राखी का त्यौहार आना हो या कोई अन्य त्यौहार शकुन्तला जी अपनी बहू के पीछे पड़ जाती थी ,रोशनी देखो त्यौहार की रंगत तो कोई को घर के द्वार की देहरी से ही समझ आती है। तब रोशनी कहती- मम्मी आप की तो पीछे पड़ने की आदत है। आप चिंता न करो हमें पता है त्यौहार आते ही आप हमसे सफाई कराती ही हो।ढिग और ऊरेन भी हमसे ही कराती आई हो, हम अपने समय से कर लेंगे। आपको मम्मी जल्दी क्यों रहती है बताओ न….
तब शकुन्तला जी बोली- अगर समय से कर लो तो अच्छा रहता है। तीन दिन बाद राखी आने वाली थी। यहाँ शकुन्तला जी से नीचे बैठते बनता न था। तो वो जमीन पर बैठने वाला काम कर नहीं सकती थी।शकुन्तला जी के कहने पर रोशनी ने नाश्ता वगैरह बना लिया।
अब सब जगह की सफाई की बारी आई तो वह कर ही रही थी। कि कल त्यौहार है। नहीं तो सासुमा बार बार बोलेंगी…तब ही उसके मायके से फोन आया कि उसकी माँ की तबियत खराब है जल्दी आ जाओ अस्पताल में भर्ती हो गयी। तब उससे रहा ही न गया। और वो रात की बस से मायके के लिए रवाना हो गई।
अगले दिन त्यौहार था घर का आंगन और द्वार की लिपि पुती नहीं लग रही थी। उनके चैन नहीं पड़ रहा था, तब शकुन्तला जी ने सुबह -सुबह मेहरी को बीस रुपये देकर ढिग और ऊरेन करायी। तब उनके दिल को चैन पड़ा।
इस तरह तीन दिन बाद रोशनी मायके से आई तो घर की चौखट और देहरी देखकर समझ गयी। मम्मी ने श्यामाबाई से आंगन और देहरी लिपवा ली। वाकई में घर का आंगन लिपा पुता देखकर उसे लगा कि चेहरे के मेकअप की तरह अच्छा लग रहा है। यही देहरी कैसी खराब लग रही थी। जो अब कितनी अच्छी लग रही है। ये मम्मी जी जो ससुराल को सजाती नहीं तो यही देहरी भद्दी लगती है। खैर…..
रोशनी जैसे ही घर के अंदर आई तो शकुन्तला जी बोली- रोशनी तुम मायके क्या चली घर में रौनक ही न रही। घर में बड़े भैया भाभी आए , और नंदनी और दामाद जी भी आए। तो भी घर में तुम्हारी कमी लग रही थी, तुम जो दौड़- दौड़ कर सबकी आवभगत करती हो। वो करने वाला कोई न था।अब तुम आ गई तो ऐसा लग रहा है मैं जैसे जिम्मेदारी से मुक्त हो गई हूँ।
तब रोशनी बोली-हां हां मम्मी जी अब आप फ्री हो, मैं खुशनसीब हूँ कि मुझे समझने वाली आप जैसी सासुमा मिली है।
मेरी मां भी हमेशा कहती थी ससुराल सास के बिना फीका होता है। ये सही ही है। मेरे न होने पर आपने घर को संभाला ये कोई छोटी बात थोडे़ ही है।
उसके बाद शकुन्तला जी बोली- तुम्हारे मायके जाते ही लगा जैसे मुझ पर ही सारी जिम्मेदारी आ गयी हो। मैं सुबह से उठते ही श्यामा बाई से झाड़ू पोछा लगवाने के बाद आंगन और द्वारे पर ढिग और ऊरेन करवाई उसके बाद पूजा पाठ किया फिर चाय नाश्ते में लगना पड़ा। फिर इतने में नंदनी बिटिया आई तो उसने खाना जल्दी जल्दी बनवाया।
तब खाने के बाद बडे़ भैया भाभी आए उन्होंने मुझे चौके पर देखा तो पूछने लगे काए जिज्जी आज चौके पर काहे हो! रोशनी बहू कहां है। तब मैनें कहा- भैया रोशनी की मां अस्पताल में भरती है ,इसलिए उसे जाने दिया, इतने सुनने के बाद तब बड़ी भाभी बोली- घर का आंगन तो बहू से सजता है। घर में देखो तो आज जिज्जी कितनी परेशान हो गई अगर रोशनी होती तो न परेशान होने पड़ तो।
तब मैंने भी कहा- हमारी रोशनी है ही इतनी अच्छी कि हमें परेशान होने न देती। इस तरह राखी का दिन निकला रोशनी…अब समझी तेरे बिना मेरा क्या हुआ….अब तेरी मां कैसी है, तब रोशनी भी शकुन्तला जी की बात सुनकर बोली- मम्मी मेरी मां अब ठीक है उनका बी पी बढ़ गया था,आप तो इतनी अच्छी हो कि मुझे जाने दिया,मैं खुशकिस्मत हूँ
मुझे आप जैसी सास मिली,आपके बिना कुछ सोच भी नहीं सकती। फिर शकुन्तला जी कही -चल रोशनी तू अपनी कमान संभाल। इतना सुनते ही रोशनी हंस पडीं, हां हां मम्मी आप बैठो अब मैं इस घर की कमान संभालती हूँ। इस देहरी पर जब सेआई हूँ तब से ससुराल में आप से अपनापन मिला तब से यह घर मेरा हो गया है।
नहीं तो ससुराल के नाम से थरथर कांपती थी। क्योंकि सासुमा की इमेज जो सुनी थी उससे लगता था कि मेरी सासुमा कैसी होगी?वो तो आपके साथ पाकर सासुमा की तस्वीर ही बदल गयी। आप तो मेरी मां से बढकर हो।
तब शकुन्तला जी बोली- बहू तेरे आने से मेरा आंगन सज गया। इस तरह बहू रोशनी सासुमा के गले लगकर बोली मां हम दोनों ही एक दूसरे के लिए है। जो सदा साथ देंगे।
इस तरह घर की देहरी की तरह दोनों के रिश्ते सजकर मजबूत हो गये।
स्वरचित रचना
अमिता कुचया
#घर का आंगन बहू से सजता है, तो ससुराल भी तो सास के बिना फीका होता है।