अमीरचंद नाम के ही अमीर नहीं थे धन दौलत जमीन जायदाद हर उस चीज के मालिक थे जो एक धनाढ्य की पहचान होती है।
बस नहीं था तो एक दिल जो किसी के काम आ सके। वैसे वो कई मंदिर कई संस्थाओं के ट्रस्टी थे। जहां कही भी नाम आ सके वहां वो अपने धन का उपयोग करने में कभी पीछे नहीं रहते थे।
लेकिन अगर नाम नहीं आए तो एक दमड़ी भी नहीं निकालते।
अमीरचंदजी की धर्मपत्नी सौभाग्यदेवी खूब दयालु दानपुण्य में सदा आगे रहने वाली। पूरे गांव में सबसे ज्यादा मशहूर और प्रिय थी किसी को भी कुछ भी जरूरत हो कभी मना नहीं करती।
अमीरचंद को ये सब पसंद नहीं था पर उनकी एक न चलती।
वो धर्मपत्नी को कई बार डांट भी देते । अक्सर उनकी अनबन होती ही रहती।
दो बच्चे थे उनके दोनों बहुत खर्चीले स्वभाव के थे, पूरी उनकी जिंदगी दिखावे वाली थी। दोनों बच्चे हर समय ब्रांड ब्रांड करते रहते। साधारण चीज तो उनके पास कुछ नहीं थी।
एक दिन एक गरीब दंपति सौभाग्यदेवी का नाम सुन कर सहायता की आश लिए उनके घर पे आए थे। पर उनका दुर्भाग्य कि उस वक्त सौभाग्यदेवी घर पर नहीं थी। तो उस दंपति ने देखा सेठजी है उन्हीं से बात करते है। जैसे ही वो गरीब दंपति उनसे बात करने के लिए उनके करीब आते हैं तो उनको बहुत क्रोध आ जाता है और नौकरों को बुला कर उनसे कहता है इन भिखारियों को यहां से निकालो।
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वो दंपति एकदम आश्चर्यचकित रह जाता है और सोचने लगता हे इतना अमीर आदमी और इतना गरीब व्यवहार।
वो दुखी होकर घर से बाहर आ जाता है।
वो समाज के लोगों से इस बारे में बात करता है तो कोई मानने को तैयार नहीं होता। क्योंकि सेठजी ने अपनी छवि एक दानवीर के रूप में बना रखी थी। कोई भी उस गरीब की बात का विश्वास नहीं करता उल्टा उसको ही गलत साबित कर के डांट देते।
एक दिन सेठजी अपने परिवार के साथ अपनी कार में कहीं जा रहे थे कि सामने से आ रही एक सरकारी बस से उनकी कार टकरा जाती है उस भीषण दुर्घटना में सेठजी परिवार सहित स्वर्गसिधार जाते है। उस सरकारी वाहन में दो ही यात्री थे उनका भी देहांत हो जाता है। वो दोनों वो ही गरीब दंपति थे।
6 जन की मृत्यु एक साथ हो जाती हैं। पूरा गांव शोक संतप्त हो जाता है। दाह संस्कार में सब आपस में बात करते है कि सतही जिंदगी भर नाम नाम रोते रहे और अब सब यही छोड़ गए।
सब लोग सेठानी की तारीफ करते रहे।
यमलोक में सबका हिसाब किताब मिलाया जा रहा था।
पहले उन दोनों गरीब दंपति को उनके कुछ अच्छे कर्म की वजह से फिर से नया जन्म देके एक अमीर घर में पैदा होने का आशीर्वाद मिलता है।
सेठानी ने बहुत अच्छे कर्म किए थे तो उनको स्वर्ग जाने का सौभाग्य प्राप्त होता है। वो कहती है मेरे पति को भी मेरे साथ ही भेजो। क्योंकि मैने जितने भी सदकार्य किए है इनके पैसों से ही किया है।
चित्रगुप्त कहता है सेठजी के पास जो धन संपति थी वो सब तुम्हारे पुण्य की वजह से थी।
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इनका उसमें कुछ भी योगदान नहीं है।
सेठजी को नववी नर्क में भेजने का आदेश दिया गया।
सेठजी बहुत गिड़गिड़ाए पर उनकी एक नहीं चली।
सेठजी कहने लगे मेरा क्या गुनाह मुझे क्यों नर्क में भेज रहे हो। मैने तो कई फैक्ट्रियां लगाई कई लोगों को काम मिला, मैं कई मंदिरों में ट्रस्टी हूं। मुझे तो स्वर्ग ही मिलना चाहिए।
चित्र गुप्त ने कहा सेठजी वो सब तो आपके दिखावे की जिंदगी थी असली जिंदगी तो आपने कभी जीने की कोशिश ही नहीं की। आप को नर्क में अलग योनियों में जन्म लेना पड़ेगा। कई हजारों वर्ष बाद जब तुम्हारा पुण्य उदय उदय होगा तब तुम फिर से जन्म लेके धरती पे जाओगे।
दोनों बच्चों को भी नर्क में जाने का आदेश मिला।
सबक ये है कि ये दिखावे की जिंदगी जीते जीते कब तुम खुद को भगवान मानने लगे थे। ये तुम्हे भी पता नहीं होगा।
“अमीरचंदजी कभी भी सरल एवं सही स्वभाव वाली जिन्दा जी ही नहीं थी। बस लगातार दिखावे की जिंदगी जीते जीते आप कभी थकते नहीं”
राजेश कुमार