वाह, मम्मी आज तो आपकी बहु रानी ने आपको स्टेटस पर सबसे पहले बधाई दी है।
वान्या ने अपनी मम्मी निर्मला जी को छेड़ते हुए कहा।
निर्मला जी हिंदी विषय की व्याख्याता है।
स्वभाव में एकदम सरल,वाणी में तो माधुर्य घुला हुआ और अपनापन ऐसा की हर रिश्ते में उनकी धाक रहती है।
सभी प्रयासों के बावजूद बस अपनी बहु में अपनापन नही घोल सकी।
हर प्रयास विफल रहा।
अब वो क्या करती हाथ तो दोनो हाथ धुलाए ही धुलते है।
स्नेह असेप्ट करने वाला भी तो होना चाहिए।
बहु ने ससुराल के आंगन के मधुर पलो को स्वीकार नहीं किया।
वान्या की बात का जवाब निर्मला जी ने एक मुस्कुराहट के साथ दिया और बोली ” हा,घर नही आए ना सही,फोन पर बात करे या ना पर दुनिया के सामने तो अपना सिर नही झुकने देती है।”
“वाह मम्मी आप किस मिट्टी की बनी हो ?
ये छलावा और दिखावा है लोगो के सामने खुद को भला बनाने का।”
वान्या ने अपने मोबाइल को सोफे पर पटकते हुए कहा।
निर्मला जी बोली ” ले मेरा मोबाइल और थैंक यू भेज दे।”
जो जैसे खुश रहना चाहे वैसे रहे हमे क्या?”
कहती हुई निर्मला जी रसोई में चली गई शायद वान्या के सामने अपने अश्रुओ को दिखाना नही चाहती थी।
पर दिल में एक कसक तो थी।
आटा गूंधते हुए बीच बीच में अपनी साड़ी के पल्लू से आसुओं को भी पोंछ लेती थी।
एक एक रोटी बीते दिनों की यादो की गवाह बनने की दरकार बन गई थी।
कितने जतन से कथा को पवित्र के लिए चुना था।
कितने सपने देखे थे बिलकुल वान्या की तरह रखूंगी।
सारी परेशानियां मैं ओढ़ लूंगी पर मजाल है कथा को कोई परेशानी हों जाए।
पर कथा शायद कुछ सोच कर ही आई थी।
उसे अकेलापन चाहिए था।
कुछ महीनो बाद ही वो पवित्र को लेकर अलग हो गई।
पहले आना जाना था।
पर जब भी आती किसी न किसी में कोई न कोई कमी निकाल कर झगड़ने का बहाना ढूंढती।
एक दिन राम सहाय जी ( वान्या के पापा) के पापा ने पवित्र से पूछा ” बेटा तुम जानते हो इस घर में हम सब कितने स्नेह से रहते थे आज इतनी अशांति कारण?
पवित्र ने साफ साफ कह दिया ” अलग रहना चाहती है “
रामसहाय जी ने तुरंत हां भर दी।
बस फिर क्या था?
घर में शांति तो आ गई पर निर्मला जी के मन की शांति गायब हो गई ।
आज निर्मला जी की बर्थडे थी।
सबके फोन आए थे पर कथा ने स्टेटस पर फोटो लगा कर हैप्पी बर्थडे लिख कर समाज को बता दिया था की
वो कितनी जिम्मेदारी से रिश्ते निभा रही है।
एक मात्र दिखावा ?
अचानक रामसहाय जी की आवाज ने निर्मला के विचारो की श्रंखला में विघ्न डाल दिया।
“अरे सुनती हो वान्या की मम्मी “
हां,हा,आई अपने मुख पर जल के छीटें डाल कर पोछती हुई आई ।
आ गए आप?
हां,मै ही नही आया हु देखो मेरे साथ कोन है?
निर्मला जी चौक गई ” पवित्र तुम?”
पवित्र ने निर्मला जी के धोक लगाई और बोला ” अवतरण दिवस की शुभकामनाएं”
निर्मला जी थैंक यू देते देते गेट की तरफ देख रही थी
मन कह रहा था आज भी अकेला ही आया है”
पर बोल नही पाई ।
रिश्तों को सहेजना था।
दिखावे की अग्नि में नही जलाना था।
पांच साल बाद आज के दिन ही वान्या अपने ससुराल से आई थी।
अपने बच्चो को लेकर।
रामसहाय और निर्मला जी की फोटो पर माला थी।
कथा भाभी सिर पर पल्लू लिए प्रसाद चढ़ा रही थी।
वान्या की आखें बरबस ही छलछला आई।
पर अपनी मम्मी की तरह चुप रही।
सम्मान था या दिखावा समझ नही पा रही थी।
दीपा माथुर