ढलती साँझ – गीता यादवेन्दु : Moral Stories in Hindi

Post View 469 “साँझ को तो ढलना ही होता है तो उसके लिए रोना क्या,घबराना क्या ! हम भी तो ढलती साँझ हैं उर्वशी तो क्यों न ढलते-ढलते अपनी लालिमा को सामर्थ्य भर बिखेर जाँय ।” रामेंद्र जी अपनी पत्नी उषा से कह रहे थे । उषा जो अब ज़िंदगी के 62 वें बसंत में … Continue reading ढलती साँझ – गीता यादवेन्दु : Moral Stories in Hindi