मैं मध्यम वर्ग का व्यक्ति हूं कुछ मेरी भी ख्वाहिश है अगर आप पूरी कर सकें तो कहूं …विवाह की पूर्व तैयारियों की वर और वधू पक्ष की समवेतचर्चा के दौरान
अचानक वर के पिता राजेंद्र ने जो बहुत देर से शांत भाव से बैठे थे धीमे किंतु दृढ़ स्वर में कहा तो वधू शेफाली के पिता
नगरसेठ माणिकचंद ने बहुत आश्चर्य और उपेक्षा भरी नजर उन पर डाली मानो पूछ रहे हो अब भी डिमांड बची है!!
बताइए समधी जी आपकी भी कोई ख्वाहिश अधूरी रह गई हो तो वह भी आज हम पूरी कर देंगे आपकी तो किस्मत खुल गई
समझ लीजिए!अरे भाई आपका लड़का हमारा दामाद होने वाला है हमारा का मतलब समझ रहे हैं नगरसेठ माणिक चंद राष्ट्रीय नही
अंतरराष्ट्रीय कारोबार है हमारा देखिएगा ऐसी शादी होगी कि आपकी सात पुश्तों ने ना देखा होगा क्यों सही कहा ना मैने …..
तो उनका पूरा राजदरबार हां हां वरना इनकी इतनी औकात कहां..!! कहता जोरो से हंस पड़ा।
वैभव भी पिता की कौन सी डिमांड है सुनने को चिंतित और अधीर हो उठा।
सेठ जी #छोटे मुंह बड़ी बात शायद आपको स्वीकार्य ना हो….. मेरी इतनी ही ख्वाहिश है और डिमांड ही समझ लीजिए कि मेरे बेटे वैभव की शादी किसी पांच सितारा होटल से नहीं
मेरे खुद के मकान से हो । मेरे बेटे ने आपकी बेटी को इस घर की बहू बनाने का निर्णय लिया है आपकी हैसियत या दौलत को नहीं अब इस घर की औकात ही
उसकी औकात है मुझे मेरी बहू सिर्फ दो जोड़ी कपड़ों में ही चाहिए ! क्यों वैभव सही कहा ना मैंने…
जी पिताजी आपने मेरे दिल की बात कह दी मुझे आप पर गर्व है कहता वैभव तुरंत पिता के करीब आ खड़ा हुआ था। शेफाली की आंखों में भी गर्व के भाव तिर आए थे वह भी वैभव के साथ आ खड़ी हुई थी।
नगरसेठ को आज अपनी दमकती दौलत की चमक राजेंद्र के संस्कारित आत्मस्वाभिमान के समक्ष फीकी नजर आ रही थी।
#छोटे मुंह बात बड़ी#मुहावरा आधारित लघुकथा#
लतिका श्रीवास्तव