दिखावे की जिंदगी – डोली पाठक : Moral Stories in Hindi

रुबी भले हीं एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी थी मगर उसके सपने बड़े हीं ऊंचे थे।

एशो-आराम का जीवन और खूब से संवर कर रहना उसका सबसे पसंदीदा शौक था।

पढ़ाई में तो वो बहुत हीं औसत थी लेकिन फैशन के मामले में अव्वल…

छोटी उम्र से हीं उसे दिखावा करने का बड़ा हीं शौक था… 

कम लागत में खरीदी गई वस्तुओं के दाम को भी बढ़ा-चढ़ाकर बताने में उसे बड़ा हीं आनंद आता।

स्कूल कालेज हो या घर परिवार रुबी की चाहत बस यहीं होती कि कोई भी उससे बेहतर ना पहनें… 

और ना हीं उसके सिवा किसी की भी कोई तारीफ करें..

उसका यह स्वभाव कब उसका पागलपन बन गया रुबी को पता हीं नहीं चला।

उसकी दिखावे की जिंदगी हीं अब उसके लिए हकीकत बन चुका था।

समय गुजरा रुबी के माता-पिता ने अपने सामर्थ्य के अनुसार एक मध्यमवर्गीय परिवार में उसकी शादी कर दी।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

व्यवहार – उमा महाजन : Moral Stories in Hindi

घर परिवार भी अच्छा मिल गया।

तीन भाईयों के सबसे छोटे बेटे की बहू बनकर रूबी ससुराल आ गई।

उसने जैसे सपने सजाए थे,उसका ससुराल उससे बिल्कुल हीं विपरीत था।

कम आमदनी में मिलजुलकर कर घर चलाने वाले उसके पति और ज्येष्ठ रुबी की आंखों में खटकने लगे।

उसने तो हजारों सपने सजाए थे कि,पति के पैसों से खूब ऐश करेगी… 

हनीमून के लिए बड़े-बड़े हिल स्टेशनों पर जाएगी.. 

मगर ये क्या??? 

यहां तो घर में सत्यनारायण पूजा के साथ मुंह दिखाई की रश्म हो गई और दुल्हन को रसोई की जिम्मेदारी दे दी गई।

रूबी के सतरंगी सपने पल भर में धाराशाई हो गये।

अपने सपनों को यूं टूटते देख रुबी अपने आपे में ना रही.. 

नयी नवेली दुल्हन के रुप में उसे पति के प्यार से ज्यादा ससुराल में एशो-आराम की अधिक अभिलाषा थी।

एक बड़ा घर, गाड़ी, ढ़ेर सारे गहने, कपड़े, मेकअप और खूब सारी आजादी… 

यहीं तो थी उसकी अभिलाषा… 

कुंठित सी रुबी को ससुराल किसी कैदखाने की भांति प्रतित होने लगा।

पति से किच-किच तो करती हीं उसने हंसते खेलते परिवार में भी जहर घोलना शुरू कर दिया।

जिस लड़की ने कभी मैके में रसोईघर की तरफ रुख नहीं किया था वो भला ससुराल में भोजन बना कर क्या खिलाती… 

सोच कर तो यहीं आई थी कि, एक एकलौते और धनाढ्य व्यक्ति की पत्नी बन कर हर दिन ऐश लूटेगी मगर यहां तो सब उलट-फेर हो गया।

रूबी की दोनों जेठानियां मिल जुलकर भोजन बनाती, हंसते खेलते घर का सारा काम निपटाती फिर भी रुबी घर में अशांति फैला कर रखती।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

खोखली होती जड़ें -लतिका श्रीवास्तव

रूबी का पति रमेश अपनी छुट्टियां खत्म कर के जा चुका था फिर भी हर दिन रूबी उसे फोन कर के ससुराल की कमियां गिनाती रहती और अपनी दिखावें की जिंदगी जीने के अधूरे ख्वाब का रोना रोती रहती… 

घर की शांति को बचाएं रखने के लिए रमेश उसे अपने साथ लेकर दूसरे शहर चला आया।

एक नयी गृहस्थी बसाने के लिए हर दंपति को थोड़ी बहुत परेशानियां तो आती हीं है मगर रुबी की चाहत थी कि उसे एशो-आराम की वस्तु अतिशीघ्र हीं मिल जाए…

रमेश ये सोचकर रुबी को शहर ले आया कि पति के साथ अकेली रहेगी तो घर में शांति बनी रहेगी परंतु उसका ये भ्रम भी अतिशिघ्र दूर हो गया…

 रमेश घर की हर कमी को अपने प्रेम से पूरा करने की असफल कोशिश करता रहा लेकिन रुबी पर इसका कोई असर नहीं हुआ।

वो जब भी किसी मित्र के घर रुबी को लेकर जाता तो घर आकर रुबी उससे खूब झगड़ा करती और कहती- देख लो वो भी तो तुम्हारे हीं साथ काम करता है उसके घर में सुख-सुविधाओं की कितनी वस्तुएं हैं और एक तुम हो जो भिखारी की तरह जीते हो और मुझे भी रखते हो… 

रमेश हर बार उसे समझाने की चेष्टा करता कि,ये भौतिक वस्तुएं कभी किसी को सच्चा सुख नहीं देती… 

सच्चा सुख इंसान को परिवार के साथ हीं मिलता है परंतु अक्ल की अंधी रुबी ये बात कभी समझ नहीं पाती।

अंततः विवश होकर रमेश ने किस्त पर घर की हर सुविधा का सामान लेने लगा…. 

एक कम आय वाला व्यक्ति जब दिखावे की जिंदगी जीने की कोशिश करता है तो उसका सुख-चैन सब छीन जाता है कुछ ऐसा हीं हुआ रमेश के साथ… 

अब तक जो दो रोटी चैन से खाता था वो भी अब‌ खाना दूभर हो गया।

रुबी तो हर दिन एक नयी चीज पाकर खूब इतराती… 

अपने आस-पड़ोस की महिलाओं को दिखाती… 

मगर इसका कितना बड़ा खामियाजा उसके पति को भुगतना पड़ता वो शायद वो इस बात से अनभिज्ञ थी।

भौतिक वस्तुओं में नकली खुशियां ढूंढने के चक्कर में उसने अपने पति को कोल्हू का बैल बना दिया।

उसका घर-परिवार सुख-चैन सबकुछ छीन लिया।

इस दिखावे की जिंदगी के सब्जबाग में खोकर वो वास्तविक सुख को नजरंदाज कर बैठी।

डोली पाठक 

पटना बिहार

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!