ढलती उम्र में मन मानता नहीं ..और शरीर साथ देता नहीं!! – सुमन पोरवाल

बहू आज खाने में क्या बना रही हो कुसुम जी ने गरिमा  को आवाज लगाते हुए पूछा… गरिमा अंदर से बोली.  मम्मी अभी आपके पास आ रहे हैं जरा गिन्नी और अंश को वैन  तक छोड़ आऊँ  दोनों लेट हो रहे हैं…

कुसुम जी बोलीं ठीक है बाद में आ जाना… सारे कामों से फ्री होकर गरिमा अपनी चाय और नाश्ते की प्लेट लेकर कुसुम जी के पास ही आकर बैठ गई …और बोली अब  बताइए मम्मी  उस समय इतनी जल्दी रहती है कि कुछ समझ में नहीं आता.. किधर-किधर भागती रहूँ ..

कुसुम जी बोलीं… सुबह से अब सुकून मिला है दस मिनट आराम से बैठ लो… मैं देख रही हूं कितनी जल्दी -जल्दी नाश्ता कर  रही हो …कोई ट्रेन छूटी जा रही है क्या??

अरे!!  बहू !! यह तो रोज की दिनचर्या है यह तो है नहीं कि आज काम कर लोगी और कल से सारे काम बंद.. जब रोज करना है तो आराम से करो ना …क्यों तूफान मेल की तरह हर समय भागती रहती हो..  अब तो तुम चाय भी   प्लेट में डालकर पीने लगी हो…  देखो अपने शरीर को शरीर ही रहने दो मशीन मत बनाओ …

गरिमा हंस कर बोली… क्या करूं मम्मी जब तक मैं काम निबटापाऊंगी बच्चों के आने का टाइम हो जाएगा ..हां आप बताइए …आज आपका क्या मन है खाने का …कुसुम जी बोली…. रहने दो तुम्हारे पास इतना काम है  फिर कभी सोचेंगे…

गरिमा बोली ..अरे !! आप बताइए तो सही… कुसुम जी मुस्कराते हुए बोली …क्या बताऊं गरिमा अब इस बुढ़ापे में जीभ  चटोरी हो गई है  हर समय बस  कुछ ना कुछ खाने का मन करता है ..अब तो दाल रोटी खाने की इच्छा ही ना होवै.. मन कर रहा है  आज मूंग की दाल के मंगौड़े  बना लो और चटनी पीस लो थोड़ा सा दही भी जमा देना आज शाम को वही खा लूंगी ….

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गरिमा हंस कर बोली …इसमें कौन सा बड़ा काम है आप के सहारे आज बच्चों और उनके पापा के भी मजे आ जाएंगे… इन सब को कौन सा पराठा सब्जी अच्छा लगता है ….

कुसुम जी बोलीं… बहू जवानी में तो कभी मन ललचाया नहीं और अब देखो बहुत कोशिश करती हूं लेकिन 75 साल की उम्र में आकर जीभ  नये- नये स्वाद ढूंढने लगी है …गरिमा  बोली.. मम्मी एक बात बताइए आप इतना सब कुछ सोचती ही क्यों है?? आपके बेटे की पंसद की चीजें बनती है… बच्चों की पसंद की भी बनती है तो फिर आपकी पसंद की   क्यों नहीं ??

कुसुम जी बोलीं …वैसे ही जैसे तुम अपनी पसंद का कभी कुछ बनाती हो क्या?? हम औरतें ऐसी ही होती है सबको खिला कर सब को खुश देखकर ही संतुष्ट हो जाती हैं… जब जवानी थी तो अपने लिए सोचो मत और जब बुढ़ापे में  मन चलता है तो कुछ हजम होता नहीं ….

गरिमा बोली आप इतना सोच विचार क्यों करती हो माताजी …मैंने कब कहा आप पेट भर कर खाओ ..स्वाद  के लिए दो-चार  मंगौड़े  खा लेना …अब तो कुसुमजी  ठहाके मारकर हंसते हुए बोलीं… बस यही तो हो नहीं पाता तुम कह रही हो स्वाद के लिए खाओ और जीभ  कहती  है अभी छक कर  खा लो और थोड़ा दोबारा के लिए उठाकर रख लो …




अब तो गरिमा भी हंसने लगी और बोली… माताजी फिर तो आप मेरी भी क्लास लगवा देंगी.. आपका पेट खराब होगा और अनुराग का दिमाग ..वह  मुझे उल्टा सीधा सुनाएंगे की मम्मी तो मम्मी तुम मम्मी से भी ज्यादा हो गई हो..

कुसुम जी बोली …गरिमा!! आज मैं तुमसे अपने मन की बात कहना चाह रही हूं… देखो मैं ज्यादा से ज्यादा दो-चार साल और जियूंगी ..तो मैं यही चाहती हूं मैं खूब संतुष्ट होकर जाऊं ..और मैं अपनी अधूरी  ख्वाहिश पूरी कर लूं …अपने मन का खा लूं और पहन लूँ … और जब इस दुनिया से जाऊँ तो बिल्कुल तृप्त होकर… कोई भी इच्छा बाकी ना रहे…

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और तुम लोग भी मेरे मरने के बाद ज्यादा परेशान मत होना …बस सुविधा लगे  तो नदी के किनारे एक लोटा जल से तर्पण कर देना …और अपने शहर के बाहर तो  पतित- पावनी  ,तारणहारी ..मोक्षदायिनी मां गंगे की अविरल धारा बह ही  रही है …तो बस उसी के किनारे मेरा तर्पण कर देना …मुझे मुक्ति मिल जाएगी….

इतना कहते-कहते कुसुम जी के  चेहरे पर  पूर्ण संतुष्टि के भाव आ गये … गरिमा बोली… मम्मी आज तो बातों का पुलिंदा ऐसा खुला कि समय का पता ही नहीं चला… अब मैं जाऊं रसोई  बुला रही है… कुसुम जी  बोली…जाओ आज तो मैंने अपनी ऐसी राम कहानी सुनाई कि तुम्हारा कितना समय बर्बाद कर दिया…

गरिमा बोली …नहीं मम्मी जी आपके पास बैठकर तो मैंने जीवन के कितने अध्याय पढ़े हैं .. कितना कुछ सीखा है …मेरा भी यही मानना है कि  मनुष्य जीते जी तृप्त हो   जाए मरने के बाद क्या किसे   मिला कौन जाने…

दोस्तों मेरी रचना को अपना अनमोल समय देने के लिए आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया मेरी त्रुटियों  से मुझे अवगत कराएं🙏🏻🙏🏻

आपकी सखी….

सुमन पोरवाल

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