घंटी की तेज आवाज सुन गीता की नींद टूट गई, इस समय कौन आया होगा सोच दरवाजा खोलने चली गई, दरवाजा खोलते ही आश्चर्यचकित हो गई। सामने गोद में कम्बल में लपेटे गिन्नी को लिये नील और नेहा खड़े थे। चेहरे की रंगत ही बता रही दोनों कई दिनों से ठीक से सोये नहीं।दोनों की झुकी ऑंखें देख, गीता ने एक शब्द नहीं बोला, बिना कहे ही सब समझ गई। गिन्नी को गोद में ले अंदर आ गई। “तुम दोनों अपने कमरे में जाओ,
आराम करो तब तक गिन्नी को मै देख लूंगी।”माँ गिन्नी को रह -रह कर बुखार आ रहा है “धीमे स्वर में नेहा बोली।”तुम चिन्ता मत करो मै देख कर दवा दे दूंगी”। कह गिन्नी को थपकते गीता जी अपने कमरे में चली गई, नेहा और नील अपने कमरे में। गिन्नी को अपने कमरे में ला उसका टेम्प्रेचर देखा, बेसुध गिन्नी के माथे पर ठन्डे पानी की पट्टियां रखते -रखते गीता जी अतीत में खो गईं।बड़े अरमानों से उन्होंने अपने इकलौते बेटे
नील का विवाह नेहा से किया था। सोचा था साधारण परिवार की नेहा उनके घर को अच्छे से संभाल लेगी, कोई लटके -झटके नहीं दिखाएगी, पर उनको क्या पता था,सम्पन्नता देख कर नेहा की मनोवृति इतनी जल्दी बदल जायेगी।
जो नेहा अपने घर में सुबह जल्दी उठ कर सारे काम करती थी, वो अब काम से कतराने लगी। यूँ तो गीता जी के पास घरेलू कामकाज के लिये पूरे दिन की एक कामवाली थी। पर गीता जी खाना खुद बनाती थीं उनका मानना था, अपने बनाये खाने में जो स्वाद होता है, वो खाना बनाने वाली के बनाये खाने में नहीं होता, क्योंकि उसमें वो प्यार और परवाह नहीं होती जो खुद के बनाये खाने में होती। नेहा अक्सर नील को बोलती “पता नहीं
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,माँ को रोज व्यंजन बनाने का इतना शौक क्यों है, जबकि घर में काम वाली है “।गीता जी सुनतीं पर कुछ ना बोलतीं। बात यहीं तक नहीं रही,नेहा को अपनी आजादी में गीता जी खलनायिका लगने लगीं, संयुक्त परिवार के कुछ अपने कायदे -क़ानून होते हैं। नेहा को पहनने -ओढने की पूरी आजादी थी। नेहा ने कुछ ज्यादा ही फायदा उठाने की कोशिश की, अपने घर सलवार -कमीज पहनने वाली नेहा को एक सुबह जब गीता जी ने शॉर्ट्स और टी -शर्ट्स में देखा तो टोंक दिया “नेहा तुम जीन्स पहनो या फ्रॉक मुझे आपत्ति नहीं पर घुटने से नीचे होने चाहिये…
हाँ इतनी छोटे कपड़े भी मत पहनो कि हमें तुमसे नजर चुरानी पड़ें।”बस फिर क्या था नेहा ने खूब बवाल मचाया। “तुम्हारे घर में लोग इतने रूढ़िवादी हैं, मुझे पता नहीं था, नहीं तो मै शादी ही नहीं करती “कह नील से खूब झगड़ा किया।नेहा को उसकी गलतियों पर गीता जी डांटने के बजाय समझाने की कोशिश करतीं जो नेहा को पसंद नहीं आता।अपनी माँ के बहकावे में आ नेहा अपनी अलग गृहस्थी के सपने देखने लगी,अलग गृहस्थी के जोड़ -तोड़ में लगी नेहा को तभी अपने अंदर नन्हे मेहमान आने की आहट सुनाई दी। गीता जी की खुशी का अंत नहीं था।
सारे गिले -शिकवे भुला गीता जी नेहा की सेवा में लग गईं, क्या खाओगी, क्या मन हो रहा पूछ -पूछ कर उसकी हर इच्छा पूरी करतीं।नेहा की मम्मी आतीं, करतीं तो कुछ नहीं पर बोलने से बाज नहीं आतीं -“कितना भी कर लो सास आखिर सास होती है, माँ की बात अलग होती है। तुम मायके में रहती तो हर इच्छा पूरी करती मैं, अब यहाँ तो कुछ कर नहीं सकती “कह नेहा के मन में जहर भरती रहतीं।गीता जी सब सुनतीं पर जवाब ना देतीं, जानती थीं इस समय नेहा की खुशी ज्यादा महत्व रखती है।
गीता जी को लगता वे नेहा की इतनी देखभाल कर रहीं, नेहा तो जरूर समझेगी। नियत समय पर नेहा ने एक स्वस्थ बेटे को जन्म दिया, जिसका नाम गीता जी ने गिन्नी रखा। उस पर नेहा ने खूब बवाल मचाया, मुझसे पूछा भी नहीं अपने मन से रख दिया नाम।”बहू मैं गिन्नी की दादी हूँ, नाम रखने का हक़ मुझे भी है”। नेहा ने जिद कर बेटे का नाम बदल दिया। पर नेहा जी उसे गिन्नी ही कहतीं।जब भी गीता जी पोते को गोद में लेना चाहे, नेहा उन्हें लेने नहीं देती, “इतने छोटे बच्चे को सबसे दूर रखना चाहिये, वैसे भी आपको खांसी आती रहती है।
“गीता जी मन मसोस कर रह जातीं। एक दिन नेहा की मम्मी आईं तो नेहा सीधे उन्हें अपने कमरे में ले गई। गीता जी दुखी हो गईं, उम्र का तकाजा था नेहा की मम्मी को भी खांसी आ रही थी, पर नेहा ने इस पर ध्यान नहीं दिया।ये देख गीता जी दुखी हो गईं सोचती जब इतना करने पर ये हाल है तो छोड़ देना ज्यादा बेहतर है।
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बढ़ते मनमुटाव ने अलगाव के बीज बो दिये। तब गीता जी के पति नरेश जी ने निर्णय लिया, और बेटे -बहू को अलग घर में शिफ्ट कर दिया। जिस दिन नील के संग नेहा और गिन्नी चले गये गीता जी फूट -फूट कर रोईं। बेटे नील का बचपन का अबोध चेहरा उनको याद आने लगा। जो हर डर पर माँ के पास भाग आता था।
जो उनका जीवन था, वो उनसे इतर अपनी खुशियाँ देखेगा ये कभी उन्हें महसूस ही नहीं हुआ। देवर -नंदों की जिम्मेदारियों तले उन्होंने एक ही बच्चे का निर्णय लिया था। गीता जी तो दो बच्चे चाहती थीं पर नरेश जी ये कह समझा देते “लायक हुआ तो एक ही काफी है, नालायक हुआ तो सब बेकार है “। गीता जी चुप हो गईं। गिन्नी का बुखार उतर गया था, गीता जी को भी झपकी आ गई।
उधर नेहा की आँखों में नींद नहीं थी। उसके सामने विगत का चलचित्र चल रहा था।कुछ दिन तो नेहा बहुत खुश हुई , यहाँ कोई रोक -टोक करने वाला नहीं था। जब मन करें सो जाओ, जब जो मन करें खाओ। वहाँ तो गीता जी की वजह से सबको हरी सब्जी खानी पड़ती थी, यहाँ तो रोज ही पिज़्ज़ा, बर्गर ऑडर किये जाते। अनियमित जीवन शैली ने नई -नई माँ बनी नेहा को ही नहीं बल्कि गिन्नी को भी अस्वस्थ करना शुरु कर दिया। वहाँ गीता जी की निगरानी में गिन्नी का समुचित विकास हो रहा था। नेहा को ज्यादा सोचना नहीं पड़ता था।
पर यहाँ तो सारा भार नेहा पर आ गया। एक दिन नेहा को तेज बुखार था, गिन्नी भी बुखार की चपेट में आ गया, नेहा तो दो -तीन दिन में ठीक हो गई पर गिन्नी को रह -रह कर बुखार आता। कामवाली भी छुट्टी कर गई, परेशान हो नेहा ने अपनी माँ को बुलाया तो माँ ने साफ मना कर दिया “तेरी कामवाली भी नहीं आ रही अब इस उम्र में मुझसे बच्चा नहीं संभलेगा “। नेहा गुस्से में बोली “मेरी सास तो गिन्नी को अच्छे से संभाल लेती थी, तुम्हारे ही बहकावे में आ मै अलग हुई “।”तो जा ना अपनी सास के पास, तू ही तो लड़ -झगड़ कर अलग हुई है,
मैंने थोड़े ना कहा था अलग होने को “कह नेहा की मम्मी ने सारा दोष बेटी के सर पर मढ़ दिया। अब नेहा को गीता जी और घर याद आने लगा। माना अलग गृहस्थी बसाने में आजादी तो है पर परेशानियों के ताने -बाने और अकेलापन भी है।सयुंक्त परिवार में प्रेम ही नहीं सुरक्षा और अपनापन भी है।
ये बात समझ में आते ही दोनों ने घर वापसी में ही भलाई समझी। जिसके परिणाम स्वरुप वे आज सुबह -सुबह घर की घंटी बजा बैठे।
गीता जी की नींद नेहा की आवाज से टूटी।”माँ चाय लीजिये “। अरे तुम क्यों बना लाई, मै उठ कर बनाती , तुम आराम करो “
“माँ, मेरा घर है तो चाय तो बना सकती हूँ।मुझे माफ कर दीजिये, मुझसे बड़ी गलती हुई जो मै इस स्नेहिल आंचल को छोड़ कर अकेले खुशियाँ ढूढ़ने निकली। पर अब समझ में आ गया परिवार का साथ ही असली खुशी और आजादी है “कह गीता जी के पैरों पर झुक गई। गीता जी ने नेहा को गले लगा लिया -बेटा,देर आये दुरुस्त आये… कोई बात नहीं गलती तो किसी से भी हो सकती, “ये उम्र का तकाज़ा है…”मै तुमको सुधारने की कोशिश में लगी रही,… और मै भागने की कोशिश में कह नेहा ने बात पूरी की,। सूरज की किरणे कमरे में प्रवेश कर गई, नवप्रभात का आगमन हो गया। जहाँ खुशियाँ अपना घर बना ली।
—-संगीता त्रिपाठी