धिक्कार – पूजा शर्मा  : Moral stories in hindi

न जाने क्यों शाम्भवी अब तक वैदिक के परिवार में सामंजस्य नहीं बैठा पा रही थी । शाम्भवी अपने माता-पिता की इकलौती लड़की थी उसने वैदिक से लव मैरिज की थी लेकिन वैदिक का संयुक्त परिवार था जिसमें उसके माता-पिता राजेश जी और सुनीता जी बड़ा भाई अंकुर, भाभी नैना और छोटी बहन निकिता जो कि दूसरे शहर में पढ़ती थी। परिवार के सभी लोगों में बहुत प्यार था पूरे परिवार में वैदिक अपनी भाभी के बहुत करीब था। यूं तो नैना ने भी एमबीए किया हुआ था लेकिन वह नहीं नौकरी नहीं करना चाहती थी क्योंकि वह अपने बेटे आरव के साथ उसके बचपन का हर पल जीना चाहती थी।

आरव अब फर्स्ट क्लास में पढ़ता है। परिवार में सब नैना को बहुत प्यार करते थे उसके साथ ससुर भी अपनी बड़ी बहू की तारीफ करते नहीं थकते थे। शाम्भवी एकल परिवार में पली बड़ी थी इसलिए वह खुद को सबके बीच में एडजस्ट नहीं कर पा रही थी। वह स्वच्छंद विचारों की लड़की थी। सुबह का सारा काम नैना और उसकी सास ही मिलजुल करते थे नैना अपने पति और आरव के टिफिन के साथ-साथ शांभवी और वैदिक का टिफिन भी तैयार कर देती थी। ऐसा लगता था जैसे परिवार में हर कोई नैना पर ही डिपेंड है।

शांभवी के सामने होते हुए भी वैदिक जब छोटे से काम को भी अगर अपनी भाभी से कहता तो शाम्भवी को बहुत बुरा लगता था। उसे आरव का भी अपने चाचा के साथ इतनी मस्ती करना नहीं भाता था। शुरू शुरू में तो सब ठीक था लेकिन धीरे-धीरे उसे अपने पति का नैना की इतनी तारीफ करना अखरने लगा। एक दिन उसने अपने पति से स्पष्ट रूप से बोल भी दिया देखो वैदिक अब हमें अपने ऑफिस के पास ही कोई फ्लैट देख लेना चाहिए मैं तुम्हारे परिवार के साथ नहीं रह सकती हम दोनों के पास मिलाकर अच्छी सेविंग्स हैं और कुछ लोन भी ले सकते हैं मुझे प्राइवेसी चाहिए ऑफिस से आकर भी तुम कितना समय अपने परिवार के साथ ही बिताते हो। मेरे लिए तो तुम्हारे पास वक्त ही नहीं है।

पूरा दिन ऑफिस में खटू और फिर रात को भी कमरे में तुम्हारा इंतजार करूं मुझे यह सब कुछ बर्दाश्त नहीं होता। यह तुम क्या कह रही हो शांभवी मैंने तुमसे शादी से पहले ही कहा था कि मैं अपने परिवार के बिना नहीं रह सकता तब तुमने कुछ क्यों नहीं बोला था फिर आज अचानक तुम्हें क्या हो गया है एक ही शहर में ऑफिस और अपना घर होने पर भी मैं अलग घर क्यों लूं इतना बड़ा घर है क्या कमी है तुम्हें यहां पर। देखो शांभवी जब भैया की शादी  हुई थी वह बेंगलुरु में जॉब करते थे उन दिनों माँ बहुत बीमार रहा करती थी।

इस कहानी को भी पढ़ें:

कभी नीम नीम कभी शहद शहद

घुटनों के दर्द की वजह से उनसे चला भी नहीं जाता था, मां और पापा के बार-बार कहने पर भी भाभी भैया के साथ इसीलिए बेंगलुरु नहीं गई थी क्योंकि उन्हें लगता था माँ को उनकी ज्यादा जरूरत है। वह अलग बात है उसके 2 महीने बाद ही भैया यहां गुड़गांव में कंपनी में शिफ्ट हो गए थे। मां का भी घुटनो का ऑपरेशन हुआ था तो भाभी ने दिन रात खूब सेवा की थी मेरी मां की। मेरी और निकिता के प्रति भी किसी काम में उन्होंने कभी लापरवाही नहीं की। मैं चाहता हूं तुम भी उन्हीं की तरह मिलजुल कर परिवार में रहो। देखो वैदिक अब तुम अपना यह भाभी पुराण बंद करो मुझे अपनी कोई तुलना नहीं करनी तुम्हारी भाभी से। अगर तुम्हें अपनी शादी के बाद भी भाभी के साथ ही रहना था तो मुझसे शादी क्यों कि तुमने? तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं हो गया है क्या अनाप-शनाप बक रही हो वैदिक चिल्लाकर बोला। खबरदार जो मेरी देवी सामान भाभी पर तुमने कोई आरोप लगाया तो।

 उसकी तेज आवाज से रसोई में किसी काम से आई सुनीता जी जो उनकी सारी बातें सुन चुकी थी आकर बोलती है- धिक्कार है तुम्हें शांभवी क्या इल्जाम लगा रही हो तुम देवर भाभी के पवित्र रिश्ते पर। अरे बड़ी बहू ने मेरे दोनों बच्चों को मां बनकर संभाला है तुम्हें इस घर में नहीं रहना तो मत रहो लेकिन किसी पर कोई इल्जाम लगाने की जरूरत नहीं है। मैं तुम्हें बताती हूं नैना अपने देवर से इतना प्यार क्यों करती है? नैना की शादी से पहले ही उसके इकलौते भाई की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी जो वैदिक की उम्र का ही था,

तब से वह वैदिक में ही अपने भाई की छवि ढूंढती है। वह तो अच्छा हुआ तुमने उसके सामने ऐसी बात नहीं की , न जाने क्या बीतती इतना सब कुछ सुनने के बाद उसके दिल पर। सुनीता जी के मुंह से यह सब बातें सुनकर शांभवी को बहुत बड़ा धक्का लगता है। उसे नहीं पता था कि उनके इकलौते भाई की मौत हो चुकी है। उसने तो उन दोनों के रिश्ते को हमेशा शक की दृष्टि से ही देखा है। उसे अपनी छोटी सोच पर आज बहुत शर्मिंदगी महसूस हो रही थी।

वह अपने पति और सास से माफी मांगते हुए कहती है धिक्कार है मुझे जो मैंने इतने पवित्र रिश्ते पर शक किया और भाभी के बारे में न जाने क्या-क्या सोचती रही। देखो बहू सुबह का भूला अगर शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते बस यह बातें हमारे बीच में ही रहनी चाहिए क्योंकि जिन बातों से आपस में या परिवार में तनाव हो उन बातों को भूल जाना ही बेहतर होता है? सुनीता जी ने कहा।शाम्भवी अपने पति से वादा करती है कि अब वह परिवार में किसी को शिकायत का मौका नहीं देगी और भाभी को हमेशा अपनी बड़ी बहन समझेगी।

 सुनीता जी अपनी बहू को गले लगा देती हैं।

 सच में समय रहते जो रिश्तों का मोल समझ जाए वही सच्चा इंसान है।

 दोस्तों कमेंट करके जरूर बताएं मेरी रचना आपको कैसी लगी।

 पूजा शर्मा 

स्वरचित।

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!