“दिखावे की जिंदगी” – हेमलता गुप्ता : Moral Stories in Hindi

सुनो जी… इतने बड़े घर में रिश्ता करने से पहले एक बार अपनी हैसियत तो देख लेते, कहां से लाएंगे हम इतना पैसा दहेज के लिए, माना लड़के वालों की तरफ से खुलकर कोई डिमांड नहीं हुई है फिर भी उनके कहने का मतलब तो यही था की शादी बड़ी धूमधाम से होनी चाहिए ताकि उनकी समाज में इज्जत रह जाए बहुत बड़े लोग हैं वह, मैं कहती हूं इस दिखावे की जिंदगी से बाहर आकर देखिए और अपनी बेटी का संबंध अपनी

बराबरी वाले में ही कीजिए, इतने बड़े घर की बहू बनकर जाएगी नूपुर तो उसे हर समय हीन भावना का शिकार होना पड़ेगा और ऐसा ना हो कि कल को वह हमें ही निम्न स्तर का समझने लग जाए! अरे कैसी बेवकूफ औरत हो अपनी बेटी का संबंध इतने ऊंचे घर में होता देखकर भी खुशी की बजाय दुखी हो रही हो, भगवान ने थोड़ी बहुत अक्ल भी दी है या नहीं, कितनी बार कहा है तुमसे जब मैं कोई फैसला करता हूं

उसमें अपनी  टांग मत अडाया करो, तुम्हें पता है ना 2 साल पहले मेरे बड़े भाई साहब ने कितनी बड़ी जगह पर आस्था का संबंध तय किया था और वह आज  रुपयो पैसों में खेलती है बिना गाड़ी के कहीं नहीं आती जाती जमीन पर तो मानो पैर भी नहीं रखती, मैं भी दिखा दूंगा उनको कि मैं भी उनसे किसी मामले में कम नहीं हूं, चाहे खुद को ही क्यों ना बेचना पड़े लेकिन मैं भी अपनी बेटी की शादी भाई साहब से ऊंचे खानदान में ही

करूंगा! नूपुर की मम्मी सुमित्रा अपने पति राधा रमन जी को समझा समझा कर थक गई किंतु उनके ऊपर तो मानो अपने बड़े भाई साहब से होड़ करने की जिद सवार थी उनको केवल यह दिखाना था कि वह अपने बड़े भाई साहब से किसी भी मामले में कम नहीं है और जैसे-तैसे राधा रमन जी ने कर्ज लेकर और अपने मकान को गिरवी रखकर नूपुर की शादी डॉक्टर अजीत से कर ही दी! कुछ समय बाद वही हुआ

जिसका सुमित्रा जी को डर था अब नूपुर अपने मायके कम से कम आती उसे लगता अब वह भी बड़े घर की बहू है शादी के 6 महीने बाद राखी के त्योहार पर नूपुर अपने मायके आई पर उसने देखा वहां उसके स्वागत के लिए कोई खास तैयारी ही नहीं है उसने अपने मम्मी से पूछा… मम्मी यह घर की क्या स्थिति हो गई है पापा भी बहुत परेशान से  दिखते हैं आप भी बीमार जैसी लगने लग गई हो, क्या बात है मम्मी मुझे बताइए तो सही?

अब बेटा… तुझे क्या बताऊं.. तेरी शादी के लिए तेरे पापा ने यह घर गिरवी रख दिया अब इसको छुड़ाने के लिए पैसों का इंतजाम भी नहीं हो पा रहा उनको केवल यह दिखावा करना था कि वह तेरे ताऊजी से किसी भी चीज में कम नहीं है मैंने कितना समझाया उनको किसी से भी बराबरी नहीं करनी चाहिए जिसकी किस्मत में जो लिखा है वही उसे मिलेगा, पर नहीं… मेरी तेरे पापा सुनते ही कहां है, अब खुद दुखी हैं

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और हमें भी दुखी कर रखा है, आज सुमित्रा जी का ज्वालामुखी अपनी बेटी के सामने फट पड़ा! यह देखकर नूपुर को भी अपनी गलती का एहसास होने लगा और वह मम्मी से बोली….. मम्मी गलती मेरी भी है मैंने भी अपनी शादी के लिए ऊंचे ऊंचे ख्वाब देखे थे मैं भी सोचती थी मेरी सहेलियां इतनी ऊंचे-ऊंचे और अच्छे घरों में गई हैं मेरी शादी भी एक दिन जब ऐसे ही घर में होगी तब मैं उनको दिखाऊंगी,

मुझे भी तो यह दिखावे की  जिंदगी बहुत पसंद थी, मैंने क्यों यह नहीं सोचा कि मेरे पापा मम्मी की तो स्थिति ऐसी है भी नहीं कि मुझे बहुत ऊंचे घर में  ब्याह दे और मैंने तो यह भी नहीं सोचा कि पापा मेरी शादी के लिए इतना पैसा कहां से लेकर आएंगे, मम्मी में कितनी गलत थी पर अब मैं क्या करूं मम्मी…? आप चिंता मत करो मैं अपने पति और ससुराल वालों से बात करती हूं वह कोई ना कोई उपाय जरूर बताएंगे,

मेरे ससुर जी  बहुत अच्छे आदमी हैं! नहीं बेटा तू अपने ससुराल वालों को यह सब मत बताना वरना वह हमारे बारे में क्या सोचेंगे कि जब हैसियत ही नहीं थी तो इतने ऊंचे घर में शादी करने की क्या जरूरत थी, बेटा हमारा पूरी बिरादरी में मजाक बनकर रह जाएगा! नहीं मम्मी आप मुझ पर विश्वास रखो ऐसा कुछ भी नहीं होगा! 2 महीने बाद राधा रमन जी को उनके घर के कागजात देने वह सेठ आया

जिसके पास उन्होंने अपना घर गिरवी रखा था और वह बोला…. राधा रमन जी, यह रहे आपके घर के कागजात और अब आपके ऊपर मेरा किसी भी तरह का कोई कर्ज नहीं है आपके समधियों ने यह घर मुक्त कर दिया है और ऐसा कहकर वह चला गया! राधा रमन जी अगले दिन ही अपनी पत्नी के साथ बेटी के ससुराल पहुंच गए और अपनेसमधी जी से बोले ….भाई साहब आपने तो मुझे बहुत ज्यादा ऋणी बना दिया

क्या कोई अपनी बेटी के ससुराल से पैसे लेता है! अरे अरे राधा रमन जी….. ऐसी कोई बात नहीं हुई है अब आप और हम एक ही परिवार हैं आपको चिंता में देखकर हमारी बहू हमेशा चिंतित रहती थी और फिर एक दिन इसकी तबीयत खराब हो गई बहुत बार कारण पूछने पर इसने बताया कि आपने इसकी शादी के लिए अपना घर गिरवी रख दिया, यह आपने बहुत गलत किया, हां हमने यह जरूर कहा था

कि हमें शादी अच्छी चाहिए किंतु इसका मतलब यह तो नहीं कि आप अपने घर को ही गिरवी रख दें आप हमसे एक बार कहते तो सही, दुनिया को दिखाने के लिए दिखावा करना जरूरी होता है किंतु ऐसा दिखावा भी किस काम का की आदमी आर्थिक और मानसिक रूप से असमर्थ हो जाए और हम नहीं चाहते कि हमारे अपने इस स्थिति से गुजरे, अब हम दो नहीं एक परिवार हैं जब हमारा बेटा आपका बेटा हो गया तो

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आपकी बेटी भी क्या हमारी बेटी नहीं लगी, तो हमारे सुखदुख भी तो साझे के हुए! नूपुर के ससुर जी की बात सुनकर राधा रमन जी और  सुमित्रा जी की आंखों में आंसू आ गए उन्हें यह सब सपने जैसा लग रहा था और बोले…… समधी जी अगर आपके जैसा परिवार हर बेटी को मिल जाए तो किसी भी मां-बाप की आंखों में से आंसू नहीं आए कौन मां-बाप चाहता है कि कर्ज लेकर विवाह किया जाए

किंतु अपने बच्चों की खुशी के लिए यह सब करना पड़ता है, हमने भी बस यही सोचा था कि हमारी बेटी जितने बड़े घर में जाएगी उतना ही सुख उसे मिलेगा लेकिन सुख तो नीयत में होता है ना की पैसों मे, आप पैसों के अमीर होने के साथ-साथ दिल के भी बहुत अमीर हैं और मुझे आज गर्व है कि मैं आपका समधि हूं और हां आज से मैं यह प्रण भी लेता हूं

कि अब मैं इस दिखावे की जिंदगी से बाहर आकर जैसी मेरी स्थिति है मैं वैसा ही व्यवहार करूंगा और ऐसा कहकर दोनों समधि आपस में गले मिल गए और अब नूपुर और उसके मम्मी पापा के ऊपर से दुखों का साया हमेशा के लिए हट गया!

 यह सच है कि लोग दिखावे के लिए ना जाने क्या-क्या करते हैं और चाहे उसके लिए खुद को कितना ही मानसिक कष्ट क्यों न भुगतना पड़े तो क्या यह सही है? जैसी जिसकी स्थिति होती है उसे वैसा ही व्यवहार करना चाहिए !

    हेमलता गुप्ता स्वरचित

.   कहानी प्रतियोगिता (दिखावे की जिंदगी) 

    “दिखावे की जिंदगी”

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