“पापा,जब उन लोगों की कोई डिमांड नहीं तो आप क्यों ये सब दे रहे हैं?”
“यदि डिमांड होती भी तो भी दहेज देना भी अपराध है।”
पिता को दहेज जुटाते देख विनीत ने आश्चर्य से कहा।
“बेटा, समाज व उसके कुछ नियम भी होते हैं।समधी जी ने कुछ भले न मांगा, तो क्या मैं अपनी इकलौती बेटी को खाली हाथ विदा कर दूं?”
रवि वर्मा ने सामाजिक रीतियों की दुहाई दी| आगे फिर वही समाज…का राग अलापा: “लोग क्या कहेंगे रिटायर्ड आई ए एस की बेटी और कंगालों की तरह शादी हुई!”
“पापा,आप इतने एजुकेटेड होकर कैसी बातें कर रहे हैं?”
“हम जैसे लोग समाज को दिशा न देकर गलत काम करेंगे तो समाज कैसे सुधरेगा?”
विनीत को घूरते हुए रवि वर्मा बोले:
“चुप रहो! तुम्हारी कमाई से नहीं दे रहा। अपनी बेटी के लिए बहुत जोड़ रखा है।”
“क्या हुआ किस बात पर बाप-बेटा बहस कर रहे हो?”
बेटी के साथ शादी की शॉपिंग करके आयी सुधा वर्मा ने कमरे में आते हुए कहा।
“तुम्हारे लाडले बेटे और नेहा के भाई से बहन की खुशियां देखी नहीं जा रहीं।”
रवि वर्मा ने सारा माजरा बयान किया|
नेहा तुरन्त बरसी:
“क्या भैया! पापा मुझे जो कुछ दे रहे हैं वो मेरा हक़ है।आप क्यों चिढ़ रहे हो?”
बहन नेहा की बात सुनकर विनीत पर मानो बिजली गिरी।
“मैं चिढ़ रहा हूँ! ये तुम कह रही हो! एक उच्च पद पर कार्यरत अधिकारी!”
विनीत बोलते बोलते रुका फिर बोला:
“कहाँ गयीं वो तुम्हारी समाज सुधार की बड़ी बड़ी बातें!”
उसने बहन पर तंज कसा|
“हाँ तो, कल पापा की सारी जायदाद भी आप लोगे। मुझे तो अभी जो मिल जाएगा वही है न|आदर्शवादी बनी तो आप सब हड़प लोगे।”
नेहा की बात सुन विनीत जैसे आसमान से गिरा!
“तुम ऐसा सोचती हो। इतनी पढ़ाई और ऐसी सोच!”
विनीत अपने वेल एजुकेटेड माता-पिता और बहन को देख रहा था। कुछ पल के मौन के बाद उसने कहा: ”पापा, मुझे अपनी पढ़ाई पर गर्व है| आपकी दौलत व जायदाद से कुछ नहीं चाहिए|”
नेहा मौन थी। रवि वर्मा के चेहरे पर क्रोध की लकीरें थीं। सुधा बहुत तनाव में थी।
“खुद के बलबूते सब कुछ बनाऊंगा। अपने विवाह में एक पैसा नहीं लूंगा|”
विनीत सबके चेहरों के बदलते रंग देख कर बोला: “हाँ,अभी घर से जा रहा हूँ क्योंकि ये दिखावा व रिश्तों की सौदेबाजी नहीं देख सकता।”
सुधा ने बेटे को चुप कराने की कोशिश की पर विनीत निर्णय ले चुका था। उसने वो निर्णय ज़ाहिर कर दिया|
“आप सबकी दिखावे की लालसा देख दम घुट रहा है।”
“शादी में जरूर आऊंगा।भाई की सारी जिम्मेदारी निभाउंगा।”
रवि वर्मा कुछ कहते इससे पहले विनीत घर से बाहर निकल गया।
आसमान में बादल छंट चुके थे।नया सूरज झांक रहा था|
#दिखावा
धन्यवाद
डॉ संगीता गाँधी