नैना बिना समय गंवाए बिस्तर से निकली। गर्म पानी से नहा कर बाथरूम से बाहर निकल आई। उसकी बस कहीं छूट न जाए इसलिए वो जल्दी – जल्दी कपड़े पहन कर स्कूल बैग ले कर निकल गई। पीछे से मां ने टोका ,
” इस तरह घर से बिना खाए हुए नहीं निकलते हैं। पहले मुंह में कुछ डालो फिर निकलना अभी तो बस भी नहीं आई है “
” अच्छा मां , लाओ कुछ दे दो ! “
चलती हुई ही मुंह में कुछ डाल कर झट से बाहर निकल गई।
दरअसल वह आज एकांत खोज रही है। उसे अपने बैग में रखे कार्ड पर कैप्शन लिखना था।
और उन हाथों तक पहुंचाना था जिसके लिए लिखा था।
कुछ बातें जो कही -अनकही हैं।
जो नैना के दिल को बेचैन किए जा रही हैं उसे ही वह उस कार्ड पर लिखना चाहती है। उसकी कांपती उंगलियों का दम घुट रहा है।
वह बार – बार उस कार्ड पर हाथ फेरने लगी।
अचानक उसके होंठों पर मुस्कान आ गई,
” आप इस दुनिया के सबसे अच्छे टीचर हो। आप इस दुनिया के सबसे अच्छे पर्सन हो ।
मुझे गर्व है आप पर कि आप मेरी दुनिया है ,
ऑफकोर्स ऐज अ टीचर “
इतना लिख कर नैना ने उस कार्ड पर एक वैसी ही सुंदर सी स्माइली बना दी। जैसी उसके चेहरे पर इस समय खिली हुई है।
अब उसकी बेताब निगाहें उसे ढूंढ़ रही है जिसके लिए वो यह कार्ड लाई है ।
अचानक उसकी निगाहें सामने से आते हुए हिमांशु सर पर पड़ी।
नैना हड़बड़ा गई ,
” सर आप ? आप स्कूल आए हैं ? “
” हां नैना ‘ मैं ‘ मैं आया हूं क्या बात है ? तुम इतना घबरा क्यों गयी ? टीचर स्कूल में ही आते हैं ? “
हिमांशु सर ने मुस्कुराते हुए कहा।
” ओह ! नहीं मेरा मतलब वह नहीं था , मुझे लगा आप आज शायद नहीं आओगे ”
” अच्छा चलो , अब ऐसेम्बली में जाओ प्रेयर का वक्त हो चला है । तुम्हारा ध्यान कहां है ? “
बोल कर हिमांशु भी ऐसेम्बली की तरफ बढ़ गया।
लेकिन नैना ?
उसका ध्यान अब उसके पास कहां रहा वह तो तो हिमांशु सर के साथ ही बढ़ गया है।
‘ हिमांशु राय ‘ नैना के स्कूल में मैथ्स के टीचर हैं। और संभवतः उस स्कूल के वे सबसे कम उम्र टीचर हैं।
उनकी उम्र यही कोई तीस के आसपास रही होगी । अपने साथी टीचरों के सामने वह स्टूडेंट की तरह ही लगता है।
हिमांशु पिछले साल ही कहीं बाहर से टा्संफर हो कर आया है।
वह अपनी बुजुर्ग मां के साथ स्कूल में ही बने स्टाफ क्वार्टर में रहता है। उसकी शादी नहीं हुई है। करीब छह फीट लंबा गेहूंआ रंग , तीखे नाक- नक्श और आवाज़ गहरी इतनी कि एक बार जो भी सुन ले उसमें डूबे हुए बिना नहीं रह सकता।
नैना को जाने क्यों ऐसा लगता है।
कि उन दोनों अर्थात नैना और हिमांशु के बीच कुछ ‘ खास ‘ जरूर है।
वह जब भी हिमांशु की ओर देखती है उसकी नजर ठहर जाती है और कभी तो उसे लगता है ,
” सर भी शायद चोर निगाहों से उसे ही एकटक निहार रहे होते हैं ,
पर नैना की नजर पड़ते ही झट से दूसरी ओर देखने लगते हैं “
नैना मन ही मन पिछले दिनों देखी गई फिल्म के बारे में सोचती है ,
” ‘प्रेम ‘ क्या उससे करने की चीज है जिस पर दिल बस एक बार में ही फिदा हो जाए ?
या कि जब दिल की कोई थाह ही ना मिले वो कब किस पर आ रहा है ?
क्या यही है प्रेम ? शायद हां – शायद ना ? या सिर्फ बाली कच्ची उमर का तकाजा ? “
बहरहाल ,
वह हिमांशु सर के सामने कभी सामान्य नहीं बनी रह पाती है।
वह सोचती है,
” एक बार सर से अकेले में बात करने को मिल जाए तो सारी विश पूरी जाए ।
पर एक बार मिलने से क्या अरमान पूरे हो जाएंगे? वैसे भी वो टीचर हैं। जवान हैं सामने से कुछ कहने से तो रहे। “
न जाने क्यों ? उसके दिमाग में यह बात बैठ गई है ,
” मुझसे ज्यादा तो और उन्हें कोई चाह ही नहीं सकता “
पर फिर शुरुआत कैसे करे ? और कहां से करे ?
क्या हिमांशु सर भी मुझे ? मैं किस तरह सर के मन को भांपू ? “
मुझे पता करना होगा उनके बिहेवियर से ।
जब हर किसी के हाव- भाव उनके बिहेवियर बताते हैं। तो हिमांशु सर के भी बताएंगे ” ।
अगला पीरियड इंग्लिश का था।
जिसमें वक्त पहाड़ जैसा बीता। हिमांशु सर की क्लास लंच ब्रेक के बाद वाली थी।
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डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -9)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi