दिल तो बच्चा है जी – आरती झा आद्या : Moral stories in hindi

दोनों बेटे की परवरिश, पति की आज्ञा का पालन.. दूसरों के मन मुताबिक चलते चलते विद्या भूल ही गई थी कि उसकी अपनी भी कुछ इच्छाएँ थी। बड़े बेटे सुजय ने अपने ही साथ पढ़ने वाली सौम्या से विवाह किया था। सौम्या अपनी माँ स्वाति की तरह ही बहुत मधुर स्वभाव की थी। उसी शहर में सुजय और सौम्या की नौकरी भी थी तो सब साथ ही रहा करते थे। सौम्या ऑफिस जाने से पहले घर के कामों में सासु माँ की हर संभव मदद करके जाती थी।

एक दिन ऑफिस से आकर सौम्या ने बताया कि किसी शादी में शामिल होने के लिए उसके मम्मी पापा दो तीन दिन बाद आने वाले हैं और पास के ही होटल में ही रूकने वाले हैं। 

उसकी बात सुनकर विद्या ने स्वाति को कॉल कर अपने घर ही ठहरने का आग्रह किया। जिसे स्वाति ने भी सहर्ष ही स्वीकार किया। 

दोनों समधन की खूब जमने लगी थी। जो विद्या हर बात पर मुस्कुरा कर काम चला लेती थी, आजकल स्वाति के साथ हँसने लगी थी। 

आज सुबह से ही सूरज देवता अलसाए से लग रहे थे और दिन की कमान इंद्र देवता के हाथों में देकर आराम फरमा रहे थे और इंद्र देवता भी बादलों के हाथ कमान दे ऐरावत की सवारी पर निकल पड़े थे। विद्या आज के मौसम को देख ऐसे ही उद्गार स्वाति के समक्ष व्यक्त कर रही थी। 

“हाहाहा.. क्या बात कही आपने विद्या जी, पौराणिक उपन्यास लिख डालिए।” स्वाति खुश होते हुए कहती है। 

कभी वो दिन भी था स्वाति जी जब मेरी कविता, कहानी को लोग बहुत पसंद करते थे और पता है आपको स्वाति जी बारिश के फुहारों के साथ लोग भुट्टे.. पकौड़े.. कॉफी.. चाय लेना पसंद करते हैं, पर मुझे इन फुहारों के साथ ऑरेंज आइसक्रीम की चुस्की पसंद है। चेहरे पर पड़ती बारिश की फुहारें, मुँह में घुलती ठंडी ठंडी ऑरेंज आइसक्रीम.. बहुत ही रोमांचक लगा करता था।” विद्या जी बहुत उत्साहित होकर चेहरे पर बच्चों सी मासूमियत लिए कह रही थी।

“भाई साहब के साथ तो खूब खाती होंगी विद्या जी”.. स्वाति भी चहकती हुई पूछती है। 

क्या कह रही हैं स्वाति जी। इन्हें ये सब पसंद नहीं है, बचकानी हरकत लगती है। मेरे वो दिन न जाने कब बीत गए।” मायूस होकर विद्या जी ने कहा। 

“कोई बात नहीं विद्या जी.. हम हैं ना.. करेंगी हम दोनों साथ मस्ती”.. स्वाति उल्लास संग कहती है। 

“अब इस उम्र में मस्ती… आप भी ना स्वाति जी”.. विद्या जी एक फीकी मुस्कान के साथ कहती हैं। 

“एक मिनट विद्या जी.. एक कॉल कर लूँ मैं”.. कहती हुई स्वाति जी बालकनी में आ जाती है। 

“आइए स्वाति जी लंच कर लेते हैं। फिर थोड़ी देर आराम किया जाए।” विद्या स्वाति को आवाज देती हुई कहती है। 

शाम में बारिश की बूँदों की सरगम सुन दोनों समधन कमरे से बाहर आती हैं। कमरे से बालकनी में आते आते ही बारिश की बूँदें मुँह मोड़ जा चुकी थी। दोनों समधन बारिश की बूँदों की इस हरकत पर एक दूसरे की ओर देख मुस्कुराती है। 

तभी दरवाजे की घंटी बजती है… 

“अच्छा है समय से घर आ गया। पता नहीं कब बारिश शुरू हो जाए।” कहते हुए विद्या के पतिदेव अंदर आते हैं।

धीरे धीरे घर के सारे सदस्य अपने अपने काम से लौट आए। सौम्या सबके लिए चाय बनाती है। बातों के बीच चाय का दौर शुरू हो जाता है। 

“लीजिए जी फुहारों ने बरसना शुरू कर दिया। आइए  बालकनी में चलते हैं।” स्वाति विद्या से कहती हुई चाय का कप रखती है । 

“अरे नहीं.. नहीं स्वाति जी”…स्वाति को नकारती हुई विद्या पति की ओर देखती है। 

“आइए भी”.. कहती हुई स्वाति जबरदस्ती हाथ पकड़ विद्या को लेकर बालकनी में आ जाती है। 

दोनों ही हाथ फैला कर आँखें बंद कर चेहरे को आगे कर चेहरे पर पड़ती फुहारों की सरगम को महसूस करने लगती है। 

“मम्मी ये लीजिए आपकी आइसक्रीम”.. सौम्या की आवाज सुन विद्या आँखें खोलती है। 

“ये आइसक्रीम”.. खुशी के आश्चर्यमिश्रित भाव से विद्या सौम्या की ओर देखती हुई आइसक्रीम लेती है। 

“माँ ने कॉल कर आइसक्रीम लाने कहा था। आपको पसंद है ना।” सौम्या प्रतिउत्तर में विद्या की ऑंखों की गहराइयों में खुशी की पवन चलती हुई देख कहती है। 

“और मेरी पत्नी जी के लिए ये रहा कोल्ड ड्रिंक”.. सौम्या के पापा कोल्ड ड्रिंक के दो ग्लास के साथ अपनी पत्नी स्वाति के साथ चीयर्स करते हैं। 

“कोल्ड ड्रिंक”.. विद्या पूछती है। 

“जैसे आप फुहारों के साथ आइस क्रीम में खो जाती हैं। वैसे ही माँ पापा इन फुहारों में कोल्ड ड्रिंक का मज़ा लेते हैं”.. सौम्या खिलखिला कर विद्या से कहती है। 

“मेरी मोहतरमा का ही सिखाया हुआ है”.. स्वाति के कंधे पर हाथ रखते हुए स्वाति के पतिदेव कहते हैं। 

विद्या कनखियों से अपने पति की ओर देखती है, जो निर्विकार भाव से अपने बेटों से बात कर रहे थे। 

सौम्या अपनी सासु माँ को देख अपने पापा की ओर इशारा करती है। 

“आइए भी समधी जी, अपनी अर्धांगिनी के साथ आइस क्रीम का लुत्फ लीजिए।” सौम्या के पापा विद्या के पति से कहते हैं। 

“क्या आपलोग भी, ये सब बच्चों पर ही अच्छा लगता है।” विद्या के पतिदेव जवाब देते हैं। 

“हाहाहाहा… समधी साहब दिल तो बच्चा है जी। एक बार बारिश की फुहारों के साथ मुँह में आइस क्रीम घुलने तो दीजिए। जैसे जैसे आइस क्रीम घुला… आप बच्चे बन जाएंगे”… सौम्या के पापा जोर से हॅंसते हुए कहते हैं। 

“चलिए ठीक है.. आज आप की बात पर ये भी सही।” विद्या के पतिदेव समधी की बात का मान रखते हुए उठकर आते हैं। 

सौम्या फ्रिज से आइस क्रीम निकाल अपने ससुर जी को देती है। 

विद्या के पतिदेव के चेहरे पर पड़ते फुहारों के संग मुँह में पिघलती आइसक्रीम ने कुछ यूँ असर दिखाया कि धर्मपत्नी विद्या की ओर देखते हुए हाथों में हाथ लिए दिल के ज़ज्बात टूटी फूटी भाषा में यूँ कह गए – 

“चाहतों का सिलसिला चल पड़ा जी, 

आओ साथ मिल जीते हैं ये पल जी

हर रोज़ नई कहानी हम बनाएंगे जी

नन्हे नन्हे ख्वाबों की डोर बुनेंगे जी

दिल को अपने बच्चा बनाएंगे जी”

विद्या भी खिलखिलाती हुई एक नए सफर का आगाज करती हुई कहती है- 

“छुपे रुस्तम हैं आप 

दिल में ना जाने कहाँ 

दबा रखे थे ज़ज्बात 

इन पलों को भूल ना जाना जी 

आए कितने भी आँधी तूफान 

दिल को बच्चा ही रखना जी” 

आरती झा आद्या

दिल्ली

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