इसे कहानी कहूँ, संस्मरण या मेरे दिल का सबसे नाजुक कोना। मैं यह निश्चित करने में नाकाम हूँ।शायद इतना प्यार कोई किसी से नहीं कर सकता जितना मैंने उससे और उसने मुझसे किया। बहरहाल, यह मेरी जिंदगी का सबसे प्यारा और पीड़ादायक हिस्सा है।
बात तब की है जब मैं आठवीं कक्षा में पढ़ती थी। हमारे घर के सामने एक पहाड़ी अम्माजी रहती थी। उनकी कुत्तिया का प्रसव हुआ और उसके पास पाँच छह बच्चे हुए थे। अम्मा जी अकेली थी इसलिए वह उन सब की ठीक से देखभाल नहीं कर पा रही थी। एक दिन उन्होंने मम्मी से कहा,” ऋतु की मम्मी, इनमें से एक बच्चे को तुम ले जाओ। मैं इन्हें बेचना नहीं चाहती।बस चाहती हूँ कि मेरे परिचित ही इन्हें पाल लें ताकि मेरा मन आश्वस्त रहे।”
मम्मी ने पापा से पूछा और पापा की हामी भरने पर मम्मी एक मादा बच्चे को घर ले आई। वह बामुश्किल पाँच छह दिन की रही होगी। भूरे रंग का वह बच्चा जिसकी स्लेटी आँखें थी।बालों से भरा भरा,बहुत ही प्यारा था।हम चारों भाई बहन सारा दिन उसके आसपास घूमा करते थे।
वह चकित सी आँखों से हमें देखा करता। मम्मी दूध की बोतल में उसके लिए दूध देती। हम भाई-बहन अपनी अपनी बारी के लिए लड़ते। मम्मी तो बस हँसती रहती पर एक-दो दिन बाद पता नहीं क्या हुआ, वह दूध की बोतल सिर्फ मेरे ही हाथ से पीती। मेरे भाई बहन किलस कर रह जाते।
समय के साथ वह (हमने उसका नाम जिम्मी रखा) बड़ी होती गई। अब जिम्मी सबसे ज्यादा मेरे पास रहती। इसका एक कारण यह भी था कि जहाँ मेरे भाई बहन बार-बार खेलने के लिए इधर-उधर भागते रहते। मैं किताबों की शौकीन होने के कारण उसके पास बैठी पढ़ती रहती। मम्मी कहती कि इसे तेरी खुशबू भाने लगी है।
अब तो उसका यह हाल हो गया कि उसे हमारे स्कूल से वापस लौटने के समय का भान होने लगा था। मम्मी जिम्मी को कितना भी पुचकार ले पर जब तक हम स्कूल से लौट कर उसे प्यार नहीं कर लेते,वह खाना नहीं खाती थी।कभी-कभी जब मम्मी हमें डाँटती तो हम अपना गुस्सा जिम्मी पर चिल्लाकर उतारते तो वह बड़ी-बड़ी आँखें करके सहम जाती और उसे देखकर हमारी हँसी छूट जाती।
अब जिम्मी ढाई साल की हो गई थी। पता नहीं क्यों? अब वह जरा सा गेट खुलते ही बार-बार बाहर भागती। हम उसे पकड़कर लाते पर मौका मिलते ही वह फिर बाहर। एक दिन जब वह घर आई तो उसकी कमर से खून बह रहा था।सड़क पर घूमने वाले एक पागल कुत्ते ने उसे काट लिया था। उसे डॉक्टर के पास इलाज के लिए ले गए पर उसका व्यवहार दिन-ब-दिन इतना हिंसक होता गया कि चौबीसों घंटे उसे जंजीर से बाँधकर रखना पड़ता।
पर अब हालात काबू से बाहर हो गए थे। डॉक्टर ने उसके इलाज से हाथ खड़े कर दिए।पड़ोस वाले अंकल और पापा उसे जंगल में ले जाकर किसी पेड़ से बाँध आए क्योंकि मर्सी किलिंग उसकी हो नहीं सकती थी। बाद में कुछ लोगों ने बताया कि चार-पाँच दिन बाद जिम्मी मर गई।
आज भी जिम्मी की याद मेरे मानस पटल पर बिल्कुल ताजा है। शायद मैंने अपनी जिंदगी में इतना प्यार ना किसी को दिया और ना किसी से पाया।जिम्मी से मेरे दिल का रिश्ता था,है और रहेगा। इंसानी प्यार से भी ऊपर पशु पक्षी प्रेम होता है ।इसका मैं ज्वलंत उदाहरण हूँ।
यह मेरी अपनी ज़िंदगी की किताब का वह पन्ना है जिसमें खुशी के साथ गमों की परछाई भी है।
स्वरचित
ऋतु अग्रवाल
मेरठ