दिँखावे की ज़िंदगी – करुणा मालिक : Moral Stories in Hindi

पूनम , ज़रा तैयार रहना …मैं तुम्हें लेने आ रहा हूँ, वकील की माताजी का निधन हो गया है, वहीं चलना है ।

वकील  की माताजी? मतलब मेहरा भाई साहब की ? 

हाँ- हाँ… बस पाँच मिनट में पहुँच रहा हूँ …. उनकी बड़ी बहन पहुँचने वाली है बस उनका इंतज़ार हो रहा है ।

इतना कहकर रविकान्त ने फ़ोन रख दिया पर पूनम को समझ नहीं आया कि वकील साहब की माताजी तो उनके पैतृक गाँव में रहती हैं तो क्या हमें वहाँ जाना है? 

पूनम मन ही मन बड़बड़ाती सी बड़ी बेटी से बोली—-

मुझे तो आज तक तेरे पापा की कोई बात समझ नहीं आई । जब देखो , आधी- अधूरी बात कहेंगे । अब ठीक से कुछ नहीं बताया कि कहाँ चलना है….. अरे ! मेहरा साहब की माताजी तो यहाँ रहती ही नहीं….. पता नहीं? खुद चले जाते उनके साथ… ना ये देखते कि घर में बच्चे किसके सहारे रहेंगे…..

आपने पूछा नहीं मम्मी….. कहाँ जाना है? शाम तक तो आ जाओगे ना ? 

शाम तक? कहीं अमृतसर के आसपास गाँव है उनका । यहाँ से पहुँचने में ही छह- सात घंटे लगते हैं शायद ….. एक बार बता रहे थे तेरे पापा …. अब जगह का नाम तो मुझे याद नहीं ।

मम्मी! हम रात में……

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तू चिंता ना कर ….. आने दें इनको । ऐसे कैसे जवान लड़कियों को अकेली छोड़कर चली जाऊँ? 

तभी रविकान्त की गाड़ी रुकने की आवाज़ आई । वे अंदर आते ही बोले —- 

चलो जल्दी…. बहनजी के पहुँचने से पहले हमें पहुँच जाना चाहिए । वंशी बेटा ! तुम्हारी मम्मी कहाँ है? 

ये रही मम्मी तो …. पर मुझे ये तो बताइए कि जाना कहाँ है? 

बताया तो था कि माताजी नहीं रही …. जल्दी करो भई ।

सुनो …. आप चले जाइए । आपके  दो जोड़ी कपड़े रख दिए हैं बैग में । भाई साहब के पास रुकना भी पड़ा तो आपको यहाँ की चिंता नहीं रहेगी ….बल्कि ऐसा करो उनकी गाड़ी में ही चले जाओ …. उनके घर तक वंशी आपको ड्राप कर देंगी ….

नहीं- नहीं तुम ग़लत सोच रही हो । माताजी का अंतिम संस्कार यहीं पर होगा । 

पर माताजी तो…..

अरे यार! ये  सत्तर सवाल बाद में पूछ लेना , आओ चलो ।

रास्ते में पूनम कुछ नहीं बोली कि कहीं किसी बात पर बहस ना हो जाए । 

वहाँ पहुँच कर देखा कि बाहर लॉन में बहुत सी कुर्सियों पर लोग बैठे हैं । बरामदे में माताजी का पार्थिव शरीर रखा था, पास में ही मिसेज़ मेहरा सफ़ेद साड़ी पहने बैठी थी, उनके पास शायद उनके मायके के लोग बैठे थे । किसी को देखकर ऐसा नहीं लग रहा था कि उनके घर में कुछ देर पहले माँ की मृत्यु हुई है । हाँ….

मेहरा भाई साहब बार-बार चश्मा उतारकर आँखें पोंछ रहे थे । तीनों बच्चे भी चुपचाप एक तरफ़ खड़े थे । रविकान्त को देखते ही वकील साहब ने उन्हें धीरे से कुछ कहा और वह कहीं फ़ोन करने में व्यस्त हो गए । पूनम को समझ नहीं आया कि किसको सांत्वना दे । वह चुपचाप माताजी के पार्थिव शरीर के पास गई और उनके चरणों को छूकर मिसेज़ मेहरा के पास बैठ गई ।बहुत रोकने पर भी उसकी रुलाई फूट पड़ी ….. पूनम को अपनी दिवंगत सास याद आ गई थी । उसे रोता देख लोगों ने समझा कि  वो वकील साहब की बहन है । कुर्सी पर बैठी कुछ औरतें उसके पास आकर उसे सांत्वना देने लगी । 

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माँ- बेटी का रिश्ता ही ऐसा होता है । बस हिम्मत रखो ….

तभी रविकान्त ने कहा—-

बहनजी आ गई है । पूनम ! इधर आकर बहनजी को सँभालो ….. उनसे चला नहीं जा रहा । 

पूनम के उठते ही औरतों को अपनी गलती का अहसास हुआ । 

हमेशा बेटी को देखते ही बाँहों में भरने वाली माँ को यूँ मौन धरती पर पड़ी देखकर बहनजी की दहाड़ से उपस्थित जनसमूह की आँखें आँसुओं से भीग गई । दोनों  भाई-बहन गले मिलकर ऐसे रो उठे मानो इनके रिश्ते  का सेतु भी माँ ही थी जो आज टूट गया था ।

तभी पूनम की नज़र एक औरत पर पड़ी जो मिसेज़ मेहरा के कंधे पर हाथ रखकर कह रही थी——

रो मत बेटा ….. तूने बहू होने का फ़र्ज़ बख़ूबी निभाया है, सब्र कर । 

पर मिसेज़ मेहरा के चेहरे पर तो दुख की परछाई भी नहीं थी , चुप किसे करवाया जा रहा है? 

माताजी  अपनी अंतिम यात्रा पर चली गई । शाम तक रुकने के बाद पूनम और रविकान्त भी घर लौट आए । पूनम के मन में हज़ारों सवाल थे पर उसकी इच्छा ही नहीं हुई कि वह पति से कुछ पूछे । 

अगले दिन सुबह बच्चों के कॉलेज जाने पर वह चुपचाप बैठी चाय पी रही थी कि रविकान्त ने कहा—-

पूनम ! इतनी चुप क्यों हो ? वकील के घर जाने से पहले तो सैंकड़ों प्रश्न पूछ रही थी? 

क्या-क्या पूछूँ ? जो दिख रहा था वो पूछूँ या जो महसूस कर रही थी वो पूछूँ ? पर एक बात समझ नहीं आई कि बीस दिन पहले ही तो हम मेहरा भाई साहब के घर गए थे तब तो माताजी यहाँ नहीं थी …..उसके बाद आई थी क्या ? 

पिछले पाँच सालों से माताजी यहीं थी । कहने को तो भरा-पूरा परिवार था पर वो एकदम अकेली और लाचार एकांत में जीवन बिताकर चली गई । 

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शुरू- शुरू में तो मेहरा और भाभी के बीच माताजी को लेकर बहुत लड़ाइयाँ हुई पर अंत में मेहरा ने उनकी देखभाल के लिए चौबीस घंटे के लिए नर्स का इंतज़ाम कर दिया था । मैं भी कई बार जाता और माताजी से मिलने की इच्छा ज़ाहिर करता तो मेहरा खुद ही रोक देता था—-

रहने दे रविकान्त, तुम तो मिलकर चले जाओगे पर स्वीटी माँ को यह कह कहकर परेशान कर देंगी कि उन्होंने घर के अंदर की बातें बता दी होगी । बहनजी सब जानती है…. पर यह सब तो मेहरा को सोचना चाहिए था । उसकी  सबसे  बड़ी कमी है कि उसने कभी भाभी को कुछ कहा ही नहीं । 

छि ….. ऐसे बेटे से तो अच्छा है कि ना ही हो …. जो बेटा अपनी ही माँ को अकेले जीने पर मजबूर कर दे उसे मैं क्या ही कहूँ बस …. 

रविकान्त तो हर रोज़ वकील साहब के पास जाते थे पर तेरहवीं के दिन पूनम ने कहा—-

माताजी के अंतिम हवन में , मैं भी श्रद्धांजलि देने जाऊँगी….. देखूँ तो सही कि लोग दिखावे की ज़िंदगी जीने के लिए कितना गिर सकते हैं? 

वहाँ जाकर पूनम हैरानी से  मिसेज़ मेहरा को देखती ही रह गई—- शायद शोक- सभा के लिए भी ब्यूटी पार्लर जाने का रिवाज चल पड़ा है । बहुत ही क़रीने से पहनी सफ़ेद मोती के काम की सिल्क साड़ी, सफ़ेद मोतियों का मैचिंग सेट ….. ये घर की इकलौती बहू थी ….. जो पता नहीं मन ही मन सास के जाने का आनंद मना रही थी या अपनी अमीरी का प्रदर्शन कर रही थी । 

पूनम ने हवन के बाद माताजी की तस्वीर पर लाल गुलाब चढ़ाए और इस घर में दुबारा न आने की क़सम खाते हुए अपने घर की तरफ़ चल पड़ी । उसके मन से बार-बार यही आवाज़ आ रही थी——

इसी धरती पर  स्वर्ग- नरक हैं …. बुरा करने वाले को एक न एक दिन किए की सजा ज़रूर मिलती है ।

लेखिका : करुणा मालिक

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