किस्मत का खेल देखिए ,सुगना उस घर में बहू बनकर आई थी जहां ना तो लाड चाव करने वाली सास मिली और ना ही नखरे दिखाने वाली कोई नंद, मिले तो सिर्फ हुकुम चलाने वाले ससुर और उनके आज्ञाकारी बेटे महेश जिससे सुगना की शादी हुई और हां साथ में मिली एक 5 साल के छोटे से नटखट देवर की जिम्मेदारियां!
सुगना को वैसे ही बच्चों से बहुत प्यार था, जल्दी ही देवर राहुल से घुल मिल गई, राहुल सुगना को भाभी मां पुकारता था, राहुल उसके ससुर का दूसरी पत्नी से हुआ पुत्र था यानी कि महेश का सौतेला भाई, दरअसल जब महेश बाबू 15 वर्ष के थे तभी उनकी मां का एक असाध्याय बीमारी से निधन हो गया,
परिवार वालों और समाज के दबाव के कारण महेश के पिता रामेश्वर जी ने दूसरा विवाह कर लिया ताकि महेश को मां का लाड प्यार मिल सके! रामेश्वर जी की दूसरी पत्नी से भी कई सालों बाद एक पुत्र राहुल हुआ किंतु किस्मत का खेल देखिए वह भी राहुल को जन्म देते ही स्वर्ग सिधार गई! उस वक्त महेश बाबू 20 वर्ष की हो चुके थे, अब परिवार के सभी लोगों ने फिर से रामेश्वर जी पर दबाव बनाना शुरू कर दिया कि राहुल तो छोटा सा बच्चा है
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उसे मां की सख्त जरूरत है किंतु इस बार रामेश्वर जी ने किसी की नहीं सुनी,उनका मानना था शायद उनकी किस्मत में पत्नी का सुख नहीं है और बच्चों की किस्मत में मां का! सुगना धीरे-धीरे अपनी ग्रस्थी में रच बस गई !जब उसे उसका देवर भाभी मां कहता तो एक पल को भूल ही जाती कि वह उसका बेटा नहीं है, राहुल सारा दिन सुगना का पल्लू पकड़ के भाभी मां, भाभी मां करके उसके आगे पीछे घूमता रहता!
धीरे-धीरे राहुल भी बड़ा होता जा रहा था ,सुगना ने राहुल को योग्य परवरिश देने में कोई कसर नहीं छोड़ी, राहुल भी सुगना के बिना कोई काम नहीं करता था, हर कार्य में उसे सुगना की मदद चाहिए होती और कब राहुल सुगना को भाभी मां से मां कहने लगा पता ही नहीं चला! हालांकि रामेश्वर जी यह देखकर खुश होते की सुगना ने राहुल को एक मां जैसा ही प्यार दिया है,
समाज और बिरादरी सुगना के ऊपर अपने बच्चों के लिए दबाव डालते और कहते यह तो देवर है देखना एक दिन संपत्ति का बंटवारा करके और ब्याह होते ही तुमको पूछेगा भी नहीं, कम से कम अपनी औलाद होती तो उस पर तुम हक तो जता सकती थी, तब सुगना एक ही जवाब देती…. निहाल करेगा तो यही कर देगा, नहीं करेगा तो अपना जाया भी नहीं करेगा! एक दिन उसने अपने पति से कहा…
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सुनो जी, हमारी अपनी तो कोई औलाद होने से रहि और मुझे राहुल में ही अपना बच्चा नजर आता है तो क्यों ना हम कानूनी कार्रवाई करके राहुल को ही गोद ले ले! क्या बकवास कर रही हो तुम.. राहुल मेरा भाई है, अब मैं अपने भाई को ही बेटा बना लूं क्या .? हां तो इसमें बुराई क्या है? वैसे भी तो हम उसका माता-पिता के जैसे ही ख्याल रखते हैं,इस बात पर महेश बाबू ने कुछ भी जवाब नहीं दिया और कहा तुम्हारी जो भी इच्छा हो वह करो पर पिताजी से एक बार बात कर लेना!
तब सुगना ने अपने ससुर से यह बात कही.. कुछ देर तो उन्होंने कुछ विचार विमर्श किया फिर उन्होंने आखिरकार हां कर दी ,क्योंकि वह भी चाहते थे की सुगना को अपना बेटा और राहुल को अपनी मां मिले ! सभी कार्रवाई पूरी होते ही राहुल उनका बेटा बन गया! राहुल ने भी इस रिश्ते को निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी!
ऊंची नौकरी के लिए राहुल को विदेश जाना पड़ा ! सभी लोग फिर उसे कहते… अब नहीं आने वाला तुम्हारा बेटा वापस, देख लेना.. एक बार जो विदेश की हवा लग जाती है वही का होकर रह जाता है और वैसे भी वह तुम्हारा सगा बेटा थोड़ी है जो तुम्हारे बारे में इतना सोचेगा! किंतु सुगना को अपनी परवरिश पर पूरा विश्वास था!
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दिन रात राहुल को याद करते-करते एक दिन सुगना की तबीयत ज्यादा खराब हो गई और अगले ही दिन राहुल विदेश से अपनी मां सुगना से मिलने आ गया! उसने कहा.. अगर आपकी जगह मेरी सगी मां भी होती तो शायद मेरा इतना ध्यान कभी नहीं रखती, आपने मुझे मां से भी ज्यादा प्यार दिया है,
मैं नहीं जानता असली मां कैसी होती है, मैंने तो हमेशा आपको ही अपनी मां के रूप में देखा है और अगर आपकी इच्छा है कि मैं हमेशा आपके पास ही रहूं तुम मुझे नहीं करनी विदेश में जाकर नौकरी! मैं नहीं चाहता मेरी मां अपने बेटे से मिलने के लिए भी तरसे, यहां मेरे लिए नौकरियों की कमी थोड़ी ही है, किंतु विदेश में मुझे मां कहां से मिलेगी और यहां रहकर मैं कम से कम मेरी मां के साथ तो रहूंगा, मैं दुनिया को झूठा साबित कर दूंगा की देवर कभी बेटा नहीं बन सकता ! मैं हमेशा आपका बेटा हूं और रहूंगा और ऐसा कहकर वह अपनी मां से बच्चों की तरह लिपट गया और यह देखकर सभी के आगे नम हो गई!
हेमलता गुप्ता स्वरचित
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