दिल का रिश्ता – उमा वर्मा

पता नहीं था कि वह अचानक  यूँ मिल जायेगा ।फेसबुक टटोलते अचानक फ्रेंड रिक्वेस्ट में आ गया वह ।और फिर हाय, हैलो से हमारी बात का सिलसिला शुरू हो गया ।वाट्स एप के जरिए ।मैं भी तो बचपन से लेकर कालेज के दिनों में जीने लगी थी ।वह हमारे सामने के मकान में रहता था ।मेरी सहेली पूजा का भाई था ।उनलोगों के साथ हमारी पारिवारिक दोसती भी थी।

लेकिन हमारी बात चीत कभी नहीं हुई ।सामने खिडक़ी पर मौजूद होता जब मै कालेज जाने के लिए निकल रही होती ।वह एक टक मुझे देखता रहता ।पूजा चुटकी लेती” वह तुम को पसंद करता है ” लेकिन तब हमारी इतनी हिम्मत नहीं थी कि अनजान युवक से बात करें ।मैं सीधे सिर झुकाए अपने कालेज आती, जाती ।बस इतना ही परिचय था हमारा ।वह शर्मीला और हसमुख था।और मुझे भी अच्छा लगता ।पर इसके आगे हम सोच भी नहीं सकते थे ।

मेरी शिक्षा पूरी होने की थी तभी मेरे ब्याह के लिए रिश्ते आने लगे।और फिर सुना,पापा माँ को बता रहेथे ” लो,पुष्पा,बेटी के लिए रिशता तय कर आया ।तुम रोज मुझे तंग कर रही थी, कब करेंगे बेटी के हाथ पीले ।अब खुश हो? और फिर मेरी शादी हो गई एक दिन ।ससुराल अच्छा और संपन्न मिला छोटा परिवार और शिक्षित लोग, माँ बहुत खुश हो गई ।

मेरे पति समर बहुत अच्छे इनसान थे।मेरा बहुत खयाल रखते और माता पिता की बहुत इज्जत करते थे ।दो साल बाद अनुज की माँ भी बन गई मै।मेरी दुनिया अपने परिवार में सिमट कर रह गई ।पूजा से बात होती तो वह अपने भाई के बारे मे बताया करती ।कि वह अपनी शिक्षा पर खूब समय दे रहा है ।चाहता है खूब आगे जाय।पूजा जब उसकी बात करती तो मुझे अच्छा लगता ।अपने घर परिवार में रमकर सोचती ” अब मेरी शादी हो गई, उसके बारे मे सोचना गलत है,

 लेकिन दिल के किसी कोने में वह विराजमान हो जाता।

नहीं मुझे ऐसा नहीं होने देना चाहिए, यह समर के साथ धोखा है ।तब फोन भी नहीं था ।मन कभी उसकी ओर खींचता तो बेचैनी होती ।।बस इन्तजार होता कि पूजा उसका समाचार बताए।बस दुनिया थी हमारी ।मनोरंजन का के लिए सिनेमा और मन बहलाने को अपना परिवार ।अपने को कभी कभार पत्र लिखकर हाल ले लेते ।पर उसे तो पत्र भी नहीं लिख सकते थे ।

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समय अपनी गति से चल रहाथा कि एक दुर्घटना में पति चले गए ।अनुज मेरा बहुत खयाल रखता।पति के जाने का दर्द तो था पर लायक बेटा पाकर मेरी दुनिया बदलने लगी ।अनुज ने एक दिन कहा ” मम्मी तुम चाहो तो कहीं नौकरी कर लो” तुम्हारा  मन भी लगा रहेगा ” घर काटने को दौड़ता ।क्या करें, कहाँ जाएँ? बेटे की सलाह सही लगी ।मैंने एक स्कूल में नौकरी ज्वाइन कर ली ।अब अनुज भी एक अच्छी कंपनी में सेटल हो गया ।

एक दिन बेटा घर आते ही बोला” मम्मी, देखो मै तुम्हारे लिए क्या लाया हूँ ” आँखे बंद करो तो ” ” बेटा मै आँखे बंद कर लूंगी तो  देखूंगी कैसे?” और उसने जो चीज मुझे दी,मै खुशी से झूम उठी।वह एक फोन था।मेरा सपना ।इस सपने को आज मेरे अनुज ने पूरा किया ।मै बहुत खुश हो गई ।” पर यह मुझे चलाना नहीं आता ” ” सब आ जायेगा मम्मी, धीरे-धीरे “। सब सीख जाओगी ।

मेरी मम्मी तो  वैसे ही बहुत होशियार है ।और फिर रोज अपने बेटे से कुछ न कुछ पूछती,सीखती।फ्रेंड बनाना, वाट्स एप भेज देना और मेसेज करना सब आ गया ।बहुत सारे दोस्त बन गए ।दूर दराज के रिश्तेदार भी ।रोज फोन खोलती और देखती ।तभी एक दिन उसका फ्रेंड रिक्वेस्ट में आ गया जो मैंने एक्सेप्ट  कर लिया ।वही तो लगता है सामने वाला शर्मीला सा ।

हैलो, कैसी हो? से उसका मैसज आया ।” ठीक हूँ, आप कैसे हैं?” मैंने तुम्हें  मैसज किया, तुम्हे बुरा तो नहीं लगा? ” नहीं, पुरानी जान पहचान अच्छी लगी ।पुराने दिन याद आ गए । तुम से कुछ कहना चाहता हूँ ।” हाँ तो कहिए न?” तुम को मै पहले से बहुत पसंद करता था, मै अपने छत से तुम्हे  रोज देखता,तुम कालेज जा रही होती, सिर झुकाए ।तुम्हारी यही बात बहुत अच्छी लगती मुझे ।सोचता इतना चुप कैसे रह लेती हो? अपने बालकनी में हर इतवार सिर धोकर बाल सुखाती, तुम बहुत सुन्दर लगती ।

पर कभी अपने विचार  तुम तक पहुंचा नहीं पाया ।बात करने की इच्छा होती तो भी बात नहीं कर पाया।बात फैलने का डर लगता ।तब का जमाना ऐसा भी नहीं था कि हम खुल कर मिलते।इस तरह मिलने का मन तो  बहुत करता पर दुनिया समाज के नजरों में हम दोषी करार दिए जाते ।और तुम इतनी सीधी सादी, तुम पर लांछन लग जाता  इसे मै खुद सहन नहीं  कर पाता।

तुम कितनी निर्दोष और प्यारी लगती थी ।” कभी कुछ नहीं कह पाया मै” उस वक्त अपनी पढाई पूरी कर रहा था मै” और कहीँ  नौकरी नहीं थी तो फिर किस बूते पर बात करता।फिर एक बेकार से कौन और क्यो शादी करता? हिम्मत ही नहीं हुई कुछ कहने की कभी ।फिर घर में सुना तुम्हारी शादी तय हो गयी है ।मन में सोचा, चलो ठीक है जहां भी रहो,सुखी रहो।तुम्हारी खुशी में अपनी खुशी समझना अच्छा लगा ।तुम्हारा समाचार घर से मिलता रहता ।

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फिर मेरा चयन एक उंचे पद पर हो गया, जो मेरा सपना था ।और साल भर बाद परिवार के रज़ामंदी से मेरी भी शादी हो गई ।मै अपनी दुनिया में खुश था तभी एक दिन बहन ने बताया ” तुम्हारे पति नहीं रहे” मुझे बहुत दुख हुआ ।जैसी ईशवर की मर्जी ।और फिर तुम मुझे अचानक फोन पर मिली।मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था ।—- उसके  मैसज का मै रोज इन्तजार करने लगी।अगर  कभी देर हो जाती तो मै बेचैन हो जाती।” हे भगवान, यह मुझे क्या हो रहा है? ” क्या यह आकर्षण है?

 उसके प्रती ।दिल कहता, इसमें गलत क्या  है? अच्छा तो कोई भी लग सकता है ।पति, पुत्र,परिवार, दोस्त, सभी ।हाँ दोस्ती  सही हो तो ।” फिर उम्र के इस पड़ाव पर? ” दोस्ती, प्रेम, लगाव,स्नेह के लिए उम्र मायने नहीं रखती ।फिर माँ ने एक दिन कहा ” बेटा सच्ची  दोस्ती तो ईशवर  का वरदान है ” इसमें हम अपनी भावनाओं को और समस्या को साझा कर सकते हैं

 एक दूसरे का सुख दुःख बाँट सकते हैं ।तो गलत क्या है? उसने कहा कि अब हमारी अपनी अपनी दुनिया है मै भी खुश हूँ, तुम भी खुश रहो ।कभी किसी चीज की जरूरत पडे तो मुझे याद करना ।मैं हमेशा तुम्हारे खुशी के लिए तत्पर रहूँगा ।उसने फिर मुझे एक दिन कहा ” सीमा ,मै तुमसे एक बार  मिलना चाहता हूँ, क्या इजाज़त दोगी? ” हाँ, पर कहाँ?” 

उसने मुझे एक होटल का पता बताया ।कहा,तुम वही शाम को पांच बजे मिलो।ताज्जुब की बात यह कि हम एक ही शहर में थे।उसके बताए ठिकाने पर पहुंची ।तो वह बाहर ही इन्तजार कर रहा था ।बहुत खुश हो गया वह । ” कितने दिन बाद देख रहा हूँ तुम्हे,जरा भी नहीं बदली हो” मुझे अकेले में उससे मिलने में बहुत घबराहट हो रही थी पर मै वैसा दिखाना नहीं चाहती थी ।

मन में लग रहा था बेटा क्या  सोचेगा ।दिल कहता अगर हम गलत नहीं है तो फिर डरना कैसा।हम अंदर केबिन में बैठ गए ।उसने मेरी पसंद का खयाल रखते हुए खाने का आर्डर दिया ।मेरी फेवरेट आइसक्रीम? तुम्हे  कैसे पता कि यह मुझे पसंद है? खाने के बाद हम वापस लौटने की तैयारी कर रहे थे कि वह बोला” मै तुम्हे एक बार  छूना चाहता हूँ क्या तुम इजाज़त दोगी?” 

मेरी परेशानी का ठिकाना नहीं था लेकिन एक मौन स्वीकृति भी थी।वह आगे बढ़ कर आया और मेरे चेहरे पर हाथ फेरते हुए मेरे सिर पर हाथ रखा ” तुम हमेशा सुखी रहो,यही आशीर्वाद है मेरा ” बस मेरी मनोकामना पूरी हो गई ।मै इतना भी बुरा नहीं हूँ ।तुम मुझे बहुत अच्छी लगती थी वह अच्छाई मैंने पा लिया बस मुझे संतुष्टि मिल गई ।हम दोनों एक अच्छे दोस्त बनकर हमेशा रहेंगे ।बेशक हमारे रास्ते अलग हो गए हैं ।और वह चला गया कभी न मिलने के लिए ।जाते जाते कह गया अब हम कभी नहीं मिलेंगे ।क्या पता मन कभी बहक जाए? मै कभी बहकना नहीं चाहता।बस यह हमारा दिल का रिश्ता कायम रहेगा ।और फिर हमारा फ़ेसबुकिया दोस्त चला गया ।

1 thought on “दिल का रिश्ता – उमा वर्मा”

  1. लेखन का एके उद्गम स्थल होता है ,या किसी घटना से प्रेरित होता है
    तो ईस लेखा का ?

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