‘ अक्षरा धाम ‘ का लाॅन लाल-पीली बत्तियों से जगमग कर रहा था।हवा के झोंकें के साथ ताज़े फूलों की खुशबू नलिनी के नाक तो आई तो उसका तन-मन महक उठा।लोगों की भीड़ में उसकी नज़रें किसी अपने को तलाशने लगी कि तभी घर की वरिष्ठ महिला ने आकर उसका स्वागत किया,” आओ बचिया….तुम्हारे बिना तो ये खुशी अधूरी होती..।”
” ऐसी बात नहीं है काकी…सब देवी माँ की कृपा है।” उस बुज़ुर्ग महिला को प्रणाम करते हुए नलिनी बोली।
” फिर भी बेटा…उस दिन अगर तुम…।” तभी उन्होंने वेटर को बुलाया और नलिनी को सूप का गिलास देते हुए बोली,” तुम पियो…हम आते हैं…।”
सूप पीते हुए नलिनी की नज़र काकी की पोती अक्षरा पर पड़ी तो दंग रह
गई।नन्हीं-मुन्नी-सी अक्षरा…इतनी बड़ी…।
सिटी हॉस्पिटल में नर्स की ड्यूटी करते हुए नलिनी को कुछ ही महीने हुए थें।इस दौरान उसने नोटिस किया कि जब कोई महिला पुत्र को जन्म देती थी,उसके परिजन बड़े खुश होते…एक-दूसरे को बधाई देते और अस्पताल में मिठाइयाँ बँटवाते।दूसरी तरफ़ जब महिला कन्या को जन्म देती थी,
उसके परिजनों के चेहरे पर उदासी छा जाती..वे एक-दूसरे को दिलासा देते कि कोई बात नहीं…अगली बार लड़का होगा।यह सब देखकर नलिनी को बहुत दुख होता था।इतनी तरक्की कर लेने के बाद भी इनकी ऐसी मानसिकता…।
एक दिन सुनयना नाम की महिला एडमिट हुई।उसका समय पूरा हो चुका था..उसे कभी भी बच्चा हो सकता था।तभी रामराजी देवी दनदनाती हुई आई और उससे बोली कि तीन नंबर वार्ड में हमरी पतोह है।देखो…नर्स बहन जी…अबकी हमको पोता ही चाहिए।उसने पूछा, ” अबकी से क्या मतलब? इन्हें पहले से…।”
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” हाँ …एक बेटी है लेकिन बस…अब तो बेटा ही…।”
उनके तेवर देखकर नलिनी समझ गई कि अभी इनसे कुछ भी कहना मुनासिब न होगा..।वह ओटी में चली गई।कुछ ही देर में सुनयना ने एक प्यारी-सी बच्ची को जनम दिया।उसने बच्ची सुनयना की सास को देना चाहा तो बेटी सुनते ही वो भड़क उठी थी।सुनयना के पति बोले,” मेरे लिये दोनों बराबर है।” उन्होंने नलिनी सहित सभी स्टाफ़ों में मिठाइयाँ बँटवाई लेकिन सास ने पोती को नहीं देखा..इस बात का सुनयना को बहुत दुख था।
सुनयना को स्टीचेच्स लगे थें, इसलिये उसे अभी एक दिन अस्पताल में ही रहना था।जिस दिन उसे जाना था तब उसे पूरा परिवार लेने आया था।उसकी सास भी आई थीं लेकिन नवजात बच्ची के प्रति उनकी उदासीनता देकर नलिनी को अच्छा नहीं लगा।वह सुनयना की सास को अपने कमरे में ले गई और बोली,” काकी…मैं तो शिव भगवान और माँ दुर्गा, दोनों को ही पूजती हूँ और आप…।”
” हम भी तो दोनों की पूजा करते हैं बचिया..।” सुनयना की सास ने तपाक-से उत्तर दिया।फिर बोली,” हम तो राम जी, सीता मैया, लक्ष्मी जी, काली माँ….।”
” तो फिर अपनी पोती को गोद में क्यों नहीं लिया?” नलिनी के प्रश्न पर वो अचकचा गयी, बोली,” बेटा तो होना चाहिए ना….।”
” और बेटे की बहू के लिये लड़की भी तो होनी चाहिए ना।”
” क्या मतलब?”
” काकी…सीता मैया भी तो चार बहनें थीं।नवरात्रि के समय कन्या पूजन के लिये तो आपके घर में ही दो देवियाँ रहेंगी।ये बच्ची तो साक्षात् देवी का रूप है।ज़रा सोचिये…दोनों पोतियाँ दादी-दादी कहकर आपके आगे-पीछे डोलेंगी…एक आपके लिये पानी लाएगी तो दूसरी आपका सिर दबायेगी…ऐसा सुख और आनंद…।” नलिनी बोलती जा रही थी और वो सुनती जा रही थी कि एकाएक ‘मेरी पोती ‘ कहकर वो वार्ड की ओर दौड़ पड़ीं।
सुनयना जब अपनी बेटी को बीसीजी का टीका लगवाने आई तब उसने नलिनी को बताया कि अक्षरा के जन्म के एक सप्ताह बाद ही उनके पति दस साल पुराना केस जीत गये।माँजी बहुत खुश हुईं और तभी उन्होंने कह दिया कि नये घर का नाम अक्षरा धाम रखेंगे।
कुछ समय बाद मार्केट में नलिनी की मुलाकात सुनयना की सास से हुई, तब उन्होंने नलिनी से कहा कि तुमने मेरी आँखें खोल दी.. मेरी पोतियाँ तो देवी का रूप हैं।
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आज सुनयना की बड़ी बेटी डाॅक्टर है और छोटी अक्षरा ने हाल ही में पुलिस की ट्रेनिंग पूरी करके थाने का इंचार्ज संभाला था।इसी खुशी में यह समारोह किया जा रहा था।समय भी कैसे बीत जाता है, पता ही नहीं चलता….।
” नलिनी आँटी…चलिये…डिनर तैयार है…मम्मी आपको बुला रहीं है…।” अक्षरा की आवाज़ सुनकर नलिनी वर्तमान में लौटी।उसने अक्षरा को बधाई दी और उसके साथ डिनर के लिए चली गई।
विभा गुप्ता
स्वरचित