा, आप सही कह रही हैं और अब आप बताइये कि कब से अपने दफ्तर को ज्वाइन कर रही हैं??
लेकिन अजय मुझे इंग्लिश नहीं आती , मैं उतना पढ़ी ही नहीं हूँ , मैंने सिर्फ हाई स्कूल किया है।
क्या ??? अजय ने लगभग चीखते हुए कहा , लेकिन जब मैं तुमसे मिला तब तुम्हारे रहन सहन और attitude को देखकर मुझे लगा कि तुम बहुत ज़्यादा पढ़ी लिखी हो , तभी मैंने शादी को हाँ की क्योंकि मुझे एक पढ़ी लिखी क़ाबिल बीवी चाहिए थी , चाहे वो ख़ूबसूरत न होती लेकिन पढ़ी लिखी होती। मेरे साथ तो धोखा हो गया , ये कहता हुआ अजय ग़ुस्से से कमरे से बाहर निकल गया। लेकिन अजय के कहे वो शब्द “चाहे वो ख़ूबसूरत न होती लेकिन पढ़ी लिखी होती” संजना के कानों में सीसा बनकर पिघलते चले गए। .
आज उसे अपनी खूबसूरती बेमाने नज़र आने लगी।
और वो ज़ार ज़ार रोने लगी।।
देखिये बहन जी , न आपकी बेटी को खाने में कुछ बनाना आता है न ही वो पढ़ी लिखी है , उसकी खूबसूरती को हम क्या करेंगे , जब वो अपना घर परिवार अपना पति ही नहीं स्मभाल सकती तो बेहतर होगा कि आप अपनी बेटी को यहां से ले जाएँ ,हम तो इस धोखे में रह गए कि आप लोगों ने उसे सब सिखाया होगा, पढ़ाया होगा।।
वो काबिल होगी, हमने दहेज भी नहीं मांगा
आप लोगों की सादगी देख कर हम धोख़ा खा गए और हमने आप लोगों या आपकी बेटी से कोई सवाल नहीं किया।।। हमें लगा आज के ज़माने की लड़की है, पढ़ी लिखी तो होगी ही और घर भी सम्भालना आता होगा।। हम गलतफहमी में रहे।
तलाक़ के कागज़ात आपको जल्दी मिल जायेंगे और बेफिक्र रहिएगा , उसका जो मुआवज़ा होगा वो भी हम देने को तैयार हैं, इतना कहकर संजना की सास ने फ़ोन काट दिया।
अगले दिन संजना को घर उस के मायके भेज दिया गया , कुछ दिनों में संजना का तलाक़ हो गया और उसे मुआवज़ा मिल गया लेकिन संजना ने जो मुआवज़ा भरा उसकी भरपाई कभी नहीं हो सकी.
संजना की माँ ने संजना से कहा कि देखा तुमने सिर्फ खूबसूरती ही सब कुछ नहीं होती , एक औरत को गृहस्थी आना बहुत ज़रूरी होता है , सलाम इंसान के काम को किया जाता है , उसके रूप रंग को नहीं।
न तुमने घर का काम सीखा , न पढाई की। यही दिन देखने से हम डरते थे इसलिए तुम को समझाते रहे ,लेकिन तुमने एक न सुनी।
तुम अपने ही सपनों में डूबी रही , अब सारी ज़िंदगी उन्हीं सपनों को याद करके जीती रहना जो एक महीने के लिए ही पुरे हुए थे। इतना कहकर माँ उसके कमरे से उठकर चली गई।
संजना माँ को जाते देखती रही, अब वो सिर्फ पछता सकती थी क्योंकि उसके हाथ में कुछ नहीं रह गया था।
आज उसे उस शीशे से भी नफ़रत होने लगी थी जिसके आगे वो दिन रात खड़ी होकर सजती सँवरती थी।
आज वो ही शीशा उस पर हँसता नज़र आ रहा था।।
जो संजना दिन रात सिर्फ सुनहरे सपने देखा करती थी , आज उसी संजना को अपना वर्तमान और भविष्य देखकर *दिन में तारे नज़र आने लगे* थे।
WRITER: Shanaya Ahem