सुबह उठकर साफ साड़ी पहनकर नियम पूर्वक मंगरी मां ने अपने पूर्वजों को दातून दिया , फिर सभी को सलामती के लिए पूजा की । अब बारी थी है दिन की तरह उसे भीख मांगने जाना था । हां मंगरी मां रोज भीख मांगने जाति थी उसका पति छः महीने की मंगरी और पांच साल के बिसना को पत्नी की गोद में डालकर टी वी की भेंट चढ़ गया था ।
देहात की जिंदगी गोद में बच्चों को लेकर कटना काफी कठिन था, उसने भीख मांगकर गुजारा करना पड़ता ।
आज मिसराइन के दरवाजे पर जाकर बैठ गई , उसकी तबीयत ठीक नहीं थी, वह दिन भर से भूखी थी, और इस उम्मीद में थी कि कुछ पैसे मिल जाए तो जितिया व्रत करे ।
बिसना पूरे तीस का हो गया था, उसने अपनी पसंद की शादी की और मां को छोड़कर खुद शहर चला गया ।
मंगरी मां ने कहा , मिसरायन दीदी कुछ दे दीजिए ,
अगले ही पल हाथों में रोटियां ,चाय और सब्जी लेकर मिसराइन आई और बोली लो खा लो , बीमार हो जाओगी।
मंगरी मां ने कहा, आप एक पन्नी दे दो, घर ले जाऊंगी आज जितिया का व्रत है ,मैं आज निर्जला व्रत रखी हूं ,
मिसराइन सोचने लगी , ये सारा जीवन भूखी रहकर बच्चों को पालती रही और आज जब बच्चा अच्छा काम रहा है, मां को छोड़ गया ,क्योंकि पत्नी ये नहीं चाहती युकी कोई उसे भिखारिन की बहू समझे , सच है तू धन्य है माई,
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तेरे जैसा कोई हो ही नहीं सकता , तुझसे ही सृष्टि हैं।
दूसरी तरफ बिशना शहर के चकाचौंध में खूब खुद रहता था । बरसात कौशन था , वो सड़क के किनारे यात्रियों के बैठने वाले बेंच पर बैठा था, तभी एक चमचमाती कार आई ,उसने इशारे से बिशना हो बुलाया और कहा यहां से होशियारपुर की सड़क कौन सी जाएगी ,
वो बोला नहीं मालूम , अच्छा क्या कम करते हो? मेरे ऑफिस में कम करोगे ,इतना कहकर काले चश्मे वाले व्यक्ति ने एक कार्ड बढ़ाया और कहा ,कल आना लो कुछ पैसे ….. सौ के पांच नोट देखकर बिशना खुश हो गया । अगले दिन से बताए पते पर जाकर एक सूटकेश लेता
और दूसरी जगह दे देता , इस तरह काफी कम समय में वो काफी पैसे कमा लिया , किंतु सच है जो लोग अपने मां बाप का दिल दुखाते हैं भगवान उन्हें जरूर सजा देते हैं , छः महीने बाद किसी को शिकायत पर पुलिस बिशना को गैरकानूनी कम करने के कारण पकड़ ली ,
और उसकी मां को जब पता चला तो रोती हुई दरोगा के पद जाकर पांव पकड़ ली ,बबुआ को छोड़ दो साहब वो नादान है ,नहीं जानता था,क्या कर रहा है ? दरोगा ने दया दिखाते हुए कहा माई मैं कोशिश करूंगा ,तुम्हारे बेटे को कम सजा मिले ,
लेकिन इसने गलत तो किया है , तुम घर जाओ ,जितनी मदद हो पाएगी , अवश्य करूंगा , मंगरी मां अपने फटे आंचल से आंसू पोछती जाने लगी ,मन हो मन कह रही थी हे बर तर की काली माई मेरे बेटे को बचा लो मैं दूध चढ़ाने आऊंगी , माफ करो मां,भीख मांगकर बतासे चढ़ाऊंगी ।
सिम्मी नाथ
राँची, झारखंड
जो अपने मां-बाप को दुःख देते हैं कभी सुखी नहीं रहते