दिखावे की जिन्दगी – मुकुन्द लाल : Moral Stories in Hindi

  प्रीती और सुशांत की शादी हाल ही में हुई थी। नई-नई शादी के उमंग-उत्साह में सराबोर प्रीती अपने और अपने पति के संग विभिन्न आकर्षक मुद्राओं में खींचे गए फोटोग्राफ्स को कभी फेसबुक पर तो कभी व्हाट्सऐप पर निरंतर बिना किसी दिन नागा किए हुए डालती जा रही थी। इन तस्वीरों में दोनों नवविवाहित जोड़ी रंग-बिरंगी कीमती आधुनिक पोशाक धारण किए हुए थी, जो देखने वालों के दिल दिमाग को प्रभावित करने में सक्षम थी। 

   शादी के शुभ अवसर पर फोटोग्राफर द्वारा पारम्परिक रस्मों, रीति-रिवाजों, हल्दी मेंहदी, जयमाला… आदि के मौकों पर उनसे संबंधित सैकड़ों फोटोग्राफ्स खींचे गए थे, जिसमें दोनों हरे, पीले, नारंगी, नीले , लाल, गुलाबी… रंगों वाले विशेष  परिधान धारण किए हुए थे भिन्न-भिन्न मौकों पर।इनके मेकअप किए हुए चेहरे बला के खूबसूरत मालूम पड़ रहे थे हीरो-हिरोईन की तरह उन तस्वीरों में। 

   सुशांत शादी के कुछ दिनों के बाद ही ठीक समय पर दफ्तर निकल जाता था ड्यूटी करने के लिए ।

   नई दुल्हन को संकोचवश उसकी सास माधवी ने भी कुछ नहीं कहा, किन्तु प्रीती का मुख्य काम रह गया था फेसबुक और व्हाट्सऐप के माध्यम से सिर्फ दिखावा करने का। हलांकि शादी के पहले से ही प्रीती का सोशल मिडिया से लगाव था। पर शादी के बाद तो उसने इस मामले में अति कर दी। 

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   प्रारंभ में सुशांत ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया। परन्तु  जब महीनों. तक अपने घर की सामान्य बातें भी फेसबुक के स्क्रीन पर आने लगी तो वह चिंतित हो गया। 

     नई शादी थी, इस लिए कहीं उसकी नई-नवेली पत्नी दुख न मान जाए, नाराज न हो जाए, ऐसा सोचकर वह सब कुछ देखने के बाद भी अनजान बना रहा इस प्रत्याशा में कि आज न कल उसकी तस्वीर प्रकाशित करने की मुहिम बंद होगी। किन्तु वैसा कुछ नहीं हुआ। बल्कि उसकी रफ्तार में और इजाफा होने लगा। स्थिति ऐसी हो गई कि घर के लिए कोई भी सामान खरीदे जाते, कपड़े, गहने फर्नीचर.. आदि तो उसकी तस्वीर भी मोबाइल के स्क्रीन पर दिखती, उसके साथ उसका चेहरा भी दिखता। 

   जब उसके घर की प्राइवेसी सरेआम होने लगी तो उससे रहा नहीं गया। 

   उस दिन दफ्तर से लौटने के बाद, जब प्रीती ने चाय की प्याली और नमकीन भरा प्लेट उसके सामने रखकर उसके सामने ही बैठ गई तो उसने सहज लहजे में उससे कहा, ” अब फेसबुक के स्क्रीन पर फोटो डालना बंद भी करो!… सभी लोग जान गए कि हम दोनों की शादी हुई है।… किसी भी चीज की अति  अच्छी नहीं होती है…” 

   “इसमें हर्ज ही क्या है?… मुझे तो बहुत अच्छा लगता है, खुशी होती है… हमलोगों के परिचय का दायरा बढ़ता है… चारों तरफ हमलोगों की बड़ाई हो रही है… सैकड़ों लाइक्स और कमेंट भी मिल रहे हैं..”

  ” वो तो ठीक है, किन्तु अपने मोहल्लों-टोलों, रिश्तेदारों के बारे में भी सोचा है कभी कि वे लोग तुम्हारे द्वारा उठाए गए कदमों के संबंध में क्या सोचते हैं?… तुमने हर कमेंट पर ध्यान नहीं दिया, कुछ में प्रशंसा अवश्य है किन्तु कुछ में आलोचना और व्यंग्य भी है।… ठीक है शादी से संबंधित तस्वीरों को स्क्रीन पर डाला, यहांँ तक तो ठीक है, पर अब घर-गृहस्थी पर ध्यान दो। “

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   कुछ पल ठहरकर उसने पुनः कहा,” तुम तो घरेलू काम-धाम छोड़कर घर के साधारण कार्यकलाप और रहन-सहन से संबंधित फोटो को भी स्क्रीन पर डालकर लोगों को खामखा बोलने का मौका दे रही हो, यह अच्छी बात नहीं है। “

   सुशांत की बातों से नाराज होकर उसने चुप्पी साध ली। फिर वह उसके सामने से हट गई अपनी आंँखें लाल-पीली करती हुई । 

   जब वह सुशांत के साथ बाइक पर सवार होकर शहर से कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित हरी-भरी वादियों, पहाड़ों व संगीतमय ध्वनि बिखेरने वाले झरनों के समीप जाती तो आकर्षक पोज में खींची गई तस्वीरों को भी सोशल मिडिया पर डाल देती बिना अपने पति की राय लिए हुए।. अपने को   हाइलाइट करने के उद्देश्य से ।उसके सिर पर दिखावा करने का ऐसा भूत सवार हो

गया था कि प्रीती कोई भी पोशाक, गहने या कोई सजने-धजने का सामान खरीदती तो उसे धारण कर फेसबुक पर जरूर आती, कभी स्वयं, कभी अपने पति के संग।  उसकी इस आदत से सुशांत के साथ कई बार कहा-सुनी भी हो गई थी। 

   उसका पति तो ऑफ़िस में ड्यूटी करता पर उसकी पत्नी मायके के सखी-सहेलियों और दोस्तों के साथ बातचीत करती। घर की वास्तविक स्थितियों के उलट  कई गुना बढ़ा-चढ़ाकर बताती।

   शादी हुए लगभग साल-भर हो गए थे। 

   उस दिन उसके मोबाइल पर एक युवक का फोन आने लगा। प्रारम्भ में तो उसने उससे बात करने से इन्कार कर दिया। किन्तु वह मंजा हुआ खिलाड़ी था।उसकी हौबी थी खूबसूरत लड़कियों व महिलाओं को फोन के माध्यम से संपर्क कायम करके अपने

जाल में फांस लेने का। उसके द्वारा आरजू-मिन्नत करने के बाद न-न कहते हुए भी उसने उससे बातचीत शुरू कर दी। वह वाक-पटु था।उसके जादुई शब्दों ने प्रीती के दिल में जगह बना ली। 

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   नतीजा यह निकला कि उस दिन जब सुशांत अपनी ड्यूटी पर चला गया तो महीने-भर प्यार में पगे हुए टेलिफ़ोनिक संवादों के प्रभाव से उसके संपर्क में रहने के बाद उसके बुलावे पर प्रीती उसी शहर के फव्वारे वाले पार्क में उससे मिलने के लिए पहुंँच गई अपनी सास से मार्केटिंग के बहाने इजाजत लेकर। 

   वहांँ पहुंँचने पर उसने प्रीती का गर्मजोशी के साथ स्वागत किया। जरूरत से ज्यादा उसने उसको इज्जत दी। फिर फूलों की झाड़ियों के बीच दोनों के बीच जो वार्ता शुरू हुई वह दफ्तर में छुट्टी होने के समय से थोड़ी देर पहले समाप्त हुई। 

   किसी तरह से वह गृहस्थ-जीवन निभाने की खानापूर्ति कर रही थी। 

   उसकी ऐसी स्थिति माधवी को खटकने लगी। उसे ऐसा महसूस होने लगा कि कहीं दाल में काला है। उसने सुशांत से खुलकर तो कुछ नहीं कहा लेकिन बातों-बातों में ही उसने इशारा कर दिया। सुशांत सतर्क हो गया। उसने अपनी पत्नी की गतिविधियों पर निगरानी रखने लगा। 

   प्रीती ने फोन करने की अपनी जगह बदल दी। जब उसका पति दफ्तर जाता तो वह मोबाइल लेकर अपने भवन की सबसे अंतिम मंजिल की छत पर पहुंँच जाती। वहीं पर अपने फ्रेंड से बातचीत करती। उसके साथ वाद-संवाद का लुत्फ उठाती।

   उस दिन अचानक सुशांत ने छत पर पहुंचकर चुपके से उसके पीछे जाकर उसका मोबाइल लपक लिया था, जब वह बातचीत करने में तल्लीन थी।

   स्क्रीन पर अपरिचित युवक की तस्वीर देखकर वह आगबबूला हो गया। उसने प्रीती को जली-कटी सुनाई, इसके साथ ही उसे डांँट भी पिलाई।

   उस युवक के बारे में पूछने पर उसने कहा कि उसके मायके के चचेरे भाई का मित्र है। 

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   ” उसका फोन नम्बर बताओ मैं उससे बात करके पूछता हूँ” उसने गुस्से में कहा। 

   किन्तु वह मौन हो गई ।उसका सिर नीचे झुक गया। 

   “चुप क्यों हो गई?… मैं समझता था कि तुम कपड़ों, गहनो और अपने फैशनेबुल रहन-सहन का मात्र दिखावा कर रही हो… किन्तु तुमने तो हद कर दी… अनजान व्यक्ति से घंटों बातचीत करती हो… तुम क्या चाहती हो?… साफ-साफ बोलो!… अगर तुम्हारे मन में कोई बात है तो खुलकर बोलो! “

   प्रीती खामोश होकर सिर झुकाए खड़ी थी। वातावरण में सन्नाटा छाया गया था। जिसको भंग करते हुए, उसने कहा,” दुबारा अगर किसी अपरिचित व्यक्ति से बातचीत करती हो,

जो मेरी रिश्तेदारी की सर्किल से बाहर का है तो तुम्हारे हक में ठीक नहीं होगा… फिर समझ लो आगे क्या हो सकता है?… यह फर्स्ट ऐंड लास्ट वार्निंग है।… ऐसा न हो कि किसी के बहकावे में आकर तुम अपनी जिन्दगी बर्बाद कर लो!… और मेरी भी घर-गृहस्थी  को भी तबाह दो। “

   यह बिलकुल सही था कि सुशांत गम्भीर प्रकृति का पुरुष था। वह भले ही किसी हीरो की तरह डायलॉग अपनी पत्नी की प्रशंसा में नहीं बोलता था, न दिखावा करता था किन्तु अपनी पत्नी को अपने दिल की गहराइयों से प्यार करता था। वहीं दूसरी ओर दिखावे के चक्कर में जब प्रीती को पुरुष फ्रेंड से वास्ता पड़ा

तो उसके जरिये व्यक्त किये गए सुमधुर और उसको महिमामंडित करने वाले लच्छेदार प्यार भरे संवादों ने उसके जेहन में जगह बना ली थी। उसके दिमागी पटल पर उसके फ्रेंड की तस्वीर रह-रहकर उभरती रहती थी।उसके द्वारा कहे गए वाक्यों, ‘मेरे हर धड़कन के साथ तुम्हारा नाम गूंँजता है मेरे अंतर्मन में’… ‘तेरे इश्क में जिंदगी भर मरता रहूँगा’… ‘मुझे मारना या जिन्दा रखना तुम्हारे हाथ में है प्रिये’…. आदि-आदि।

इन्हीं भावनाओं के तहत दोनों की अंतरंगता तेजी से बढ़ने लगी थी। 

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   ऐसी अवस्था में उसके पति का व्यक्तित्व उसको उसकी तुलना में तुच्छ समझ में आने लगी थी। 

   सुशांत ने लास्ट वार्निंग देते हुए जब उसको खरी-खोटी सुनाई तो वह नाराज होकर दूसरे ही दिन चुपके से अपने फ्रेंड से मिलने अचानक  उसी पार्क में पहुंँची तो उसने देखा कि उसके फ्रेंड के आगोश में पड़ी कोई दूसरी लड़की उसको इंटरटेन कर रही है।

   वह आसमान से जमीन पर गिर पड़ी। वह तेजी से लौट पड़ी अपने घर की तरफ स्वतः बुदबुदाते हुए, 

” दगावाज!… धोखेबाज!… मेरा भाग्य अच्छा था जिसके कारण मुझे असलियत पहले ही पता चल गया… नहीं तो मेरी जिन्दगी बर्बाद हो जाती, नर्क बन जाती। 

   वह अपने पति को ही सर्वस्व मानकर उसके साथ खुशी-खुशी जीवन व्यतीत करने लगी। 

   दिखावे भरी जिन्दगी से जितना लाभ होता है, उससे कई गुना नुकसान आदमी को उठाना पड़ता है। जिन्दगी में दिखावा आटे में डाले जाने वाले नमक की मात्रा भर ही होनी चाहिए। 

   स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित 

                 मुकुन्द लाल 

                  हजारीबाग(झारखंड) 

                    12-04-2025

                  कहानी प्रतियोगिता 

                 # दिखावे की जिन्दगी

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