वृद्धा शनिचरी जंगलों से घिरे एक गांव में रहती थी। उसका निवास मिट्टी के बने हुए एक छोटे से घर में था। उसको अक्सर लोग डायन कहकर ही पुकारते थे।
वह जब भी गांव में निकलती लोग अपने घरों के दरवाजों और खिड़कियों को फटाफट बंद कर देते थे। गली में खेल रहे बच्चों को तुरंत घर के अंदर कर लेते थे उसकी नजर लग जाने के भय से।
उस इलाके के गांवों में यह अफवाह फैली हुई थी कि डायन अपने बेटों और भतार(पति) को खा गई है यानी उसी के टोना-टोटका के प्रभाव से उसकी मौत हो गई।
उस गांव के कुछ लोग ऐसे थे जिनका काम ही था शनिचरी के बारे में ऊल-जलूल बातों का प्रचार करना।
जब-जब किसी का बच्चा उस मोहल्ले में बीमार पड़ जाता, उसकी शामत आ जाती थी। उस घर के लोग उस मोहल्ले के वाशिंदों के साथ गोलबंद होकर उसके दरवाजे पर आते, गाली-गलौज देते, डायन को प्रताड़ित करते। कभी-कभी तो पिटाई भी कर देते थे। बेसहारा शनिचरी अत्याचार सह लेती थी। अपने को निर्दोष साबित करने के लिए जो वह सफाई देती, उस पर क्रूर हमलावरों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था।
एक बार इसी तरह की घटना घटने पर लोगों ने दंडस्वरूप उसका केश काट दिया था और उसकी इतनी पिटाई की थी कि महीना भर के बाद चलने-फिरने में सक्षम हुई थी।
इन सारी घटनाओं के पीछे उस गांव के ही दबंग प्रकृत्ति का निवासी भरथु का हाथ होता था। उसकी नजर उसके घर के पीछे लम्बी-चौड़ी जमीन पर लगी हुई थी। वह चाहता था कि इस बुढ़िया को इतना तंग किया जाय कि वह घर छोड़कर भाग जाए या जहर-माहुर खाकर अपनी जान दे दे।
उस दिन उस उस मोहल्ले में एक बच्चा बीमार पड़ गया। लोगों का मानना था कि यह डायन की करामात है। देखते-देखते बच्चे की हालत गंभीर हो गई।
पीड़ित परिवार ने भरथु के बहकावे में आकर उसके घर पर धावा बोल दिया। उनलोगों ने शनिचरी की बेरहमी से पिटाई कर दी। वह रोती रही, गिड़गिड़ाती रही कि उसने कुछ नहीं किया है, वह कोई जादू या टोना-टोटका नहीं जानती है, लेकिन उनलोगों ने उसकी बातों पर बिलकुल ध्यान नहीं दिया।
उस गांव के स्कूल में स्थानांतरित होकर आये शिक्षक ने उसे हौस्पीटल में भर्ती करवाया।
हौस्पीटल में पुलिस ने बुढ़िया का बयान लिया।
पुलिस ने जब तफ्तीश शुरू की तो शनिचरी के घर पर धावा बोलने वाले लोग डर से फरार हो गये।
स्वरचित
मुकुन्द लाल
हजारीबाग