दिल पर जोर चलता नहीं – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

आज अमित अपने दोस्त की शादी में बाराती बनकर आया था , समस्तीपुर।गांव की परंपरा के अनुरूप सभी शादी के आयोजन हो रहे थे।अमित का यह पहला अनुभव था।अमित अपने दोस्त माधव के साथ ही रुका था कमरे में। आस-पास की औरतें आ -आकर दामाद जी की खिंचाई कर जातीं।माधव झेंप तो जा रहा था ,पर मन ही मन खुश भी बहुत था।

शादी के एक दिन पहले ही बारात आ गई थी।भारी बारिश की वजह से सड़कों का हाल खराब था।सो वधू पक्ष ने विनती की थी जल्दी ही आने की।

सुबह नाश्ता खत्म करते ही माधव अमित से बोला”चलेगा क्या तू,अपनी भाभी से मिलने?”

अमित थोड़ा संकोची था ,तो उसने मना कर दिया।अब माधव छेड़ने लगा अमित को,कि डरपोक है।अमित ने हारकर हां कह दी।बड़ी खुफिया तरीके से माधव ने अपनी छोटी साली के हाथ -पांव जोड़कर पत्नी को देखने की लालसा बताई।साली मान तो गयी पर इस शर्त से”देखिए जीजाजी,दूर से ही देखने की व्यवस्था कर सकती हूं।काकी,बड़ी मां,बुआ,मौसी,ताई सब भरे पड़े हैं घर में।किसी को कानों-कान खबर मिली अगर ,तो तुम्हें दुश्चरित्र मानकर ब्याह रुकवा देंगे।”

साली की बातें सुनकर माधव भी थोड़ा डर गया।अमित ने कहा भी”क्या बचपना है ये, रीति-रिवाज भी तो मानना चाहिए।कल ही तो है शादी।जी भर के देखते रहना।आज रहने दें।कोई ऊंच-नीच हो गई तो,लेने के देने पड़ जाएंगे।”

माधव की आन पर बन आई अब तो।तय समय पर अपने विश्वस्त दोस्त(अमित) के साथ घर के पीछे मिलने पहुंचा।अमित तो पूरा समय जय हनुमान जपता रहा।उसे विषय की गंभीरता का अंदाजा था।काफी देर खड़े रहने के बाद ,एक सजी संवरी लड़की सामने से आते दिखी।साज सिंगार देखकर दुल्हन ही लग रही थी।माधव ने अमित के कानों में चीखकर कहा”ये देख ,तेरी भाभी।है ना लाखों में एक।”अमित ने भी माना ।

वह थी ही इतनी सुंदर।सकुचाते हुए जब उसने अमित और माधव को नमस्ते कहा,तो अमित को ग्लानि होने लगी।माधव को खींचकर एक तरफ ले जाकर बोला”देख भाई,शहरों में परिवेश बहुत बदल गया है।पर इन गांवों में अभी भी रीति-रिवाज, परंपरा और पर्दा बचा हुआ है।

भाभी को ऐसे घर वालों से छुपकर मिलने के लिए नहीं बुलाना था तुझे।कितनी परेशान हैं वह,देखा तूने।अब उन्हें सम्मान के साथ जाने दे।एक पराए पुरुष के सामने वो तुझसे खुलकर बात भी नहीं कर पाएगी।”माधव भी सहमत हुआ।नीलिमा(पत्नी)को इशारे से जाने के लिए कहा।नीलिमा अपनी एक सहेली का हांथ पकड़े जा रही थी,और माधव और अमित उन्हें जाता देख रहे थे।

अचानक नीलिमा की सहेली को देखते ही अमित के होशो-हवास उड़ने लगे।इतनी शादियों में जा चुका था।मां ने भी कितनी लड़की दिखलाई,पर अमित को वो लड़की नहीं दिखी,जिसे देखकर उसकी धड़कनें बढ़ने लगे।

आज पहली बार ऐसा हुआ।दुबली -पतली।बिना मेकअप के साधारण सा चेहरा जो काफी आकर्षक लग रहा था।उसकी झील सी गहरी आंखों में अमित डूब चला था।उससे भी ज्यादा गहरीं थीं उसकी घनी पलकें।ना कोई सिंगार,ना कोई चूड़ी,गहना।उस साधारण सी लड़की को देखकर अमित को अपनी धड़कनें आज बड़ी असाधारण लग रही थी।

माधव ने अपने दोस्त का मन पढ़ लिया।पूछा अमित से”तुझे पसंद है क्या?इतने कम समय में तुझे पसंद भी आ गई।हे प्रभु!ना बात की,ना कुछ,और  प्रेम हो गया।”

अगले दिन शादी की चहल-पहल में अमित उसी लड़की को देख रहा था। उम्र तेईस या चौबीस की होगी।साथ में‌शायद  मम्मी -पापा थे उसके।शादी की व्यवस्था में भी वह मम्मी पापा की देखभाल करना  नहीं‌भूल रही थी। 

शादी संपन्न होने के बाद विदाई के समय अमित ने नीलिमा भाभी से अपने मन की बात बताई।आज ही अमित उस लड़की के परिवार वालों से बात कर लेना चाहता था।नीलिमा भाभी ने धीरे से बस इतना कहा”देवर जी,मेरी सहेली हीरा है हीरा।पर‌ तुमसे उसकी शादी नहीं हो सकती।”

अमित ने कारण जानना चाहा,तो नीलिमा ने जो बताया,सुनकर अमित की आंखों से गंगा-जमुना बहने लगी।

नीलिमा के कहने पर अमित उस लड़की से बिना मिले ही आ गया।घर आकर उसकी आंखों के सामने अब भी दो उदास आंखें घूम रहीं थीं।

मां से भी अमित के मन का उथल-पुथल देखा नहीं जा रहा था।एक दिन पूछ ही लिया”क्या बात है अमित?जब से माधव की बारात से लौटा है,अनमना सा दिख रहा है।कुछ बात है जो तुझे खाए जा रही है।मैं मां हूं तेरी।मुझसे भी नहीं बताएगा क्या?”

मां की ममता के आगे अमित टूट गया।गोद में सर रखकर रोते हुए उसने नीलिमा भाभी की सहेली के बारे में सब बता दिया।मां तो आखिर एक हिंदू संस्कारों वाली औरत थीं।कैसे इस रिश्ते को हामी दे देती।उन्होंने समझाया अमित को”देख बेटा,उसे पसंद करना स्वाभाविक हो सकता है तेरे लिए।पर समाज में आज भी ऐसी शादी के लिए मान्यता नहीं मिलती।तू जोश में आकर अभी तो शादी कर लेगा,पर बाद में जब रिश्तेदार, जान-पहचान वाले ताना मारेंगे,तब पछताएगा।तेरा पछतावा उस लड़की को जीते जी मार देगा।अभी उसने अपने भाग्य के साथ शायद समझौता कर भी लिया है।बाद में हमारे द्वारा दिया गया दुख बर्दाश्त नहीं कर पाएगी वह।”

अमित मां का हांथ पकड़ पूजा घर में ले गया।संध्या दीपक के ऊपर एक हांथ रखा उसने और दूसरा हाथ मां के सर पर रखकर बोला”मां ,पहली बार ही उसे देखकर मैं दिल हार गया था।मुझे ऐसी ही पत्नी की चाह थी।मैं भगवान की और तुम्हारी कसम खाकर कहता हूं कि यदि शादी करूंगा ,तो उसी से।वरना नहीं करूंगा जीवन भर।

बेटे की बातों में सच्चाई पढ़ सकती थी मां।माधव और नीलिमा से मिलकर नीलिमा के गांव गई अमित की मां(रागिनी)।अमित को लेकर नहीं गई जानबूझकर।यदि वे लोग नहीं माने तो सामने से दिल टूट जाएगा अमित का।

नीलिमा अपनी सहेली(प्रणिता)के घर रागिनी जी को लेकर गई। आगंतुक को देखकर प्रणिता और मम्मी -पापा पहचानने की कोशिश करने लगे तो, नीलिमा ने ही उनका परिचय करवाया।यहां आने का कारण भी बताया।

प्रणिता रोते हुए अंदर चली‌ गई।प्रणिता के मम्मी -पापा वास्तव में सास-ससुर थे।ससुर ने हांथ जोड़कर रागिनी जी से कहा “बहन जी,अब मैं ही प्रणिता का पिता हूं।शादी के दो महीने बाद ही मेरा बेटा देश के लिए शहीद हो गया।मायके वालों ने बहुत बुलाया,लेने भी आए,पर यह लड़की हमें छोड़कर जाने को तैयार नहीं।नौकरी लगने वाली है सेना में ही।हमें अपने माता -पिता मानती है।इसका कन्यादान मैं खुशी-खुशी करना चाहता हूं।

पर शादी के बाद इसके अतीत को लेकर यदि आपने या आपके बेटे ने इसे कोसा तो,हम बर्बाद हो जाएंगे।मेरे इकलौते बेटे की निशानी है यह।आपके बेटे को तो कोई भी लड़की मिल जाएगी,फिर मेरी बेटी से शादी करने की क्या खास वजह हो सकती है।एक बार दुख पाकर संभलना सीख रही हैं वह।फिर से कोई नया दुख मिला ,तो मर ही जाएगी।

आप भी तो मां हैं।एक विधवा से अपने बेटे की शादी के लिए कैसे मान गईं आप?बाद में आप ही कोसेंगी इसे। नहीं-नहीं हमें हमारे हाल पर छोड़ दीजिए।नौकरी करेगी कुछ दिनों में यह।हम मां-बाप हैं उसकी देखभाल के लिए।हम भी उसके बिना नहीं जी पाएंगे।”

रागिनी जी आश्चर्य चकित होकर देख रहीं थीं ,उस बूढ़े पिता को।जिसने अपना जवान बेटा भारत मां के लिए शहीद होते देखा।अपनी विधवा बहू को अपना‌ बेटा मानकर रह रहें हैं।उनकी कही कोई भी बात ग़लत नहीं थी।पर रागिनी भी तो मां थी।पिता के जाने के बाद अपने बेटे को माता-पिता दोनों का प्यार दिया।अमित ने कभी किसी अनावश्यक चीज के लिए जिद नहीं की।आज उसके प्यार का सवाल है।यदि आज उसकी मोहब्बत टूट जाती है तो ,ज़िंदगी में फिर कभी भी किसी से प्यार नहीं कर पाएगा।

जानती थीं वह,अमित बहुत संवेदनशील बच्चा है। उन्होंने हाथ जोड़कर प्रणिता के पिता(ससुर)से कहा”मेरे बेटे को आपकी बेटी से प्रेम हुआ है।पवित्र प्रेम है यह।ईश्वर की पूजा है यह प्रेम।मेरा बेटा कभी भी ऐसी कोई ज़िद नहीं करता जिसे पूरा करना‌ निंदनीय हो।आप अपनी‌ बेटी का हांथ मेरे बेटे के हांथ में दे दीजिए।आपको एक बेटा मिल जाएगा,और मुझे एक बेटी।आप लोगों ने नि:संदेह अपनी बहू को अपना बेटा माना है।पर आपके ना रहने पर उसकी जिम्मेदारी कौन उठाएगा।

समाज में एक अकेली औरत का जीना मुश्किल होता है।आप के हाथों कन्यादान पाकर मेरे बेटे को जीवन का सबसे अमूल्य उपहार मिल जाएगा।मना मत कीजिए,भाई साहब।पति खोने का दुख जानती हूं मैं।अमित बहुत छोटा था तब।उसी के सहारे मैं  अपना वैधव्य काट रही‌हूं।

पर प्रणिता के सामने तो पूरी जिंदगी पड़ी है।उसका हांथ थामकर मेरा बेटा कोई अहसान नहीं कर रहा,वह अपने प्रेम को पूर्ण करना चाहता है बस।”

दोनों पक्षों की बातें ख़त्म होने पर नीलिमा ने प्रणिता को अमित की ईमानदारी के बारे में बताया।उसे राजी कर ही लिया बड़ी मुश्किल से नीलिमा ने।प्रणिता की एक ही शर्त थी अमित से कि वह अपने पति की शहादत पर मिलने वाली नौकरी करेगी,और उसका वेतन अपने मम्मी पापा (सास-ससुर) को देगी,आजीवन।

अमित को भला इस बात से क्या आपत्ति हो सकती थी।प्रणिता की सास बहू के मान जाने से निश्चिंत हुईं।प्रणिता को समझाते हुए कहा उन्होंने “देख बेटा, तुम्हारी तरह ना जाने कितनी विधवाएं अपना सुहाग खोकर जी रही हैं।इस समाज में‌ अकेली औरत का जीना बड़ा कठिन है।तू मन छोटा मत करना।यही सोचना कि हमारा रजत रूप बदल कर अमित बनकर तुम्हारी जिंदगी में आया।मेरे बेटे ने ही भेजा होगा जरूर इसे तुम्हारे पास।तुमसे बहुत प्यार करता था ना वह।अपने मन की सारी दुविधा निकाल कर ईश्वर का धन्यवाद कर ।उसने तुझे सुहागन बनने का एक और मौका दिया है।मन में कोई संशय ना रख।”

चार दिनों के बाद ही प्रणिता संग अमित परिणय सूत्र में बंध गए।पूरे गांव में अमित के नाम की जय-जयकार हो रही थी।नीलिमा ने कहा”असली जयकार तो रागिनी आंटी की होनी चाहिए।बेटे के प्रेम को कितनी स्वाभाविक रूप से मान लिया उन्होंने।”

रागिनी जी ने अमित की ओर देखकर मुस्कुरा कर कहा”मां क्या करें नीलिमा?जब बेटे का‌ दिल पर जोर चलता नहीं।”।

शुभ्रा बैनर्जी

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